न्यायपालिका अपने कर्तव्यों का समयबद्ध तरीके से पालन करे तो सबकुछ कानून के अनुसार चलने लगेगा

न्यायपालिका को संविधान और कानून का अभिभावक माना जाता है। इसकी रक्षा की जिम्मेवारी दी गई है।

New Delhi, Aug 04 : देश के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने बिल्कुल ठीक कहा है कि देश में कानून के अनुसार कुछ नहीं हो रहा है। शायद ही देश का कोई नागरिक उनके इस कथन से असहमत हो। लेकिन उन्होंने पूरा सच नहीं कहा है। जो कहा है वह अधूरा सच है। पूरा और असल सच यह है कि देश में न्याय व्यवस्था विफलता के कगार पर पहुंच चुकी है। और इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेवार न्यायपालिका खुद है।

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न्यायपालिका को संविधान और कानून का अभिभावक माना जाता है। इसकी रक्षा की जिम्मेवारी दी गई है। लेकिन क्या न्यायपालिका अपनी भूमिका ईमानदारी से निभा रहा है? दिल पर हाथ रख कर सोचने की जरूरत है। दिल्ली से लेकर बाल्मीकि नगर तक 3 करोड़ से अधिक मुकदमें लंबित हैं। अपराधियों को सजा नहीं हो पा रही है। वे जमानत पर छूट कर फिर से अपराध में लिप्त हो जाते हैं। गवाहों को डरा-धमका कर केस कमजोर कर रहे हैं। लोगों को न्याय नहीं मिल रहा। इसके लिए सीधे तौर पर हमारी न्याय व्यवस्था जिम्मेवार है। क्यों साल दर साल आप पीड़ितों को तारीख पर तारीख देते रहते हैं?

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अगर देश में कानून माखौल बन गया है तो इसलिए क्योंकि अपराधियों को सजा नहीं मिल रही। मिलती भी है तो मामूली। इससे अपराधियों के हौसले बढ़े हुए हैं। आम आदमी डर-डर कर जीने को लाचार है। जनता में यह भी मैसेज है कि कोर्ट को अपराधियों के मानवाधिकार की चिंता ज्यादा है, निरपराध लोगों की कम। क्या अपराधियों का मानवाधिकार होना चाहिए ? जो शख्स समाज जीवन के लिए खतरा बन चुका हो, उससे समाज को कौन बचायेगा ?

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कहते हैं कि कानून के समक्ष सब बराबर है। सचमुच ऐसा है क्या? हमें तो ऐसा नजर नहीं आता? नेताओं और प्रभावशाली लोगों के मुकदमों की आनन-फानन में सुनवाई कैसे हो जाती है और कमजोर लोगों को सालों इंतजार करना पड़ता है। सामान्य नागरिक को तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाता है, लेकिन प्रभावशाली के मामले में पहले जांच की जाती है। ऐसे में कानून का सही तरीके से पालन कैसे होगा?
न्यायपालिका अगर अपने कर्तव्यों का ठीक और समयबद्ध तरीके से पालन करे तो सबकुछ कानून के अनुसार चलने लगेगा। आदतन कानून से खिलवाड़ करनेवालों को जब तक समाज से एलिमनेट नही किया जायेगा, कानून का राज प्रभावी नहीं होगा।

(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)