कुंभ – वे किस हैसियत से निमंत्रण दे गईं

सवाल यह भी है कि रीता बहुगुणा ने किस हैसियत से निमंत्रण दिया ? क्या वे कुम्भ की आयोजक हैं ?

New Delhi, Jan 13 : उतर प्रदेश सरकार की मंत्री रीता बहुगुणा जोशी हाल में पटना आई थीं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत कई मंत्रियों और नेताओं से मिलकर उन्होंने प्रयागराज के कुम्भ में आने का निमंत्रण दिया। प्रेस कांफ्रेंस कर उन्होंने कुम्भ में सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई सुविधाओं की जानकारी दी और बिहार के लोगों को भी वहां आने का निमंत्रण दिया। ऐसा पहली बार हुआ जब कोई मंत्री कुम्भ का निमंत्रण देता घूम रहा हो। कुम्भ आयोजन की परंपरा सदियों से चली आ रही है। लेकिन कभी किसी ने किसी को यहां आने का निमंत्रण दिया हो ऐसा उदहारण नहीं मिलता। सवाल यह भी है कि रीता बहुगुणा ने किस हैसियत से निमंत्रण दिया ? क्या वे कुम्भ की आयोजक हैं ? या उत्तर प्रदेश सरकार ने कुम्भ का आयोजन किया है ? कुम्भ एक धार्मिक -सामाजिक समागम है। इसका आयोजन साधु -संत -सन्यासी करते हैं। सरकार की उसमें कोई भूमिका नहीं होती। सरकार सिर्फ सुविधायें मुहैया कराती है। उसकी भूमिका मात्र एक परिचारक की होती है। फिर वे किस हैसियत से निमंत्रण दे गईं ?

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कुम्भ की यही खासियत है कि इसके लिए किसी को सूचना नहीं दी जाती। न किसी को निमंत्रण दिया जाता है , न बुलाया जाता है। इसके आयोजन का कोई प्रचार -प्रसार भी नहीं किया जाता। पंचांग की तिथि के अनुसार लाखो लोग खुद ब खुद कुम्भ में चले आते हैं। यही कुम्भ की विशिष्टता है। यह एक सनातन परंपरा है। अनंत काल से चली आ रही है। कुम्भ में भारत की आत्मा के दर्शन होते हैं। दरअसल कुम्भ हिंदू दर्शन -‘अनेकता में एकता का ‘-विराट प्रदर्शन है। इसका मकसद हिंदुत्व धारा के विभिन्न मतों, पंथों, अखाडो और सम्प्रदायों के साधु -संतों -सन्यासियों को विचार -विमर्श का एक मंच प्रदान करना है। यह एक विशाल धर्म संसद है। वे यहां मिलते हैं। धार्मिक मुद्दों और सनातन धर्म की समस्याओं पर विचार करते हैं। इससे हिन्दू जीवन दर्शन को नयी दिशा मिलती है। उसकी रूढता दूर होती है। इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होती।

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मगर इस बार के प्रयाग कुम्भ में योगी सरकार ने एक नई परंपरा की शुरुआत कर दी है। अखबारों में ,टीवी में कुम्भ का प्रचार किया जा रहा है। वहां क्या -क्या सुविधायें उपलब्ध हैं ,इसका ढोल पिटा जा रहा है। यह सरकारी धन का दुरुपयोग तो है ही ,धर्म में सरकार का हस्तक्षेप भी है। यह एक खतरनाक परंपरा है। धर्म और राज्य का घालमेल किया जा रहा है। किसी भी बड़े सार्वजानिक आयोजन में नागरिक सुविधायें उपलब्ध कराना सरकार का कर्तव्य है। लेकिन खुद को आयोजक की भूमिका में उतार लेना संविधान की भावना और हिंदुत्व दर्शन, दोनों ही दृष्टि से ठीक नहीं। कुम्भ एक स्वावलम्बी धार्मिक आयोजन है। इसे सरकार मुखी बनाना ठीक नहीं। हिन्दू धर्म कभी किसी सरकार भरोसे नहीं रहा। यही उसकी विशिष्टता और ताकत है। कृपया इसे नष्ट न किया जाये।
सबसे ज्यादा हैरानी इस बात को लेकर है कि यह सब एक सन्यासी मुख्यमंत्री की सरकार कर रही है ! यह नई परम्परा कुम्भ की मूल भावना से मेल नहीं खाती। यह धार्मिक आयोजन को पिकनिक बनाने का फूहड़ प्रयास लगता है। सभी विचारवान लोगों को इसका विरोध करना चाहिए।

(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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