भीम ऑर्मी के बढते प्रभाव से परेशान हैं मायावती, बुआ का खेल खराब तो बीजेपी की राह हो रही आसान

यूपी में दलित वोट बैंक की राजनीति सालों से होती रही है, इसी समझने के लिये आपको 2007 विधानसभा चुनाव में जाना होगा।

New Delhi, Apr 10 : लोकसभा चुनाव 2019 के लिये पहले चरण के मतदान में अब कुछ घंटे का ही समय बचा है, चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा और रालोद का महागठबंधन है, जिसका सीधा मुकाबला बीजेपी के साथ माना जा रहा है, दोनों खेमों की नजर दलित वोट बैंक पर है, अभी तक इस वोट बैंक पर बसपा सुप्रीमो मायावती अपना हक जताती रही है, लेकिन पिछले दो-तीन चुनावों से उनका ये वोट बैंक दरक रहा है, इस बार कहा जा रहा है कि भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर के राजनीति में आने से मायावती का जनाधार और कम हो सकता है, क्योंकि दोनों ही उसी वोट बैंक पर दावा ठोंक रहे हैं।

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दलित वोट बैंक की राजनीति
यूपी में दलित वोट बैंक की राजनीति सालों से होती रही है, इसी समझने के लिये आपको 2007 विधानसभा चुनाव में जाना होगा, जब बसपा को पूर्ण बहुमत मिली थी, कहा जाता है कि तब मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लिया था, नतीजा 30.43 फीसदी वोट के साथ 206 सीटें मिली थी, फिर 2009 लोकसभा चुनाव में भी बसपा ने 27.4 फीसदी वोट हासिल किये, और बसपा के 21 सांसद जीतकर दिल्ली पहुंचे ।

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2012 में दरक गया किला
हालांकि 2012 विधानसभा चुनाव में मायावती का सोशल इंजीनियरिंग की चमक फीकी पड़ गई, बसपा सिर्फ 80 सीटों तक सीमित रह गई, वोट शेयर भी 5 फीसदी गिरकर 25.9 पर आ गई, 2014 लोकसभा चुनाव तो मायावती के लिये किसी बुरे सपने जैसा था, क्योंकि ना सिर्फ उनका वोट फीसदी घटकर 20 फीसदी पर पहुंच गया, बल्कि उनका खाता भी नहीं खुला। 2017 विधानसभा चुनाव ने तो मायावती के राजनीतिक ताकत पर ही सवाल खड़े कर दिये, क्योंकि उनकी पार्टी सिर्फ 19 सीटों में सिमट गई।

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रिजर्व सीटें
यूपी में 17 सीटें सुरक्षित है, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में बीएसपी के खाते में एक भी सीट नहीं आई, हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पिछली बार मोदी लहर थी, इस वजह से बसपा का खाता नहीं खुल पाया, लेकिन इस बार दलित राजनीति का एक नया चेहरा उभरकर सामने आया है। भीम ऑर्मी प्रमुख चंद्रशेखर ने सीधे पीएम मोदी को वाराणसी में चुनौती देने का ऐलान किया है, जिसके बाद से मायावती लगातार उन पर हमला बोल रही है, विश्लेषकों का कहना है कि मायावती अपने वोट बैंक में सेंध लगने के डर से उन पर हमला बोल रही है, दूसरी ओर कांग्रेस चंद्रशेखर को फुल सपोर्ट करती दिख रही है, यानी अगर दलित वोट बैंक का बंटवारा हुआ, तो इसका नुकसान बसपा को और सीधा फायदा बीजेपी को होगा।