ये ‘गोदी मीडिया’ क्या है! पत्रकारिता की एक बुनियादी नैतिकता है

कुछ पुराने लोग यह जायज सवाल भी पूछते हैं कि इस देश में ‘गोदी मीडिया’ कब नहीं थी ? इन दिनों चुनाव का मौसम है।

New Delhi, Mar 08 : यदि मीडिया किसी नेता या अन्य पर आरोप लगाती है तो उस आरोप के संबंध में उस नेता या व्यक्ति का भी पक्ष आरोपों के साथ-साथ ही दे दिया जाना चाहिए। यदि उस आरोप के एकतरफा प्रचारित होने से प्रतिद्वंद्वी नेता या व्यक्ति को राजनीतिक लाभ या अन्य लाभ मिलता है तो ऐसा प्रचार करने वाली मीडिया को ‘गोदी मीडिया’ कहा जा सकता है।
यह बात सभी पक्षों की मीडिया पर लागू होती है।

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ऐसी पक्षधरता चाहे मोदी की, की जाए या मोदी विरोधियों की, दोनों पक्षधर मीडिया को ‘गोदी मीडिया’ ही कहना न्यायोचित होगा। हां, ‘गोदी मीडिया’ के इस ताजा दौर में इस देश में मीडिया का एक हिस्सा ऐसा भी है जिसका अपना कोई एजेंडा नहीं।

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कुछ पुराने लोग यह जायज सवाल भी पूछते हैं कि इस देश में ‘गोदी मीडिया’ कब नहीं थी ?
इन दिनों चुनाव का मौसम है। वैसे भी चुनावों का इतिहास बताता है कि मीडिया का चुनाव नतीजे पर बहुत ही कम असर पड़ता रहा है।

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यदि असर पड़ता होता तो 1995 के बिहार विधान सभा चुनाव में लालू प्रसाद के दल को बहुमत नहीं मिलता। इसी तरह इंदिरा गांधी को 1971 के लोक सभा चुनाव में जीत हासिल नहीं होती।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)