देवशयनी एकादशी है आज, संध्‍याकाल में जरूर करें ये काम, महत्व, कथा और पूजा विधि

आज देवशयनी एकादशी है आज के दिन भगवान विष्‍णु की आरोधना करने से मनोकामना की प्राप्ति होती है ओर जीवन में सुख का संचार होता है  ।आगे जाने इस दिन से जुड़ी महत्‍वपूर्ण बातें ।

New Delhi, Jul 12 : हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है । 12 जुलाई को ये एकादशी मनाई जाएगी । जानकारों के अनुसार इन 4 महीनों में भगवान विष्णु योग निद्रा में रहते हैं । जिसके बाद कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भगवान विष्णु की योग निद्रा पूर्ण होती है । इसी एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है । इस दिन से चातुर्मास भी शुरू हो जाते हैं । 12 जुलाई से लेकर अगले 4 महीनों तक कोई मांगलिक कार्य नहीं होंगे । लेकिन इन 4 महीनों में चातुर्मास के दौरान पूजा-पाठ, कथा, अनुष्ठान से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है । इन महीनों में भजन, कीर्तन, सत्संग, कथा, भागवत के लिए श्रेष्ठ समय माना जाता है।

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देवशयनी एकादशी
इस एकादशी को सौभाग्यदायिनी एकादशी भी कहा जाता है । पद्म पुराण में लिखा है कि इस दिन व्रत या उपवास रखने से जाने-अनजाने में किए गए पाप खत्म हो जाते हैं। वहीं इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी कहा गया है कि इस व्रत को करने से मनोकामना भी पूरी होती है। एकादशी पर भगवान विष्‍णु की आरोधना की जाती है । भारत के कई हिस्‍सो में देवउठनी एकादशी की रात भक्‍त एक साथ बैठकर भजन आदि कर भगवान का ध्‍यान करते हैं ।

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देवशयनी एकादशी की कथा
भागवत महापुराण में बताया गया है कि आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को शंखासुर राक्षस का वध हुआ था । तब से ही भगवान चार महीने तक क्षीर समुद्र में सोते हैं । वहीं कुछ अन्य ग्रंथों के अनुसार इस दिन का संबंध राजा बलिक की उस कथा से भी मामना जाता है जिसमें भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग दान के रूप में मांगे। भगवान ने पहले पग में पूरी पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में पूरे स्वर्ग को ढक लिया, तीसरा पग राजा बलि ने अपने सिर पर रखवाया। इससे प्रसन्न होकर भगवान ने राजा बलि को पाताल लोक का अधिपति बनाया और वरदान मांगने को कहा। कथानुसार इसके बाद बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप हमेशा मेरे महल में रहें । भगवान को वचनों में बंधता देख देवी लक्ष्मी ने बलि को भाई बनाया और भगवान को वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया। इसके बाद से भगवान विष्णु का अनुसरण करते हुए तीनो देव 4-4 महीने पाताल में निवास करते हैं । मान्‍यता है कि विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक, शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक करते हैं।

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पूजा विधि
देशशयनी एकादशी पर सुबह जल्दी उठें, घर की साफ-सफाई और नित्य कर्म से निवृत्त होकर पूरे घर में गंगाजल से छिड़काव करें। घर में यदि पूजा स्थल है तो वहां भगवान श्री हरि विष्णु की सोने, चांदी, तांबे या कांसे की मूर्ति स्थापित करें । इसके बाद विधि विधान से उनकी पूजा करें और भगवान विष्णु को पीतांबर से सजाएं। इसके बाद फिर व्रत कथा सुननी चाहिए और आरती कर के प्रसाद बांटें। इस दिन चंद्रमा को चावल की खीर भी समर्पित की जाती है । संध्‍या काल में पूजा आदि कर चंद्रमा को खीर चढ़ाएं ।