Blog : देश में रह कर देश से गद्दारी !!!

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का अब खर्च के आधार पर विरोध हो रहा है।
कहा जा रहा है कि सिर्फ असम में ही इस काम में 1288 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं।
बोफर्स जांच पर खर्च को लेकर भी चर्चा हुई थी।

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New Delhi, Nov 05: जब जांच- विरोधियों की केंद्र में सरकार थी तो सी.बी.आई.नामक तोते ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि इसकी जंाच में 250 करोड़ रुपए खर्च हो गए जबकि, मात्र 64 करोड़ रुपए की रिश्वत का ही आरोप है।
इस तरह उस मामले को सुप्रीम कोर्ट में निर्णायक सुनवाई के लिए पहुंचने ही नहीं दिया गया।
इस देश के एक राज्य के एक भ्रष्ट मुख्य मंत्री ने अपनी सरकार के एक विभाग के ईमानदार प्रधान को कहा था कि एक बोरा सीमेंट की चोरी की जांच के लिए आप एक लाख रुपए सरकार का क्यों खर्च करा देते हैं ?
ऐसे ही तर्कों के आधार पर यह देश चलता रहा है।
इसीलिए तो चारों तरफ लूट मची हुई है।

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अब राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के बारे में
नब्बे के दशक में पूर्वोत्तर बिहार के एक लोस चुनाव क्षेत्र में
एक घुसपैठिया समर्थक उम्मीदवार के साथ मैं घूम रहा था।
ताजी फूस की सैकड़ों झोपडि़यों वाली बस्ती में हम गए।
सारे बंगला देशी घुसपैठिए थे।
साफ -साफ पहचाने जा सकते थे।
उसी नेता जी की मेहरबानी से घुसपैठियों के नाम
मतदाता सूची में भी दर्ज हो चुके थे।
उम्मीदवार महोदय हर झोपड़ी के सामने जाकर घुसपैठियों को यही आश्वासन दे रहे थे कि
‘निश्चिंत रहिए।आपको यहां से कोई नहीं भगाएगा।’
उस ऐतिहासिक देशद्रोह का मैं भी मूक गवाह बना था।
बिहार का ताजा हाल तो मैं नहीं जानता,
पर, असम से यह खबर आ रही है कि घुसपैठ लगभग अब बंद है या फिर कम है।
क्योंकि नागरिक रजिस्टर में नाम दर्ज होना अब आसान नहीं रहा।
जब रजिस्टर में नाम नहीं तो मतदाता सूची में भी नाम नहीं दर्ज होगा।
फिर नेताओं को घुसपैठ कराने में अब रूचि क्यों होगी ?
रूचि नहीं रही।

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नेता लोग अपने वोटरों की संख्या बढ़ाने के लिए ही तो सीमा पर तैनात संतरियों व अन्य कर्मचारियों को रिश्वत देकर बड़े पैमाने पर घुसपैठ में मदद करते थे।
यदि बिहार सहित अन्य राज्यों में भी रजिस्टर बन जाएं तो
घुसपैठ रुक जाएगी।
भले पहले से आए बंगलादेशियों को निकाल बाहर करना कठिन हो,पर नए तो नहीं आएंगे।
जो वैध नागरिक नहीं हैं,वे वोटर तो नहीं बनेंगे।चुनाव को प्रभावित तो नहीं करेंगे।
चीन में घुसपैठियों को देखते ही गोली मार देने का आदेश है।
पर चीनपंथी भारतीय कम्युनिस्टों ने यहां घुसपैठियों की संख्या में अपार वृद्धि करवा दी।
अमेरिका-मैक्सिको सीमा पर दीवाल खड़ी की जा रही है।
पर हमारे देश में खर्चे का रोना रोया जा रहा है।
यदि आप देशभक्त हैं जैसा कि चीन और अमेरिका के लोग हैं तो इसके विपरीत सोच कर और एक बात की कल्पना करके जरा देखिए।
जिस तरह इस देश में घुसपैठियों की संख्या बढ़ती जा रही है ,उससे विभिन्न समुदायों की जनसंख्या के अनुपात पर कैसा असर पड़ेगा ?

कई जिले तो हिन्दू बहुल से अब मुस्लिम बहुल हो चुके हैं।
यदि एक दिन कुछ राज्यों का जनसंख्या अनुपात बदल जाए तो वहां कश्मीर जैसी विस्फोटक स्थिति नहीं हो जाएगी,इसकी क्या गारंटी है ?
कुछ साल पहले इस देश के एक पूर्व विदेश सचिव टी.वी.चर्चा में कह रहे थे कि यदि हम बंगलादेश की सीमा पर बाड़ लगा देंगे तो दुनिया में हमारी छवि खराब हो जाएगी।
उस पर शिवसेना के सांसद ने उनसे पूछा कि आप भारत के विदेश सचिव थे या बंगलादेश के ?
बेचारे पूर्व सचिव और क्या बोलते ! उन्हें तो तब की राजनीतिक कार्यपालिका ने यही सिखाया था।
वह चर्चा यदि मैं खुद नहीं सुन रहा होता तो मुझे पूर्व विदेश सचिव की उस उक्ति पर विश्वास ही नहीं होता।
(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)