2050 में दुनिया की सबसे बड़ी भाषा ! ज़रूरी है कि हम आप हिंदी को अपने स्वाभिमान से जोड़ना सीखें

हिंदी अब विश्वविद्यालयी खूंटे को तोड़ कर आगे निकल आई है।कोई भाषा बाज़ार और रोजगार से आगे बढती है। हिंदी अब बाज़ार की भाषा तो बन ही चुकी है, रोजगार की भी इसमें अपार संभावनाएं हैं।

New Delhi, Sep 14: दुनिया अब हिंदी की तरफ़ बड़े रश्क से देख रही है। अमरीका, चीन जैसी महाशक्तियां भी अब हिंदी सीखने की ज़रूरत महसूस कर रही हैं और कि सीख रही हैं क्योंकि हिंदी के जाने बिना वह हिंदुस्तान के बाज़ार को जान नहीं सकते, हिंदी के बिना उनका व्यापार चल नहीं सकता। सो वह हिंदी सीखने, जानने के लिए लालायित हैं क्योंकि हिदी के बिना उनका कल्याण नहीं है। सच यह है कि हिंदी अब अपने पंख फ़ैला करउड़ने को तैयार हैऔर यकीन मानिए कि आगामी 2050 तक हिंदी दुनिया की सब से बड़ी भाषा बनने जा रही है।

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अब भविष्य का आकाश हिंदी का आकाश है। अब इसकी उड़ान को कोई रोक नहीं सकता। हिंदी अब विश्वविद्यालयी खूंटे को तोड़ कर आगे निकल आई है।कोई भाषा बाज़ार और रोजगार से आगे बढती है। हिंदी अब बाज़ार की भाषा तो बन ही चुकी है, रोजगार की भी इसमें अपार संभावनाएं हैं। अब बिना हिंदी के किसी का कामचलने वाला नहीं है। क्यों कि कोई भी भाषा विद्वान नहीं बनाते, जनता बनाती है। अपने दैनंदिन व्यवहार से। हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई इस का विधवा विलाप करने से कुछ नहीं होने वाला है। आप ही बताइए कि हिंदी के लिए देश को तोड़ना क्या ठीक होता? और कि क्या देश चलाने में तब क्या हिंदी सक्षम भी थी भला? जो आप हिंदी को राष्ट्रभाषा बना लेते? शासन चला पाते आधी-अधूरी हिंदी के साथ? हालत यह हैकि आज भी तकनीकी शब्दावली हिंदी में हमारे पास पूरी नहीं है। लगभग सभी मंत्रालयों में इस पर काम चल रहा है।

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भाषाविद लगे हुए हैं। काम गंभीरता से हो रहा है। इसी लिए मैं कह रहा हूं कि हिंदी 2050 में दुनिया की सबसे बड़ी भाषा बनने जा रही है। कोई रोक नहीं सकता। बस ज़रूरी है कि हम आप हिंदी को अपने स्वाभिमान से जोड़ना सीखें। हमारे देश में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी लाई थी। बाद में मैकाले की शिक्षा पद्धति ने इस को हमारी गुलामी से जोड़ दिया। इसी लिए आज भी कहा जाता है कि अंग्रेज चले गए, अंग्रेजी छोड़ गए। तय मानिए कि अंग्रेजी सीख कर आप गुलाम ही बन सकते हैं, मालिक नहीं। मालिक तो आप अपनी ही भाषा सीख कर बन सकते हैं। चाहे वह हिंदी हो या कोई भी भारतीय भाषा। आज लड़के अंग्रेजी पढ कर यू.एस., यू.के. जा रहे हैं तो नौकर बन कर ही, मालिक बन कर नहीं।

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अगर 10 साल पहले मुझ से कोई हिंदी के भविष्य के बारे में बात करता तो मैं यह ज़रूर कहता कि हिंदी डूब रही है, लेकिन आज की तारीख में यह कहना हिंदी के साथ ज़्यादती होगी, क्यों कि हिंदी अब न सिर्फ फूलती-फलती दिखती है, बल्कि परवान चढ़ती भी दिखती है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बुश तक अमेरीकियों से हिंदी पढ़ने को कह गए हैं। ओबामा भी कह रहे हैं। न सिर्फ़ इतना हिंदी अब ग्लोबलाइज़ भी हो गई है। जाहिर है आगे और होगी, क्यों कि हिंदी ने अब शास्त्रीय और पंडिताऊ हिंदी की कैद से छुटकारा पा लिया है। पाठ्यक्रमों वाली हिंदी के खूंटे से आज की हिंदी ने अपना पिंड छुड़ा लिया है। हिंदी आज के बाज़ार की सब से बड़ी भाषा बन गई है, हालां कि आम तौर पर अंग्रेजी की बेहिसाब बढ़ती लोकप्रियता कई बार संशय में डालती है और लोग कहते हैं कि हिंदी डूब रही है।