Opinion – जैसे राजनीति की गणित में 2+2=4 नहीं होता, वैसे ही सपा+ बसपा का वोट मतलब जीत नहीं होगा

ख़ुद की ताक़त पर विश्वास होना चाहिये घमण्ड नही क्योंकि फ़िरोज़ाबाद के उपचुनाव में कांग्रेस ने डिम्पल यादव को चुनाव हरा दिया था।

New Delhi, Jan 14 : रण भूमि में अपने हथियार तैयार किये जातें हैं दुश्मन पर नज़र रखी जाती हैं जो दल केवल अल्पसंख्यक वोटों के मद्देनज़र एक हुए हैं उन्होंने एक बार फिर 2017 के विधानसभा चुनाव वाली ग़लती दोहराई हैं । जो उन्होंने उत्तर प्रदेश में की थी । कुछ पार्टियों को लगता हैं अल्पसंख्यक चुनाव में भ्रमित हो जाता हैं और यह तय नही कर पता हैं की जितने वाली सेक्यूलर पार्टी कौन हैं , इसलिये उसका वोट बँट जाता हैं।

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जब की 2009 में मायावती जी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थी और मुलायम सिंह उनके सामने , प्रदेश में सीधी टक्कर इन पार्टियों के बीच देखा जा रहा था लेकिन परिणाम ने सबको चौंकाया था क्योंकि बाज़ी कांग्रेस ने मारी थी , इस बार के 2019 के लोकसभा चुनाव का हाल भी कुछ वैसा ही हैं केन्द्र के चुनाव में सीधे तौर पर NDA और UPA हैं लेकिन उत्तर प्रदेश की नयी जोड़ी इन दोनो ही गठबंधन से बाहर हैं फिर चुनाव बाद किसके साथ और किस शर्त पर साथ जाएँगे बड़ा सवाल हैं , क्योंकी ख़ुद के पास तो किसी भी क़ीमत पर इतने सदस्य नही होंगे की प्रधानमंत्री सपा या बसपा से बन जाय फिर समर्थन किसको अगर कांग्रेस से सौदा नही पटा तो भाजपा के साथ भी जा सकते हैं क्या और अभी अगर साथ नही आ रहे तो चुनाव के बाद क्या – क्या सौदेबाज़ी होगी यह भी मतदाता समझता हैं और उसको जानने का हक़ भी हैं ।

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ख़ुद की ताक़त पर विश्वास होना चाहिये घमण्ड नही क्योंकि फ़िरोज़ाबाद के उपचुनाव में कांग्रेस ने डिम्पल यादव को चुनाव हरा कर और 2017 के बिधानसभा चुनाव में शिवपाल यादव ने अखिलेश के वोट बैक को किस तरह प्रभावित किया था उसका परिणाम सामने हैं ।
चुनाव तो भाजपा से कांग्रेस ही लड़ेगी क्योंकि बाराबंकी में पी एल पूनिया , कुशीनगर में आर पीएन सिंह फ़ैज़ाबाद में निर्मल खत्री , सुल्तानपुर में संजय सिंह प्रतापगढ़ से रत्ना सिंह , उन्नाव से अनु टंडन , कानपुर से श्रीप्रकाश जायसवाल , आगरा से राजबब्बर झाँसी से प्रदीप जैन इलाहाबाद से प्रमोद तिवारी धौरहरा से जतीन प्रसाद बरेली से प्रवीण ऐरन रामपुर नूरबानो अमेठी से राहुल गाँधी रायबरेली से सोनिया गाँधी वाराणसी से राजेश मिश्रा इसके अलावा कांग्रेस खीरी , मुरादाबाद , फ़ारूखाबाद , अकबरपुर , बहराइच, श्रावस्ती , गोंडा , डुमरियागंज से 2009 का लोकसभा चुनाव जीत चुकी हैं और इस बार का चुनाव तो नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गाँधी बना कर लड़ा जा रहा हैं जैसे की राजस्थान , मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में देखने को मिल चुका हैं |

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और इसबार तो अखिलेश यादव को अपने ही गढ़ में शिवपाल यादव से भी कड़ी टक्कर मिलनी तय हैं क्योंकी जब मुख्यमंत्री रहते वो अपने चाचा को नही रोक पाये तो क्या इसबार इटावा , फ़िरोज़ाबाद , सम्भल , बदायूँ , एटा , में रोक पायेंगे यह भी बड़ा सवाल हैं क्योंकि राजनीति की गणित में 2+2 = 4 नही होता इसलिये सपा + बसपा का वोट + थोड़ा भी अल्पसंख्यक वोट का मतलब जीत नही होगा | अब आगें देखिये रणभूमि का असल योद्धा कौन साबित होता हैं ।

(वरिष्ठ पत्रकार विनय राय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)