सीबीआईः तोते ने तोड़ा पिंजरा

सीबीआई केस – जो सरकार चार साल में अपने सबसे नाजुक पद पर बैठे अफसरों के दिलों में भी अपना डर नहीं बिठा सकी, क्या उसे मजबूत सरकार कहलाने का हक है ?

New Delhi, Oct 24 : हमारा यह केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) है या केंद्रीय आंच ब्यूरो है ? हमारी सरकार की इज्जत को जितनी आंच यह ब्यूरो पहुंचा रहा है, उतनी आंच अभी तक किसी अन्य मामले ने नहीं पहुंचाई है। देश में उच्च स्तरों पर चलनेवाले भ्रष्टाचार की जांच के लिए बना यह ब्यूरो खुद ही भ्रष्टाचार की गिरफ्त में फंस गया है। इससे बड़ी फंसावट क्या होगी कि इस ब्यूरो के नंबर एक अफसर ने अपने नंबर दो अफसर पर आरोप लगाया है कि उसने किसी मामले को दबाने के लिए 3.99 करोड़ रु. की रिश्वत खाई है और उसके न. दो अफसर ने आरोप लगाया है कि उसके नं. एक अफसर ने इसी मामले में 2 करोड़ रु. की रिश्वत खाई है।

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नंबर एक अफसर याने आलोक वर्मा और नंबर दो अफसर याने राकेश अस्थाना ! अस्थाना गुजरात केडर के पुलिस अफसर हैं और राहुल गांधी की मानें तो वे मोदी की आंख के तारे हैं। यदि वे सचमुच प्रधानमंत्री की आंख के तारे हैं तो हमें इस मौके पर प्रधानमंत्री की पीठ थपथपानी चाहिए, क्योंकि अपने इस आंख के तारे के विरुद्ध जब जांच ब्यूरो ने पुलिस रपट लिखवाई तो मोदी ने उसका विरोध नहीं किया।

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पुलिस ने अस्थाना के कुछ सहायकों को गिरफ्तार भी कर लिया है। अस्थाना के विरुद्ध छह मामलों में जांच शुरु हो गई है। जांच में जो भी निकले, इन दोनों अफसरों को सबसे पहले कुछ माह की छुट्टी पर भेज दिया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो को सरकारी ‘पिंजरे का तोता’ कहा था लेकिन इन तोतों की चोचें इतनी नुकीली हैं कि उन्होंने पिंजरे की सारी इज्जत, उसकी सारी प्रामाणिकता ही उधेड़ डाली है।

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तोते ने तोड़ डाला सारा पिंजरा ! जो सरकार चार साल में अपने सबसे नाजुक पद पर बैठे अफसरों के दिलों में भी अपना डर नहीं बिठा सकी, क्या उसे मजबूत सरकार कहलाने का हक है ? गुजरात के अफसरों को केंद्रीय सरकार के हर महत्वपूर्ण पदों पर लाद देने का फायदा क्या है, यह मोदी को अब समझ में आया कि नहीं ? केंद्रीय जांच ब्यूरो की निष्पक्षता यों ही शक की शिकार रहती है लेकिन अब गैर-राजनीतिक मामलों में भी उसकी विश्वसनीयता पर कलंक लग चुका है। जिस देश की राजनीति ने भ्रष्टाचार की विष्ठा को अपनी खुराक बना रखा है, उसके जज और जांच अधिकारी स्वच्छ कैसे हो सकते हैं ?

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)