मुलायम सिंह यादव को इतना गदगद होकर कम ही बोलते देखा, पहलवानी का बड़ा दांव खेल गये नेताजी

मुलायम ने अपनी यह कामना सी बी आई के डर से की , लालू यादव का हश्र देखते हुए । या औरंगज़ेब सरीखे पुत्र अखिलेश यादव द्वारा अपनी पीठ में छुरा घोंपने , या मायावती से अखिलेश के समझौते का मलाल धोया ।

New Delhi, Feb 13 : संसद में 16 वीं लोकसभा के आज सदन के आख़िरी दिन नरेंद्र मोदी का भाषण भावभीना था , मर्यादित , तथ्यात्मक और तार्किक था। बिना नाम लिए राहुल गांधी को बार-बार निशाना बनाया । सोनिया गांधी बैठी खिसियाती रहीं । लेकिन मोदी के इस बढ़िया भाषण के बावजूद आज लोकसभा में नंबर और सुर्खियां ले गए मुलायम सिंह यादव ।

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मुलायम सिंह यादव ने सोनिया गांधी के बगल में खड़े हो कर कहा कि मैं चाहता हूं , मेरी कामना है कि इस सदन के सभी सदस्य दुबारा भी जीत कर आएं । हाथ जोड़ कर नरेंद्र मोदी को संबोधित करते हुए कहा कि हम सब लोग तो इतना बहुमत कभी ला नहीं सकते तो मैं चाहता हूं कि प्रधान मंत्री जी , आप फिर बनें प्रधान मंत्री । इस के पहले मुलायम मोदीमय होते हुए बोले कि आप सब को साथ ले कर चले , सब का काम किया । सब से मिलजुल कर सब का काम किया है । मैं ने जब भी कोई काम कहा , आप ने तुरंत आदेश किया । नरेंद्र मोदी ने हाथ जोड़ कर मुलायम की यह बात सुनी और फिर अपने भाषण में मुलायम के आशीर्वाद का ज़िक्र भी किया ।

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तो यह क्या था ?
मुलायम ने अपनी यह कामना सी बी आई के डर से की , लालू यादव का हश्र देखते हुए । या औरंगज़ेब सरीखे पुत्र अखिलेश यादव द्वारा अपनी पीठ में छुरा घोंपने , या मायावती से अखिलेश के समझौते का मलाल धोया । या कांग्रेस को ध्वस्त करने का लोहिया का सपना मोदी द्वारा पूरा किए जाने की खुशी मुलायम के भीतर खिलखिला रही थी । या यह पहलवानी का कोई दांव था , खीझ थी , या कुछ और था। क्या था आख़िर यह। मुझे लगता है अब मुलायम सिंह यादव भी यह नहीं बता सकते । वैसे भी बीते साढ़े तीन दशक में इतना गदगद हो कर बोलते हुए मैं ने मुलायम सिंह यादव को कम ही देखा है । राजकपूर की एक महत्वपूर्ण फिल्म प्रेम रोग में संतोष आनंद का लिखा एक गीत याद आ गया है :

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न तो अपना तुझ को बना सके
न ही दूर तुझ से जा सके
कहीं कुछ न कुछ तो ज़ुरूर था
न तुझे पता न मुझे पता
ये प्यार था या कुछ और था
न तुझे पता न मुझे पता
ये निगाहों का ही क़ुसूर था
न तेरी ख़ता न मेरी ख़ता
ये प्यार था या कुछ और था

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)