डा. लोहिया की गिरफ्तारी पर नेहरू और पटेल हो गए थे आमने -सामने

21 जून को पटेल ने लिखा कि इस संबंध में विचार तब तक स्थगित रखा जाए जब तक हम मिलकर बात नहीं कर लेते। 30 जून को प्रधान मंत्री ने पटेल को लिखा कि ‘आज मेरी मुलाकात एक विख्यात अमेरिकी पत्रकार से हुई जो दिल्ली से गुजर रहा था।

New Delhi, Nov 17 : नई दिल्ली में नेपाली दूतावास पर विरोध प्रदर्शन के सिलसिले में 1949 में डा.राम मनोहर लोहिया अपने 46 साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिए गए थे।इस पर प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू चाहते थे कि लोहिया और उनके साथी तुरंत बिना शत्र्त रिहा कर दिए जाएं।
पर गृह मंत्री सरदार पटेल इसके खिलाफ थे।इस सवाल पर दोनों के बीच लम्बा पत्र व्यवहार हुआ।आखिरकार डा.लोहिया को बिना शत्र्त रिहा करना पड़ा।
इस पत्र व्यवहार से यह भी साफ हुआ कि पंडित नेहरू विश्व जनमत का बड़ा ध्यान रखते थे।हालांकि वे लोहिया के राजनीतिक आचरण को गैर जिम्मेदाराना मानते थे।पर यह विवाद तब और भी दिलचस्प हो गया था जब नेहरू के निजी सचिव एम.ओ मथाई ने जेल में जाकर लोहिया से भेंट की।इंदिरा गांधी भी उनसे मिलने जेल जाना चाहती थीं,पर बाद में उन्होंने अपना यह विचार बदल दिया।

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पर जे.बी.कृपलानी और सुचेता कृपलानी ने जेल में जाकर लोहिया से भेंट की। हालांकि जे.बी.ने लोहिया से साफ -साफ कह दिया था कि तुमने नेपाली दूतावास के पास जबरन जाने की कोशिश करके अच्छा नहीं किया। लोहिया-मथाई मुलाकात को सरदार ने अच्छा नहीं माना। हालांकि बाद में नेहरू ने पटेल को लिखा कि मथाई निजी हैसियत से लोहिया से मिलने गए थे।हालांकि उन्होंने मुझे इसकी पूर्व सूचना दे दी थी।
उन दिनों बी.पी.कोइराला के नेतृत्व में नेपाल में नेपाली कांग्रेस ने राणाशाही की समाप्ति और लोकतंत्र की बहाली के लिए आंदोलन चला रखा था।कोइराला जेल में बंद कर दिए गए।वहां उन्होंने भूख हड़ताल शुरू कर दी।समाजवादी पार्टी ने 25 मई 1949 को भारत में ‘नेपाल दिवस’ मनाया।लोहिया के नेतृत्व में कार्यकत्र्ताओं ने दिल्ली में रोषपूर्ण प्रदर्शन किया।प्रदर्शनकारी नेपाली दूतावास की ओर बढ़ रहे थे।पुलिस ने उन्हें रोका।प्रदर्शनकारियों पर अश्रु गैस के गोले छोड़े गए और लाठी चार्ज किया गया।लोहिया तथा अन्य 46 समाजवादी गिरफ्तार किए गए।उन पर मुकदमा चला और उन्हें दो महीने की कैद और सौ रुपए के जुर्माने की सजा हुई।आचार्य जे.बी.कृपलानी ने हस्तक्षेप करते हुए जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखा और उनकी रिहाई व मुकदमा उठाने की मांग की।कृपलानी के पत्र को संलग्न करते हुए प्रधान मंत्री ने गृह मंत्री को 13 जून 1949 को पत्र लिखा कि डा.लोहिया और उनके साथियों को मुक्त करके उनपर से मुकदमा उठा लेना चाहिए।

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पर सरदार पटेल इससे सहमत नहीं थे। उन्होंने लोहिया की गिरफ्तारी की पृष्ठभूमि बताते हुए नेहरू को 18 जून को लिखा कि ‘ मैं नहीं समझता कि हमारे लिए यह बुद्धिमतापूर्ण बात होगी कि हम इस समय न्याय के मार्ग में बाधा डालें। इससे दूतावासों के परिसर में यह दुर्भाग्यपूर्ण भावना पहुंचेगी कि वहां प्रदर्शनकारी बिना डर भय के इस तरह के प्रदर्शन कर सकते हैं। बेहतर होगा कि कानून अपना काम करे।’इसके जवाब में प्रधान मंत्री ने 19 जून को सरदार पटेल को लिखा कि ‘लोहिया के कृत्य को संभवतः लोगों ने नापसंद किया है। लेकिन यह सामान्य नापसंदगी एक व्यापक सहानुभूति का रूप धारण कर चुकी है- उनके कार्य से नहीं,बल्कि अपेक्षतया छोटे से अपराध के लिए लम्बी कार्रवाई और महीने भर से अधिक जेल में बंद रहने के कारण। राजनीति से असंबद्ध लोग मेरे पास आते हैं और पूछते हैं कि हम इस मामले को क्यों जारी रखे हुए हैं ? इसकी रोज पब्लिसिटी हो रही है और उससे सहानुभूति पैदा हो रही है। सामान्यतया विदेशों में ऐसे अपराधों को बहुत हल्का माना जाता है। पर हमलोग इसे अधिक तूल दे रहे हैं।’

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21 जून को पटेल ने लिखा कि इस संबंध में विचार तब तक स्थगित रखा जाए जब तक हम मिलकर बात नहीं कर लेते। 30 जून को प्रधान मंत्री ने पटेल को लिखा कि ‘आज मेरी मुलाकात एक विख्यात अमेरिकी पत्रकार से हुई जो दिल्ली से गुजर रहा था। उसे अमेरिकी दूतावास ने मेरे पास भेजा था।उसकी एक टिप्पणी थी कि उसे यह देख कर हैरत हुई कि हमने कुछ समाजवादियोंं को जेल भेज दिया है।मुझसे पूछा गया कि हमने ऐसा क्यों किया।मैंने उसे एक माकूल जवाब दिया।मैं समझता हूं कि लोहिया और उनके साथियों को जेल में रखना हमारे लिए अच्छा न होगा और इससे विदेशों में और यहां भी हमारी ख्याति को नुकसान पहुंचेगा।जबकि हमारे
द्वारा छोड़ने से अच्छा प्रभाव पड़ेगा।इसका लोहिया और समाजवादियों से उतना वास्ता नहीं है जितना कि हमारे सामान्य दृष्टिकोण और उस पर प्रतिक्रिया का है।’
इसके जवाब में पटेल ने 9 जुलाई 1949 को पंडित नेहरू को देहरादून से लिखा कि ‘जिस रात तुम वापस आए उस दिन लोहिया के बारे में मैंने तुम्हें बताया था कि उन्हें छोड़ने का निश्चय कर लिया है। तुमने हमारी विज्ञप्ति देख ली होगी। उसके बाद लोहिया प्रेसवालों से मिले। लगता है कि वे अब भी समझदार नहीं बने हैं और बने भी हैं तो उनमें बहुत कम परिवत्र्तन हुआ है।बहरहाल वह हमारी तुलना में अपनी पार्टी के लिए ज्यादा बड़ा सिरदर्द हैं।’

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)