Opinion- अपने ही सवालों में घिर रहे हैं कन्हैया कुमार, लगभग नेता बन चुके हैं

अगर मोदी जी के राज में कन्हैया कुमार को नौकर मिल सकता है, जिसके विरुद्ध सारी सरकार है तब भी। तो आम युवा के लिये तो स्वर्ग है ये देश रोजगार हेतु?

New Delhi, Apr 24 : कन्हैया कुमार लगभग नेता हो चुका है। बधाई। हाव भाव , कमर पर हाथ धर चीड़चिड़ाना और मुस्कुराहट से इतर चेहरे को झंडे से ज्यादा लाल कर आँख तरेरने की विकसित क्षमता ने गिरिराज सिंह को कड़ा टक्कर वाला विपक्ष बना दिया है।
मुझे अफ़सोस बस इस छात्र नेता के गायब हो रहे लॉजिक को लेकर है। अब इसी में चूकने लगा लड़का। चुनाव के शोर में झांव झांव करने लगा। वो जादू कमने लगा।

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कैसे?
कन्हैया कुमार अपने भाषण में कह रहे”हम तो phd हैं, कहीं भी लाख रुपा के नौकरी कर लेते। कहीं भी मिडिया में नौकरी कर लेते। कोई कमी है काम का? लेकिन फिर भी चुनाव लड़ने क्यों आये हम?”
फिर कन्हैया अपना कारण बताते हैं कि कैसे मनुष्यता और लोकतंत्र के एकदम खत्म ही हो चुके जीवन को बचाने के लिये इनका सांसद बनना जरूरी है और इसी कारण सब इनको rquest कर के लड़वा रहा वगैरह वगैरह……

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मेरा कहना है कि देश में क्या दू, तीन पीस ही phd है क्या? देश में लाखों phd भूंजा फाँक रहे कन्हैया जी।
और phd को जब इतना आसानी से लाख टका के नौकरी मिल ही जा रहा देश में, तो कन्हैया लड़ रहे किसके विरुद्ध? फिर कहाँ बेरोजगारी?
मिडिया में हर बोलने वाला को नौकरी मिल रहा,तब फिर क्या बेरोजगारी?

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अगर मोदी जी के राज में कन्हैया कुमार को नौकर मिल सकता है, जिसके विरुद्ध सारी सरकार है तब भी। तो आम युवा के लिये तो स्वर्ग है ये देश रोजगार हेतु?
ये सब एकदम मोदी लेवल का जुमला से तो बढ़िया मोदी हो जाना ही है न ।
कम से कम लॉजिक और लेवल मैंटेन रखिए कन्हैया कुमार,नही तो इस लेवल का नेता ढेर है।इसके लिये आपका जाना जरूरी नही संसद।
Jnu हैं तो वो स्तर बरकरार रहे। कुछ जोकर वैसे भी jnu के नाम पर बुतरखेली कर हँसी उड़वा रहे मंच मंच स्टूल स्टूल खड़े हो भाषण दे कर। जय हो।

(लेखक नीलोत्पल मृणाल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)