चुनाव स्पेशल – बिहार की 40 सीटों में से 26 सीटों पर वंशवाद हावी है

मुझे लगता है कि दो -चार आम चुनावों के बाद सभी 40 सीटों पर वंशवादी ही मुख्य उम्मीदवार रहेंगे। पूरे देश का भी लगभग यही हाल हो सकता है।

New Delhi, Apr 14 : ‘प्रभात खबर’ ने लिखा है कि ‘बिहार की 40 सीटों में से 26 सीटों पर वंशवाद हावी है। इन सीटों पर सत्ता के दोनों दावेदार गठबंधनों ने ऐसे उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है जिनके सगे संबंधी पहले से ही राजनीति में रहे हैं। उम्मीदवारों के रूप में देखा जाए तो इनकी संख्या 29 पहुंच जाएगी।’

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मुझे लगता है कि दो -चार आम चुनावों के बाद सभी 40 सीटों पर वंशवादी ही मुख्य उम्मीदवार रहेंगे। पूरे देश का भी लगभग यही हाल हो सकता है। अधिक दिन नहीं लगेंगे जब वंशवादी उम्मीदवार ही हारेंगे और वंशवादी उम्मीदवार ही जीतेंगे। इस लोकतंत्र का स्वरूप ऐसा ही बनना था तो दरभंगा महाराज ही क्या बुरे थे ! अखबार-कारखाने आदि खोल कर न जाने कितने सौ लोगों को दरभंगा राज ने नौकरियां दी थीं। डुमरांव महाराज , बेतिया राज परिवार , कुरसैला इस्टेट, टेकारी राजा ……..आदि आदि !!!!!!!!! को भी याद कर लीजिए और आज के नए राजाओं को भी देख लीजिए।

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धन संपत्ति, रोबदाब, निजी संतरी, हावभाव, ऐशो आराम , दिखावटी बातों में कितना अंतर रह गया है ? इस बीच डा. जगन्नाथ मिश्र कहते हैं कि ‘….पहले दलों में प्रतिबद्ध कार्यकत्र्ता मिलते थे।अब सबको पारिश्रमिक चाहिए।’ @–हिन्दुस्तान-19 मार्च 2019@

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इसका कारण भी डाक्टर साहब से अधिक भला और कौन जान सकता है ? पहले कार्यकत्र्ताओं के बीच से भी एम.पी.,एम.एल.ए.,एम.एल.सी. के उम्मीदवार बनाए जाते थे। अब जब विधायक -सांसद,खास -खास खानदानों से ही बनेंगे तो फर्क तो आएगा ही ? जीवन भर सिर्फ कार्यकत्र्ता बने रहने के लिए राजनीतिक प्रतिबद्धता की उम्मीद क्योें ? वैसे भी अपवादों को छोड़कर राजनीति जब व्यापार हो जाए और अनेक बड़े नेताओं की निजी संपत्ति का विवरण देखकर भ्रम हो जाए कि यह किसी निजी कारखाने की खाताबही तो नहीं हैे तो फिर सिर्फ कार्यकत्र्ताओं से ही प्रतिबद्धता की उम्मीद क्यों ?

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)