इंस्पेक्टर सुबोध कुमार का ये सपना रह गया अधूरा, गांव वालों को फोन कर साझा की थी ‘मन की बात’

इंस्पेक्टर सुबोध कुमार के पिता राम प्रकाश भी पुलिस में थे, कई साल पहले नौकरी के दौरान ही उनकी मौत गई थी, जिसके बाद अनुकंपा के आधार पर सुबोध कुमार की पुलिस में भर्ती हुई थी।

New Delhi, Dec 04 : बुलंदशहर में गोरक्षा के नाम पर सड़क पर उतरे उपद्रवियों ने इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की जान ले ली। आपको बता दें कि मृतक सुबोध कुमार मूल रूप से एटा के तरगवां गांव के रहने वाले थे, उनके शहीद हो जाने की खबर से पूरे गांव में मातम पसर गया, एसएचओ सुबोध कुमार के बारे में कहा जाता है कि जो भी उनसे मिलता था, वो उनका मुरीद हो जाता था, वो बेहद जिंदादिल इंसान थे।

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मन की बात साझा की थी
एटा के गांव तरगवां के श्यामवीर राठौर उन्हें याद करते हुए कहते हैं कि जब उनसे आखिरी बार फोन पर बात हुई थी तो उन्होने मुझसे मन की बात साझा की थी, वो गांव तो बहुत जल्दी-जल्दी नहीं आते थे, लेकिन फोन पर हाल-चाल लेते रहते थे। श्यामवीर राठौर की आंखें सुबोध कुमार को याद कर छलछला गई।

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एक साल पहले आए थे गांव
मालूम हो कि इंस्पेक्टर सुबोध कुमार के पिता राम प्रकाश भी पुलिस में थे, कई साल पहले नौकरी के दौरान ही उनकी मौत गई थी, जिसके बाद अनुकंपा के आधार पर सुबोध कुमार की पुलिस में भर्ती हुई थी, सुबोध अंतिम बार पिछळे साल अपने पैतृक गांव पहुंचे थे, तब उनकी मां का देहांत हुआ था, जिसके बाद वो श्राद्ध-कर्म में शामिल होने के लिये गांव पहुंचे थे।

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भाई आर्मी से रिटायर्ड
सुबोध कुमार खुद यूपी पुलिस में थे, तो उनके बड़े भाई अतुल कुमार फौज से रिटायर्ड हैं, फिलहाल वो दिल्ली में रहकर एक सिक्योरिटी कंपनी में नौकरी कर रहे हैं, सुबोध के परिवार में उनकी पत्नी रजनी और दो बेटे सरोज (20 साल) और सोनू (17 साल) हैं।

गांव के लिये कुछ करना चाहते थे
गांव तरगवां में सुबोध कुमार के दो सगे चाचा अभी भी रहते हैं, जिनमें एक का नाम राम रक्षपाल उर्फ घूरे सिंह है, तो दूसरे का नाम राम निवास है, गांव वालों का कहना है कि सुबोध कुमार जब भी गांव आते थे, तो वो वहां से बच्चों से पढाई-लिखाई के बारे में बात करते थे, उनका सपना था कि उनके गांव का हर बच्चा अच्छे से पढाई करे, बड़े-बड़े पदों पर जाए, वो बच्चों से कहते थे कि पढाई कर गांव का नाम रोशन करो, ग्रामीण श्यामवीर राठौर ने बताया कि अभी 16-17 दिन पहले सुबोध ने उनसे फोन पर बात की थी, वो हाल-चाल जान रहे थे, उन्होने तब भी इस बात का जिक्र किया था, कि गांव के बच्चों की पढाई के लिये उन्हें कुछ करना है, लेकिन उनका ये सपना अधूरा ही रह गया, और वो विदा हो गये।