‘ममता के मंत्री को पुराने दिन याद आ रहे होंगे, टीएमसी प्रमुख लालू का हाल देख घबराई हुई है’

चारा घोटाले की तर्ज पर ही कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार चिट फंड घोटाला जांच के अधिकारी नियुक्त किये गए थे। उन्होंने बहुत सारे सबूत और दस्तावेज जमा किये थे।

New Delhi, Feb 04 : पश्चिम बंगाल सरकार के मंत्री उपेन विश्वास को आज अपने पुराने दिन जरूर याद आ रहे होंगे, जब वे CBI ज्वाइंट डायरेक्टर के रुप में पटना में चारा घोटाले की जांच कर रहे थे। कोलकाता में आज पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के घर की तलाशी लेने के मामले में CM ममता बनर्जी और CBI जिस तरह आमने-सामने आ गये हैं, लगभग वैसी ही स्थिति 1996 में बिहार में हुई थी। तब लालू प्रसाद CM थे। CBI चारा घोटाले में लालू को गिरफ्तार करना चाहती थी, लेकिन स्थानीय प्रशासन फोर्स मुहैया नहीं करा रहा था। तब विश्वास ने लालू की गिरफ्तारी के लिये सेना से मदद मांगी थी। इसको लेकर तब बड़ा बवाल मचा था।

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प. बंगाल का शारदा चिट फंड घोटाला और चारा घोटाला में आश्चर्यजनक समानता है। दोनों घोटाले में अधिकारी और नेता शामिल रहे हैं। कोर्ट के आदेश से दोनों घोटालों की CBI जांच हुई। दोनों घोटाले सरकार के संरक्षण में अंजाम दिये गये। CBI जांच के पहले उन्हीं सरकारों ने जांच के लिए समिति गठित की थी। चारा घोटाले के पहले जांच अधिकारी अभी जेल में सजा भुगत रहे हैं।

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चारा घोटाले की तर्ज पर ही कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार चिट फंड घोटाला जांच के अधिकारी नियुक्त किये गए थे। उन्होंने बहुत सारे सबूत और दस्तावेज जमा किये थे। बाद में SC के आदेश के बाद CBI ने जांच शुरु की तो राजीव ने उन्हें दस्तावेज सौपने से मना कर दिया। CBI जब आज उनके घर की तलाशी लेने गई तो उन्हें बंगाल पुलिस ने हिरासत में ले लिया। CM ममता बनर्जी खुलकर CBI के विरोध और राजीव के पक्ष में उतर आई हैं। ठीक ऐसे ही तब लालू CBI के विरोध में उतरे थे। लालू आज रांची के जेल में उसी चारा घोटाले की सजा भुगत रहे हैं। और उन्हें इस अंजाम तक पहुंचानेवाले उपेंद्र विश्वास आज ममता सरकार में कल्याण मंत्री हैं।

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शायद ममता लालू के अंजाम से घबराई हुई हैं। उन्हें यह डर सता रहा होगा कि पुलिस आयुक्त के पास मौजूद घोटाले के कागजात अगर CBI के हाथ लग गए तो कहीं वे भी लालू गति को प्राप्त न हो जायें !
जैसे आज कोलकाता में CBI को CRPF की सुरक्षा लेनी पड़ी, 1996 में बिहार में भी उपेन विश्वास को केंद्रीय बल की सुरक्षा लेनी पड़ी थी। इतिहास में ऐसी साम्यता दुर्लभ है।

(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)