बिहार विभूति के जन्म दिवस पर – अनुग्रह बाबू का अनुकूल क्षेत्र सभा मंच नहीं बल्कि मेज और फाइल थी
अनुग्रह बाबू के उस कबूतर प्रेम के बारे में दिनकर ने लिखा है कि यह कबूतर अपने मालिक से कुछ ऐसा हिलमिल गया था कि आदमी से दूर भागने की उसकी आदत कुछ ढीली पड़ गई थी।
New Delhi, Jun 18 : बिहार विभूति डा.अनुग्रह नारायण सिंह –1887-1957-आजादी की लड़ाई के योद्धा थे। गांधी जी का जिन नेताओं ने चंपारण में साथ दिया था,उनमें अनुग्रह बाबू प्रमुख थे। उन्होंने बाद में कई बार जेल यातनाएं सहीं। वह बिहार के पहले मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री थे । सरकार में तत्कालीन मुख्य मंत्री बिहार केसरी डा.श्रीकृष्ण सिंह के बाद ही उनका स्थान था। बिहार विभूति के बारे में राष्ट्रकवि राम धारी सिंह दिनकर ने लिखा है कि एक जेल यात्रा में उन्होंने कबूतर पाल रखा था।
दिनकर की कलम से यह विवरण दिलचस्प व मर्मस्पर्शी बन गया है। वह लिखते हैं कि पक्षी आदमी से दूर भागते हैं। पर एक कहावत भी है कि जिस आदमी के सिर पर पक्षी बैठने लगे, उसे शुद्धात्मा समझो। अनुग्रह बाबू के उस कबूतर प्रेम के बारे में दिनकर ने लिखा है कि यह कबूतर अपने मालिक से कुछ ऐसा हिलमिल गया था कि आदमी से दूर भागने की उसकी आदत कुछ ढीली पड़ गई थी। आसपास फुदकते वह कभी अनुग्रह बाबू के माथेे पर जा बैठता तो कभी कंधे पर पांव जमा कर अपनी पंखे खुजलाने लगता था और कभी बगल में सट कर ध्यानमग्न हो जाता था।
अनुग्रह बाबू भी उसे बहुत ही प्यार करते थे। खाने के समय उसे अपने हाथ पर बिठा कर दाने खिलाते और अवकाश के समय उसे गोद में लेकर उसके डैनों को सहलाया करते थे। जेल में वह अनुग्रह बाबू के परिवार का शिशु सा बन गया था और कबूतर के लौटने में जब कभी कुछ देर हो जाती तो अनुग्रह बाबू इधर -उधर नजर घुमातेे हुए उसकी प्रतीक्षा करने लगते। अचानक एक दिन ऐसा हुआ कि एक बिल्ली ने उस प्रेम पुष्प का अचानक विनाश कर डाला। अनुग्रह बाबू जब तक दौड़ें-दौड़ें ,तब तक उस पक्षी के प्राण ही जाते रहे। लेकिन,उस घायल पक्षी को अनुग्रह बाबू ने उठा कर गले से लगा लिया और सिसक -सिसक कर खूब रोये।
कबूतर के लहू से एक ओर तो उनके कपड़े तर हो रहे थे दूसरी ओर उनकी आंखों से अश्रु धारा रुकने का नाम नहीं लेती थी। जिन लोगों ने भी उन्हें इस रुप में देखा, वे मन ही मन आश्चर्य करते रहे कि आखिर को यह प्रेम इस रुक्ष व्यक्तित्व के किस कोने में छिपा पड़ा था ? अनुग्रह बाबू के एक और गुण का वर्णन उनके जेल सह यात्री करते थे। दिनकर के अनुसार जो -जो देश भक्त जेल में ंअनुग्रह बाबू के चैके में खाते थे, वे जब जेल से निकले तो यह कहते निकले कि अनुग्रह बाबू सचमुच प्रांत के अर्थ मंत्री पद के योग्य हैं। इस काम में उनसे कोई बाजी नहीं मार सकता।
दूसरे चैके में लोग जितने पैसे में खाते थे,उतने ही पैसे में अनुग्रह बाबू अपने चैके में खाने वालों को अन्य चैकों से बेहतर भोजन देते थे। सप्ताह, पक्ष या महीना खत्म होते ही चैके के हर सदस्य के पास वह यह हिसाब भेज देते थे कि आपके मद में इतना खर्च हुआ और आपके हिसाब में इतने रुपये,इतने आने और इतने पैसे जमा हैं। अगर किसी खास चीज की जरूरत हो तो वह चीज आपके लिए मंगवा दी जाएगी। बात बहुत छोटी है,लेकिन इससे अनुगह बाबू के हिसाबी होने का जितन पता चलता है,उतना और किस बड़े काम से चलेगा ? जेल में उनके चैके का जब कोई आदमी बीमार हो जाता और उसे किसी खास किस्म के भोजन की जरूरत पड़ती तो ,तब अनुग्रह बाबू सभी के लिए वही भोजन बनवाते। इस पर अगर कोई मीन मेष करता तो वे उससे प्रेम पूर्वक कहते कि क्या हर्ज है कि हम एक या दो शाम चटपटी चीजें न खाएं ?
आखिर और लोग सोंधी और चटपटी चीजें खाएंगे तो उनके बीच का एक बीमार भाई अपने रुखे-सूखे भोजन को उत्साह के साथ कैसे ग्रहण करेगा ? दिनकर के अनुसार हिसाबी और प्रबंध कुशल मनुष्य का यह स्वभाव है कि वह बाहरी तड़क-भड़क पर नहीं जाकर, सीधे वस्तुओं के मूल पर दृष्टि डालता है, और वहां वह छोटी -छोटी बातों की भी जांच-पड़ताल करता है
जिन्हें दूसरे लोग कोई महत्व नहीं देते। चाहे मनुष्य राष्ट्र का प्रबंध कर रहा हो या चैके का इंतजाम,उसकी बुद्धि का खजाना और उसकी दृष्टि की दिशा तो एक ही रहती है। कहते हैं कि जेल के चैके के लिए जो नींबू मंगाये जाते थे, तब अनुग्रह बाबू उनकी छोटाई -बड़ाई की खास तौर से जांच करते थे। नींबू लाने वाले से दाम और दर पूछ कर उससे जिरह करने लगते थे। जिरह इस बात पर करते थे कि कल की कीमत से आज की कीमत में फर्क क्यों पड़ रहा है अथवा इतने छोटे -छोटे और दागदार नींबू तुमने क्यों खरीदे ? अनुग्रह बाबू का अनुकूल क्षेत्र सभा मंच नहीं बल्कि मेज और फाइल थी। योजना बनाने और उसे कार्यान्वित करने के लिए परिश्रम करने में वह कभी भी नहीं थकते थे। किसी नये संगठन को खड़ा करके फिर उसे मनोनुकूल सुचारू रुप देने के काम में उन्हें हमेशा ही सफलता मिली।
(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)