खट्टर ने अंग्रेजी को खूंटे पर टांग दिया

खट्टर के इस हिंदी-प्रेम से कई अफसर घबराए हुए हैं। ऐसे आदेश पहले भी कई मुख्यमंत्रियों ने जारी किए हैं लेकिन उनका पालन कम और उल्लंघन ज्यादा होता रहा है।

New Delhi, Jan 04 : हरयाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने अपने प्रदेश में एक ऐसा काम कर दिखाया है, जिसका अनुकरण देश के सभी हिंदी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को करना चाहिए। उन्होंने आदेश जारी किया है कि हरयाणा का सरकारी कामकाज अब हिंदी में होगा। जो भी अफसर या कर्मचारी अब अंग्रेजी में कोई भी पत्र या आदेश या दस्तावेज तैयार करेगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।

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खट्टर के इस हिंदी-प्रेम से कई अफसर घबराए हुए हैं। ऐसे आदेश पहले भी कई मुख्यमंत्रियों ने जारी किए हैं लेकिन उनका पालन कम और उल्लंघन ज्यादा होता रहा है। हरयाणा में ही नहीं, सभी हिंदी राज्यों में सरकारी फाइलों में ज्यादातर लिखा-पढ़ी अंग्रेजी में ही होती है। उनकी विधानसभाओं में सारे कानून अंग्रेजी में बनते हैं। उनकी ऊंची अदालतों में फैसले और बहस का माध्यम भी प्रायः अंग्रेजी ही होता है। सरकार की फाइलों में ही नहीं, उनकी सार्वजनिक घोषणाओं और विज्ञापनों में भी अंग्रेजी का बोलबाला रहता है। सभी हिंदी राज्यों के स्कूलों और कालेजों में अंग्रेजी अनिवार्य है।

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उच्च शिक्षा और शोध-कार्य भी अंग्रेजी में ही होते हैं। सरकारी दफ्तरों और शहरों में नामपट भी प्रायः अंग्रेजी में ही टंगे होते हैं। पता नहीं, खट्टरजी कितनी सख्ती से पेश आएंगे और ऊपर बताए सभी स्थानों पर हिंदी चलवाएंगे ? हरयाणा का पूर्ण हिंदीकरण हो जाए तो देश के सभी प्रांतों को स्वभाषा के इस्तेमाल की प्रेरणा मिलेगी। पंजाब में चले हिंदी आंदोलन के कारण हरयाणा का जन्म हुआ। 1957 में याने अब से 62 साल मैंने इसी आंदोलन के तहत पटियाला की जेल भरी थी। हिंदी के नाम पर बने इस प्रदेश का सारा काम हिंदी में नहीं होगा तो किसी प्रांत में होगा ?

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मेरे आग्रह पर स्व. भैरोसिंहजी शेखावत ने मुख्यमंत्री के तौर पर 35-40 साल पहले राजस्थान में एक कठोर नियम बनाया था। वह यह कि राजस्थान के प्रत्येक सरकारी कर्मचारी को हर दस्तावेज पर हिंदी में ही दस्तखत करने होंगे। इस नियम का पालन समस्त हिंदी-राज्यों के अलावा केंद्र सरकार में भी होना चाहिए लेकिन हमोर अधपढ़ नेता अंग्रेजी के गुलाम हैं। उनमें खुद इतनी हिम्मत नहीं कि वे अपने हस्ताक्षर स्वभाषा में करे। वे दूसरों से यह आग्रह कैसे करेंगे ? मैं किसी भी विदेशी भाषा का विरोधी नहीं हूं। मैंने स्वयं कई विदेशी भाषाएं सीखी हैं लेकिन मैं अपनी भारतीय भाषा को नौकरानी बनाकर किसी विदेशी भाषा को महारानी बनाने के विरुद्ध हूं। अंग्रेजी की दिमागी गुलामी में हमारी जनता और नेता, सभी डूबे हुए हैं। यदि खट्टरजी थोड़ी भी कोशिश करें और वह थोड़ी भी सफल हो जाए तो गनीमत है। खट्टर ने अंग्रेजी को खूंटी पर टांग दिया है।

( वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)