राजनीतिक उत्तराधिकारी पर खुलकर बोले सुशासन बाबू, प्रशांत किशोर को  लेकर अमित शाह ने दो बार किया फोन

प्रशांत किशोर को अपना उत्तराधिकारी के सवाल पर उन्होने कहा कि उनसे मुझे काफी लगाव है, लेकिन उत्तराधिकारी जैसी बातें हमें नहीं करनी चाहिये, ये राजशाही नहीं है।

New Delhi, Jan 16 : बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने मंगलवार को दावा करते हुए कहा कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को जदयू में शामिल करने का उन्हें दो बार सुझाव दिया, सुशासन बाबू एक निजी न्यूज चैनल के कार्यक्रम में प्रशांत किशोर को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर देखने से जुड़े सवाल पर ये जवाब दिया।

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जदयू में नंबर दो
आपको बता दें कि पीके को पिछले साल सितंबर में जदयू की सदस्यता दी गई, इसके कुछ दिनों बाद ही उन्हें पार्टी में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद दे दिया गया, जिसके बाद अटकलें लगनी शुरु हो गई कि नीतीश कुमार उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने के बारे में सोच रहे हैं। वैसे भी पार्टी में नीतीश के बाद पीके ही नंबर दो माने जाते हैं।

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प्रशांत किशोर से लगाव
नीतीश ने कहा कि वो हमारी पार्टी में भले कुछ दिन पहले शामिल हुए हैं, लेकिन वो हमारे लिये नये नहीं हैं, 2015 विधानसभा चुनाव के दौरान वो हमारे साथ काम कर चुके हैं, थोड़े समय के लिये कहीं और व्यस्त हो गये थे, कृपया मुझे बताने दें कि अमित शाह ने दो बार प्रशांत किशोर को जदयू में शामिल करने के लिये कहा था, इसके साथ ही सुशासन बाबू ने कहा कि उन्हें पीके से काफी लगाव है।

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राजशाही नहीं है
प्रशांत किशोर को अपना उत्तराधिकारी के सवाल पर उन्होने कहा कि उनसे मुझे काफी लगाव है, लेकिन उत्तराधिकारी जैसी बातें हमें नहीं करनी चाहिये, ये राजशाही नहीं है। नीतीश ने कहा कि पीके ने समाज के सभी तबके से युवा प्रतिभाओं को राजनीति की ओर आकर्षित करने की काम सौंपा गया है, राजनीतिक परिवारों में नहीं जन्मे लोगों की राजनीति से पहुंच दूर हो गई है।

राहुल गांधी की वजह से महागठबंधन छोड़ा
नीतीश ने महागठबंधन छोड़ने के सवाल पर कहा कि पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर जब भ्रष्टाचार के आरोप लगे, तो राहुल गांधी चुप थे, उनकी अक्षमता की वजह से वो महागठबंधन से बाहर हो गये, इसके साथ नीतीश ने दावा करते हुए कहा कि 2015 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 40 सीटें दिलाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी, लेकिन राहुल गांधी ने उन्हें निराश किया, कोई बयान तक नहीं दिया, जिससे मैं महागठबंधन में रहने के लिये दोबारा विचार तक कर सकूं, मेरा हमेशा रुख साफ रहा है, कि अपराध, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता से कोई समझौता नहीं, उनकी कार्यशैली ऐसी थी, कि मेरे लिये उनके साथ काम करना मुश्किल होता जा रहा था, सभी स्तरों पर उनका हस्तक्षेप था, उनके लोग फरमानों के साथ थाने में फोन करते थे। जिसके बाद मुझे लगा कि इससे बेहतर है बाहर निकल जाएं।