बीजेपी-जदयू के चक्रव्यूह में ‘फंस’ गये हैं उपेन्द्र कुशवाहा, इस वजह से नहीं ले पा रहे फैसला

उपेन्द्र कुशवाहा की दुविधा का सबसे बड़ा कारण ये है कि उनकी पार्टी के दो विधायक हैं, ललन पासवान और सुधांशु रंजन, दोनों ही खुलकर कह चुके हैं, कि वो एनडीए में ही रहना चाहते हैं।

New Delhi, Dec 06 : राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का मंथन बेतिया के वाल्मीकि नगर में चल रहा है, ऐसा कहा जा रहा है कि इसमें कार्यकर्ताओं से मिलने के बाद पार्टी प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा ये तय करेंगे, कि एनडीए में बने रहना है या नहीं, उनके महागठबंधन के साथ सियासी खीर बनाने की भी चर्चा हो रही है, 6 दिसंबर को खुले अधिवेशन में अंतिम फैसला लिये जाने की बात कही जा रहा है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या ये कवायद सिर्फ दिखावे के लिये है, या फिर सच में वो कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। ये सवाल इसलिये उठ रहे हैं क्योंकि उन्होने सोमवार को कहा कि वो मई तक मंत्रिमंडल का हिस्सा रहेंगे, कुशवाहा दुविधा की राजनीति के संकेत दे रहे हैं, साथ ही अपनी ही बुनी जाल में फंस रहे हैं।

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बयान ने कई सवालों को दिया जन्म
उपेन्द्र कुशवाहा के इस बयान से ये भी साफ हो गया है, कि फिलहाल वो किसी निर्णय पर नहीं पहुंचे हैं, वो बस बीजेपी से मोल भाव करने में लगे हैं, सवाल ये भी है कि क्या कुशवाहा एनडीए छोड़ेंगे, वो महागठबंधन में शामिल होंगे, या फिर वो दुविधा में फंसे हैं, जहां से निकलने का उन्हें फिलहाल कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। उनके बयानों से तो कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है।

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विधायक एनडीए के साथ
रालोसपा प्रमुख की दुविधा का सबसे बड़ा कारण ये है कि उनकी पार्टी के दो विधायक हैं, ललन पासवान और सुधांशु रंजन, दोनों ही खुलकर कह चुके हैं, कि वो एनडीए में ही रहना चाहते हैं, दोनों विधायकों ने उनकी इच्छा के खिलाफ बीजेपी और जदयू से बारी-बारी मुलाकात भी की, अगर कुशवाहा एनडीए से अलग होने का फैसला लेते हैं, तो संभावना है कि उनके दोनों विधायक जदयू या बीजेपी में शामिल हो जाएंगे।

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सांसद और विधायक ही नहीं
कुशवाहा के अलावा उनकी पार्टी के दूसरे सांसद अरुण कुमार पहले से बागी हैं, वो अपना अलग गुट चला रहा है, तीसरे सांसद राम कुमार शर्मा ने भी एनडीए के साथ ही रहने की बात कही है, ऐसे में उनके सामने दुविधा ये है कि अगर वो एनडीए छोड़ महागठबंधन में जाते हैं, तो अकेले पड़ जाएंगे, क्योंकि उनके साथ ना तो विधायक हैं और ना ही सांसद। दूसरी ओर अगर वो एनडीए में रहते हैं, तो दो सीटों से ही संतोष करना पड़ेगा, साथ ही ऐसी मजबूरी भी होगी, कि सीएम नीतीश कुमार से नीचे ही रहेंगे, बिहार में एनडीए का चेहरा बनने की उनकी ख्वाहिश धरी की धरी रह जाएगी, वो पशोपेश की स्थिति में हैं कि क्या किया जाए।

दो विकल्प
रालोसपा प्रमुख के सामने दो विकल्प हैं, दोनों में ही वो असहज दिख रहे हैं, अगर एनडीए में रहे तो नीतीश कुमार उनकी सियासी हैसियत खत्म करने में देर नहीं लगाएंगे। दूसरी ओर महागठबंधन में जाते हैं, तो तेजस्वी के पिछलग्गू बनकर रह जाएंगे, उन्हें वैसी तरजीह नहीं मिलेगी, जिसकी वो उम्मीद कर रहे हैं, इसी वजह से बार-बार पैर बाहर निकालने के बाद भी वो वापस खींच लेते हैं, इसी वजह से वो एनडीए छोड़ने को तैयार नहीं हो रहे हैं।