‘हो सकता है कि हमारे सिंह साहेब डार्विन के खिलाफ नए सिरे से धर्मयुद्ध छेड़ना चाहते हों’

तय मानिये डार्विन का ये विरोध वैज्ञानिक आधार पर तो नहीं ही हो रहा है।

New Delhi, Jul 02 : केंद्रीय मंत्री और मुंबई के भूतपूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह जी ने एक बार फिर ये कहा है कि डार्विन का क्रम-विकास ( ऐवोलुशन) का सिद्धांत गलत है. हालाँकि उन्होंने ये नहीं बताया कि वो क्यों ऐसा कह रहे है लेकिन उन्होंने इस सिंद्धांत का मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि मैं बन्दर को अपना पूर्वज नहीं मान सकता. सिंह साहेब खुद विज्ञानं के विद्यार्थी रहे हैं, पीएचडी हैं. इसलिए यदि वो किसी वैज्ञानिक शोध के आधार पर डार्विन के सिद्धांत का नकार रहे होते तो उसकी ओर इशारा ज़रूर करते. विज्ञानं यही समझाता है कि तर्क को तर्क से ही काटा जा सकता है. उन्होंने कोई तर्क नहीं दिया. वैसे उन्होंने ये कहा कि कई वैज्ञानिक भी ऐवोलुशन के सिद्धांत को सही नहीं मानते. ये सही भी है. लेकिन मंत्री जी ने न उन वैज्ञानिकों का नाम लिया न उनके विचारों का ही ज़िक्र किया. इसलिए ये मानकर चलिए कि मानव की उत्पत्ति के बारे डार्विन के सिद्धांत का विरोध किसी वैज्ञानिक आधार पर तो नहीं ही हो रहा है. उन्होंने तो इस सिद्धांत को पाठ्य पुस्तकों से हटाने की मांग भी कर दी है. ये मांग विज्ञान का विद्यार्थी किसी सूरत में नहीं करेगा. इसलिए तय मानिये डार्विन का ये विरोध वैज्ञानिक आधार पर तो नहीं ही हो रहा है.

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फिर अचानक डार्विन साहेब कहाँ से चर्चा में आ गए, यहाँ तक कि उनके सिद्धांत को पाठ्य पुस्तकों से भी हटाने की बात उठ गयी. इसलिए आइये आज इस चर्चा को धर्म ओर विज्ञानं के बीच चल रहे सतत संघर्ष की पृष्ठ भूमि में देखते हैं. ब्रह्माण्ड की उतपत्ति कैसे हुयी ओर मानव कैसे अस्तित्व में आया इन सवालों को लेकर विभिन्न धर्मों और विज्ञानं के बीच सदियों से टकराव होता रहा है. कई बार ऐसा भी हुआ है एक दूसरे का विरोध करने वाले धर्मों ने इस सन्दर्भ में किसी बड़ी वैज्ञानिक शोध के खिलाफ एकजुट होकर मोर्चा खोल दिया. ब्रह्माण्ड के रहस्यों का उद्घाटन करने वाले महान वैज्ञानिकों और पोंगापंथी धार्मिक नेताओं के बीच चले अनवरत संघर्षों की दास्तानों से इतिहास भरा पड़ा है. न जाने कितने वैज्ञानिकों को इन संघर्षों में जान तक गवानी पडी. धरती गोल है कि चपटी, गुरुत्वाकर्षण क्या है, आसमान मैं तारे क्यों हैं और क्या हैं. इन रहस्यों पर से पर्दा उठाने में वैज्ञानिकों को धार्मिक संस्थानों से बड़ी लड़ाईयां लड़नी पड़ीं.

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लेकिन विज्ञानं ओर धार्मिक संस्थाओं के बीच संघर्ष का सबसे बड़ा बिंदु यह है कि मानवजाति कहाँ से आयी और कहाँ जाएगी. ईसाई मानते हैं ईश्वर ने आदम औऱ हव्वा (एडम एंड ईव) को बनाकर धरती पर भेजा और हम सब उनकी संतान हैं. हिन्दू धर्म के अनुसार हमें ब्रह्मा जी ने अपने शरीर से बनाया. इस्लाम हमें अल्लाह की कृति मानता है. ईसाई मानते हैं कि मरने के बाद पवित्र ईसाईयों को खुदा के साम्राज्य(किंगडम ऑफ़ गॉड) में जगह मिलेगी, हिन्दू धर्म के अनुसार हमें मोक्ष मिला तो हम स्वर्ग में रहेंगे अन्यथा किसी औऱ योनि में जन्म लेंगे औऱ इस्लाम में जन्नत का प्राविधान है. अन्य धर्मों में भी मिलती जुलती व्यवस्थाएं हैं. एक बात कॉमन है- कि हमें ईश्वर ने बनाया. और अंततः ईश्वर की शरण में ही जाना होगा.

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विज्ञानं धर्मों की इस बुनियाद को नकारता है. विज्ञानं तो धरती के निर्माण को भी ऊर्जा एक बड़े विस्फोट(बिग बैंग ) का परिणाम मानता है. ये सही है कि धरती पर जीवन कहाँ से और कैसे आया इस बात का विज्ञानं अब तक कोई ठोस अकाट्य तर्क पेश नहीं कर पाया है. लेकिन जीवन कैसे आगे बढ़ा, इस बारे में खूब शोध हुईं औऱ उनमे से कुछ सर्वमान्य भी हैं. डार्विन के “ऐवोलुशन” और “सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट” के सिद्धांत ऐसे ही हैं जिनके बारे में वैज्ञानिक आमतौर पर सहमत हैं. इसीलिये ये पुस्तकों में भी हैं. लेकिन दुनियां का कोई भी धर्म इन सिद्धांतों को नहीं मानता. हो सकता है कि हमारे सिंह साहेब डार्विन के खिलाफ नए सिरे से धर्मयुद्ध छेड़ना चाहते हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)