Opinion – चुनाव में नकदी की आवाजाही रोकने के लिए सेना लगाने की जरूरत!
लोकतंत्र को भी बचा लेना चाहिए। अन्यथा ये धन पशु व वंशवादी नेता लोकतंत्र को देर- सवेर मध्य युग में ढकेल देंगे।
New Delhi, Apr 13 : पूर्व बिहार से एक व्यक्ति जमीन खरीदने के लिए पैसे लेकर पटना आने वाला था। अब वह चुनाव के बाद ही आ पाएगा। उसे पकड़े जाने का डर है। स्वच्छ चुनाव को संभव बनाने की कोशिश में लगे अफसर सड़कों पर जहां -तहां गाडि़यां रोक कर जांच कर रहे हैं। एक सामान्य व्यक्ति तो उस जांच के भय से अपने जरूरी काम के लिए भी पैसे लेकर यात्रा नहीं कर रहा है। पर, ऐसी जांचों का असर कतिपय दबंग व बाहुबली वी.वी.आई.पी. नेताओं पर बहुत कम ही पड़ रहा है।
ऐसी अवहेलना की खबरें पहले भी आती रहती थीं। कुछ साल पहले उत्तर बिहार में ऐसी ही जांच की कोशिश मेें लगे डी.एस.पी. और मजिस्ट्रेट को एक बड़े नेता ने सरेआम धमकाया। अपनी गाड़ी की जांच नहीं होने दी। उस घटना के बाद अफसर भी सहमे रहते हैं। इस बार भी पश्चिम बिहार में एक दबंग नेता ने अपनी गांडि़यों की जांच से बड़े अफसरों को भी डांट -डपट कर रोक दिया।क्या उनकी गाडि़यों में भारी नकदी रखी होती है ? इच्छुक मतदाताओं में बांटने के लिए ?
ऐसे नेताओं की औकात सेना ही बता सकती है। क्योंकि कहीं-कहीं अर्ध सैनिक बल भी फेल है। चुनावों में सेना की उसी तरह ड्यूटी लगनी चाहिए जिस तरह कश्मीर को बचाने के लिए सेना लगी हुई है।
लोकतंत्र को भी बचा लेना चाहिए। अन्यथा ये धन पशु व वंशवादी नेता लोकतंत्र को देर- सवेर मध्य युग में ढकेल देंगे। चुनाव आयोग के अफसर इन दिनों आचार संहिता के हनन का केस जरूर कर रहे हैं, पर अंततः सजा शायद ही किसी को होती है। कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मुख्य मंत्री को लोअर कोर्ट से सजा हुई है।पर,उसे अपवाद ही माना जाएगा। हाल में नोट व मिठाई बांटने के आरोप में उत्तर प्रदेश के एक उम्मीदवार पर मुकदमा हुआ है। इस साल 1400 करोड़ रुपए पकड़े जा चुके हैं। यह 10 मार्च से एक अप्रैल तक का ही आंकड़ा है। ये रुपए मतदाताओं के बीच बांटे जाने थे।
मध्य प्रदेश ,आंध्र, कर्नाटका और तमिलनाडु में अपेक्षाकृत अधिक राशि पकड़ी गई। साथ में शराब और अन्य नशीली पदार्थ भी। जितने पकड़े गए,उससे कई गुना अधिक बच -बचाकर मतदाताओं के पास पहुंच गए।
(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)