आईपीएस बन आतंकियों से ‘बदला’ लेना चाहती है ‘कसाब की बेटी’, 26/11 के बाद ऐसी हो गई जिंदगी

देविका ने बताया कि इस आतंकी हमले के बाद मानो उनकी जिंदगी ठहर सी गई थी, उन्हें रहने के लिये मकान कोई देने को तैयार नहीं था।

New Delhi, Nov 23 : 26 नवंबर 2008, शायद इस दिन को आप भूले नहीं होंगे, जब सरहद पार से आये आतंकियों ने मुंबई को दहला दिया था, इस आतंकी हमले ने मायानगरी को ऐसे जख्म दिये, जिसे भरने में सालों लगने वाला है। इस आतंकी हमले में 164 बेकसूर लोगों की मौत हुई थी, जबकि सैकड़ों घायल हुए थे, इस आतंकी हमले में शामिल 10 दहशतगर्दों में एक मात्र जिंदा बचे अजमल कसाब को भारत सरकार 2012 में फांसी दे दी, देविका रोटावन (तब 9 साल 11 महीने की थी) इस हमले की सबसे कम उम्र की गवाह बनी, उन्होने ही कसाब को पहचाना था, लेकिन अफसोस कुछ लोग देविका को ‘कसाब की बेटी’ कहकर बुलाने लगे, अब देविका 18 साल की हो चुकी हैं, वो आईपीएस अधिकारी बन आतंकियों से बदला लेना चाहती हैं, आइये देविका की जुबानी इस आतंकी हमले और 10 साल बाद उसकी जिंदगी में क्या बदलाव आये।

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कसाब की बेटी कहने लगे लोग
देविका ने बताया कि इस आतंकी हमले के बाद मानो उनकी जिंदगी ठहर सी गई थी, उन्हें रहने के लिये मकान कोई देने को तैयार नहीं था, लोगों को आतंकी हमला होने का डर सताता था, वो जहां भी रहती, वहां के लोग उन्हें ‘कसाब की बेटी’ कहकर पुकारते थे, देविका ने कहा कि अगर आप किसी से पूछेंगे, कि मुंबई हमले वाली लड़की कहां रहती है, तो लोग मुझे ‘कसाब की बेटी’ कहकर मेरे पास लेकर आएंगे।

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रुपये देकर बयान बदलने को कहा गया
देविका ने बताया कि वो अपने पापा और भाई के साथ सीएसटी स्टेशन पहुंची थी, प्लेटफॉर्म नंबर 12 पर वो ट्रेन का इंतजार कर रहे थे, तभी उनका भाई टॉयलेट के लिये गया, अचानक फायरिंग शुरु हो गई। देविका के पैर में गोली लगी, कुछ देर बाद वो बेहोश हो गई, जब होश आया, तो वो कामा अस्पताल में थी, अस्पताल में करीब महीने भर तक इलाज चला, फिर बाद में जेजे अस्पताल शिफ्ट कर दिया गया, जहां उनकी सर्जरी की गई। देविका ने कहा कि उनके पापा के पास पाकिस्तान से फोन आते थे, उन्हें रुपये का लालच देकर बयान बदलने के लिये धमकाया जाता था, लेकिन वो नहीं मानी, यहां तक कि उनके पूरे परिवार को खत्म करने की धमकी दी गई, इसके बावजूद वो कसाब के खिलाफ कोर्ट में गवाही दी।

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रिश्तेदारों ने बना ली दूरी
कोर्ट में गवाही देने के बाद देविका के रिश्तेदारों ने भी उनके परिवार से दूरी बना ली थी, उन्होने बताया कि रिश्तेदार हमें घर पर बुलाने से कतराने लगे, वो कहते थे कि आतंकियों के खिलाफ गवाही दी है, वो हमारी भी जान ले सकते हैं, देविका को तब बुरा लगता था, वो हमेशा सोचती थी कि आखिर उन्होने ऐसी कौन सी गलती की है, जिसकी उन्हें सजा दी जा रही है, रिश्तेदार उन्हें अपने घर पर फंक्शन में भी नहीं बुलाते थे।

टीबी से ग्रसित हो गई देविका
देविका और उनके घर वालों की मदद को लेकर भले सरकार और सामाजिक संस्थाएं तमाम तरह के दावे करते हों, लेकिन देविका के मुताबिक किसी ने कोई सहायता नहीं की, उनके परिवार की आर्थिक हालत बिगड़ने लगी, उन्हें टीबी हो गया, लेकिन वो संघर्ष करती रही। देविका के इलाज के दौरान ही उनका भाई जयेश भी संक्रमित हो गया था, जिसके बाद दोनों का इलाज करवाया गया।

आईपीएस बनना चाहती है
देविका के पिता नटवरलाल रोटावन का ड्रायफ्रूट का बिजनेस था, लेकिन हमले के बाद लोगों ने आतंकियों के डर से उनके साथ बिजनेस करना कम कर दिया, फिर धीरे-धीरे बिजनेस पूरी तरह से बंद हो गया। हालांकि इस हमले के बाद फेमस हुई देविका को कई पुरस्कार समारोहों में बुलाया जाने लगा, इस दौरान उनकी मुलाकात कई शीर्ष पुलिस अधिकारियों से हुई, जिसके बाद उन्होने भी भारतीय पुलिस सेवा में जाने की ठान ली, उनके पिता नटवरलाल का कहना है कि सिर्फ अवॉर्ड से पेट नहीं भरता है, मुझे इस बात की चिंता है कि मेरी बेटी से कौन ब्याह करेगा, लोग डरते हैं कि कहीं आतंकी उनके पीछे ना पड़ जाएं।