पति को खुश रखने के लिए श्रीकृष्‍ण ने द्रौपदी को बताई थी एक बात, हर पत्‍नी को इसे जरूर जानना चाहिए

श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि अब सभी पांडवों को जीवनदान मिल गया है । बड़ों का आशीर्वाद एक कवच की तरह काम करता है । जिसे कोई अस्त्र-शस्त्र भेद नहीं सकता । आज तुमने एक बार पितामह को प्रणाम किया और सभी पांडव सुरक्षित हो गए ।

New Delhi, Dec 03 : महाभारत युद्ध की शुरुआत के साथ ही शुरू हो गया था एक परिवार का अंत । द्वापर युग के इस घटनाक्रम ने एक बड़ी सीख दी । इस काल में हुए भगवान नारायण के आठवें अवतार श्रीकृष्‍ण इस महायुद्ध के सूत्रधार बने । उन्‍होने आने वाले युग के लिए कई बातें कहीं । कलियुग में कृष्‍ण के वचन गीता का सार बनकर सबके सामने आए और हमें श्रीमद्भागवत गीता के रूप में उन बातों का ज्ञान हुआ जो जीवन जीने के लिए बहुत आवश्‍यक हैं । गीता, श्रीकृष्‍ण द्वारा अर्जुन को कहे बोल हैं । लेकिन कुछ बातें ऐसी भी थीं जो कृष्‍ण ने द्रौपदी को बताई थीं । सुखी वैवाहिक जीवन और पति के सुख के लिए कही जाने वाली बातें ।

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भीष्‍म की घोषणा से घबराए पांडव
महाभारत के युद्ध में एक और पांडव थे तो दूसरी ओर कौरव । कौरवों के साथ जहां परिवार के सभी बड़ों का साथ था तो वहीं पांडवों के साथ थे  कृष्‍ण । कौरवों के सेनापति ने युद्ध की शुरुआत से ही भीष्म पितामह को लेकर बार-बार व्यंग्य करने शुरू कर दिए थे, क्‍योंकि पांडव भीष्‍म के प्रिय थे । इस बात से दुखी होकर पितामह ने घोषणा कर दी कि वे सभी पांडवों का वध कर देंगे। जब ये बात पांडवों तक पहुंची तो सभी चिंता में पड़ गए । भीष्‍म को हराना नामुमकिन था । उसी दिन सूर्यास्त के बाद श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से अपने साथ चलने को कहा था ।

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भीष्‍म के पास द्रौपदी को ले गए श्रीकृष्ण
श्रीकृष्‍ण, द्रौपदी को लेकर भीष्म पितामह के शिविर तक ले गए । खुद बाहर रहे और द्रौपदी को कहा कि अंदर जाकर पितामह को प्रणाम करो । श्रीकृष्ण की बात मानकर द्रौपदी भीष्म पितामह के पास गई और उन्हें प्रणाम किया । भीष्म ने अपनी कुलवधु को अखंड सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद दे दिया। बस यही तो श्रीकृष्‍ण चाहते थे ।

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भीष्‍म जान गए थे श्रीकृष्‍ण की चाल
द्रौपदी को आशीर्वाद देकर  जब भीष्म ने द्रौपदी से पूछा कि तुम इतनी रात में यहां अकेली कैसे आई हो? क्या श्रीकृष्ण तुम्हें यहां लेकर आए हैं? तब द्रौपदी ने कहा कि – जी पितामह, मैं श्रीकृष्ण के साथ ही यहां आई हूं और वे शिविर के बाहर खड़े हैं। ये सुनकर भीष्म तुरंत ही द्रौपदी को लेकर शिविर के बाहर आए और श्रीकृष्ण को प्रणाम किया। भीष्म ने श्रीकृष्ण से कहा कि मेरे एक वचन को दूसरे वचन से काट देने का काम श्रीकृष्ण आप ही कर सकते हैं।

द्रौपदी ने श्रीकृष्‍ण से जाना इस मुलाकात का भेद
इसके बाद श्रीकृष्ण और द्रौपदी अपने शिविर की ओर चल दिए । रास्ते में चलते हुए श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि अब सभी पांडवों को जीवनदान मिल गया है । बड़ों का आशीर्वाद एक कवच की तरह काम करता है । जिसे कोई अस्त्र-शस्त्र भेद नहीं सकता । आज तुमने एक बार पितामह को प्रणाम किया और सभी पांडव सुरक्षित हो गए । अगर तुम रोज भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य आदि को प्रणाम करती और दुर्योधन-दुशासन की पत्नियां पांडवों को प्रणाम करती तो आज युद्ध की स्थिति नहीं बनती ।

ये है सीख
इस कथा का सार यही है कि पति के सुख के लिए पत्नी को अपने कुल के सभी बड़े लोगों का आदर और सम्‍मान करना चाहिए । बड़ों के आशीर्वाद से पति हर प्रकार के दुखों से बचा रहता है । ज्‍यादातर घरों में इसी वजह से क्लेश होते हैं कि पत्नी अपने पति के परिवार, माता-पिता का सम्मान नहीं करती है पत्नी इस बात का ध्यान रखने लगे तो घर में शांति बनी रहेगी। हालांकि ये बाद पति पर भी लागू होती है, पति को भी पत्‍नी के परिवार का सम्‍मान करना चाहिए ।