Opinion- वीर सावरकर के ‘माफीकांड’ का सच

इसी दौर में सावरकर के साथ काले पानी की सजा भुगत रहे महान क्रांतिकारी भाई परमानंद को भी ब्रिटिश सरकार ने क्षमा दे दी थी।

New Delhi, Oct 19 : वीर सावरकर को क्यों नहीं मिलना चाहिए भारत रत्न ? सिर्फ इसीलिए क्योंकि कुछ सेक्युलर, लिबरल और वामपंथी ये कहते हैं उन्होने अंग्रेज़ों से माफी मांगी थी। अगर आप ईमानदारी से इस कथित “माफीकांड” पर अध्यन करेंगे तो पाएंगे कि सावरकर जब तक जिंदा थे, इस मुद्दे पर कभी चर्चा नहीं हुई। ये माफी वाली बात 90 के दशक में अचानक उठाई गई, ध्यान दीजिएगा ये वो समय था जब हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का प्रभाव तेजी से बढ़ना शुरु हुआ, और इसी प्रभाव को रोकने के लिए वामियों ने सावरकर के माफीनामे को हथियार बना कर उन्हे बदनाम करने का षड़यंत्र रचा।

Advertisement

दरअसल स्वतंत्रता संग्राम के दौर में राजनैतिक बंदियों द्वारा एक तय फॉरमेट में माफी की अपील करना एक सामान्य प्रक्रिया थी। उन दिनों कई राजनैतिक कैदियों ने क्षमादान के लिए आवेदन किया और ब्रिटिश सरकार यानि सम्राट से माफी पाई। इन्ही में से एक थे महान क्रांतिकारी शचींद्रनाथ सान्याल, सान्याल को 1916 में कालेपानी की सज़ा हुई, उस दौर में वीर सावरकर भी काले पानी की सज़ा भुगत रहे थे। सान्याल ने अपने काला पानी के संस्मरण “बंदी जीवन” नाम की किताब में लिखे थे। जिसमें उन्होने बताया था कि वीर सावरकर की सलाह पर ही उन्होने ब्रिटिश सरकार तक क्षमापत्र पहुंचाया था जिसके बाद 1920 में उन्हे रिहा कर दिया गया। ये वही शचींद्रनाथ सान्याल हैं जिन्हे महान क्रांतिकारी भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद का गुरू माना जाता है।

Advertisement

अब सबसे अहम बात जो सिकलुर लिबरल वामियों की नींद उड़ा देगी, उस दौर में राजनैतिक बंदी माफी की अपील करते थे और उन्हे छोड़ा भी जाता था इसकी पुष्टि महात्मा गांधी के कथन से होती है। बापू ने अपने अखबार ‘यंग इंडिया’ में 26 मई, 1920 को एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था ‘सावरकर ब्रदर्स’… जिसमें गांधी साफ-साफ बताते हैं कि कैसे सावरकर बंधुओं के साथ अन्याय हो रहा है, जबकि ज्यादातर राजनीतिक कैदियों को ‘शाही क्षमादान’ का लाभ मिला था… पढ़िये बापू ने इस लेख में क्या लिखा था – ”भारत सरकार और प्रांतीय सरकारों की कार्रवाई के चलते कारावास काट रहे बहुत से लोगों को शाही क्षमादान का लाभ मिला है… लेकिन कुछ उल्लेखनीय ‘राजनीतिक अपराधी’ हैं, जिन्हें अभी तक नहीं छोड़ा गया है… इनमें मैं सावरकर बंधुओं को गिनता हूं… जिस तरह के पंजाब के बहुत से लोगों को कैद से छोड़ा जा चुका है… सावरकर बंधु भी उसी तरह के ‘राजनीतिक अपराधी’ हैं… लेकिन क्षमादान घोषणा के पांच महीने बीत चुके हैं फिर भी इन दोनों भाइयों को स्वतंत्र नहीं किया जा रहा है।”

Advertisement

गांधी आगे लिखते हैं कि – ”सावरकर बंधुओं को रिहा ना करने का इकलौता कारण यह हो सकता है कि वे ‘सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा हों’ क्योंकि सम्राट ने वायसराय को जिम्मेदारी दी है कि उनकी निगाह में जिन राजनीतिक कैदियों से सार्वजनिक सुरक्षा को खतरा न हो, उनके मामले में सभी प्रकार से शाही क्षमादान की कार्रवाई की जाए… इसलिए वायसराय को सार्वजनिक सुरक्षा की शर्त पूरी करने पर उन्हें रिहा करना ही चाहिए… अगर फिर भी सरकार दोनों भाइयों को किसी भी कारण से कैद में रख रही है तो उसे इसका आधार जनता को बताना होगा”

इसी दौर में सावरकर के साथ काले पानी की सजा भुगत रहे महान क्रांतिकारी भाई परमानंद को भी ब्रिटिश सरकार ने क्षमा दे दी थी… गांधी जी अपने लेख में इसी का उल्लेख करते हुए आगे लिखते हैं – ” सावरकर बंधु हो या भाई परमानंद… जहां तक सरकार का सवाल है, उसके लिए सभी एक जैसे दोषी हैं क्योंकि सभी को सजा सुनाई गई थी… क्षमादान लागू करने का नियम सिर्फ इतना है कि अपराध राजनीतिक होना चाहिए और वायसराय की नजर में क्षमादान पाने वाले व्यक्ति से सार्वजनिक सुरक्षा को कोई खतरा नहीं होना चाहिए… सावरकर बंधु राजनीतिक अपराधी हैं और जनता भी जानती है कि वे सार्वजनिक सुरक्षा के लिए कोई खतरा नहीं हैं… जनता को उन आधारों को जानने का अधिकार है, जिनके आधार पर शाही घोषणा के बावजूद दोनों सावरकर बंधुओं की रिहाई पर रोक लगाई जा रही है”

गांधी यंग इंडिया में प्रकाशित अपने एक अन्य लेख में वीर सावरकर और उनके भाई गणेश सावरकर के लिए क्या कहते हैं, ये पढ़िए – ”सावरकर बंधुओं की प्रतिभा का उपयोग लोक कल्याण के लिए किया जाना चाहिए… परंतु स्थिति ऐसी है कि यदि देश समय पर नहीं जागता है तो भारत पर अपने दो वफादार बेटों को खोने का खतरा है… दोनों भाइयों में से एक विनायक सावरकर को मैं अच्छी तरह से जानता हूं… मेरी उनसे लंदन में मुलाकात हुई थी… वह बहादुर हैं, वह चतुर हैं, वह देशभक्त हैं और स्पष्ट रूप से वे क्रांतिकारी थे… उन्होंने सरकार की वर्तमान व्यवस्था में छिपी बुराई को मुझसे काफी पहले देख लिया था… भारत को बहुत प्यार करने के कारण ही वे काला पानी की सज़ा भुगत रहे हैं… अगर वो किसी न्यायपूर्ण व्यवस्था में होते तो आज किसी उच्च पद पर आसीन होते… इसीलिए मैं उनके और उनके भाई के लिए दु:ख महसूस करता हूं… इसीलिए, ऐसी सरकार से मैं असहयोग करता हूं।”
तो ये थे वीर सावरकर की माफी पर महात्मा गांधी के विचार… तो क्या अब भी आपको लगता है कि स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर को “भारत-रत्न” नहीं मिलना चाहिए ??? क्या ऐसे वीर को “भारत-रत्न” मिलने से खुद “भारत-रत्न” का सम्मान नहीं होगा?

(वरिष्ठ पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)