Opinion – ये है पिछले 14 साल से चल रहे बिहार के कथित विकास की हकीकत
एक परियोजना से पंजाब के किसान समृद्ध हो गये और दूसरी परियोजना की वजह से कोसी के किसान दरिद्र। ऐसा क्यों हुआ।
New Delhi, Oct 12 : यह है पिछले 14 साल से चल रहे बिहार के कथित विकास की हकीकत। यह इस वजह से है क्योंकि पिछ्ले वित्त वर्ष में बिहार सरकार ने मनरेगा के तहत सिर्फ 20 हजार मजदूरों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराया है। जब मनरेगा ठीक से चल रहा था तो इन्हीं मजदूरों के लिए पंजाब के किसानों को कई तरह के ऑफ़र देने पड़ते थे, खुशामद करनी पड़ती थी। कुछ हद तक रिवर्स मायग्रेशन भी शुरू हो गया था। मगर पिछ्ले तीन चार साल से फिर यह कहानी शुरू हो गयी है।
ऐसी तस्वीर देख कर मेरे मन में कई सवाल उठते हैं। पहला यह कि एक ट्रेन में रोज नौ हजार मजदूर कैसे यात्रा करते होंगे, यह आँकड़ा टिकटों की बिक्री पर आधारित है तो सच ही होगा। क्योंकि इस ट्रेन में 18 जेनरल बोगी का प्रावधान है। एक बोगी में 80 सीट भी हो तो ट्रेन एक बार में 1440 पैसेंजर ढो सकती है। अगर इस ट्रेन से रोज नौ हजार लोग जा रहे हैं तो इसका मतलब एक बोगी में औसतन 500 मजदूर सवार होते होंगे। हालात का अंदाजा लगा लीजिये।
दूसरा यह कि लगभग एक ही समय में भाखड़ा नांगल डैम परियोजना और कोसी परियोजना दोनों शुरू हुई। मगर एक परियोजना से पंजाब के किसान समृद्ध हो गये और दूसरी परियोजना की वजह से कोसी के किसान दरिद्र। ऐसा क्यों हुआ।
हमारे इलाके में पलायन का इतिहास ही कोसी परियोजना के बाद शुरू होता है। अंग्रेजों के राज में जब भोजपुर के इलाके से थोक के भाव में मजदूर दुनिया के अलग अलग इलाकों में भेजे जा रहे थे तब यहां से एक भी मजदूर नहीं गया। यहां तक कि जो कलकत्ता एक जमाने में प्रवासी मजदूरों का गढ़ बन गया था, वहां भी इस इलाके के लोगों का जाना सम्भवतः आजादी के बाद ही शुरू हुआ।
मगर आज तो यह इलाका सस्ते मजदूरों के लिए ही जाना जाता है।
(चर्चित पत्रकार पुष्य मित्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)