Opinion – मुस्लिम समाज दरियादिली क्यों नहीं दिखाता?

अगर गलती हो भी गई तो विवाद खत्म कर इस मसले को हल करने के लिए मुस्लिम समाज दरियादिली क्यों नहीं दिखाता।

New Delhi, Nov 18 : अयोध्या में राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ख़िलाफ़ अगर कुछ लोग रिव्यू पेटिशन फ़ाइल करने की बात कर रहे हैं तो इस में कोई बुरी बात नहीं है। यह उन का संवैधानिक और क़ानूनी अधिकार है। खैर मनाइए कि यह लोग संयुक्त राष्ट्र संघ या अंतरराष्ट्रीय अदालत जाने की बात नहीं कर रहे । यह तो कानूनी बात हुई। पर एक व्यावहारिक बात करने को यहां जी कर रहा है। विवादित ढांचा गिरने के पहले अयोध्या में राम लला के दर्शन करने का सौभाग्य भी मुझे मिला है।

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पहली बार प्रसिद्ध पत्रकार कुलदीप नैय्यर के साथ गया था। दूसरी बार भी प्रसिद्ध पत्रकार सुरेंद्र प्रताप सिंह के साथ। कभी अकेले नहीं गया। कभी परिवार के साथ। कभी पत्रकारों के साथ। हर बार यही एक सवाल मन में उठता रहा कि राम जन्म-भूमि परिसर में ही मस्जिद बनाना ज़रूरी क्यों था ? अगर गलती हो भी गई तो विवाद खत्म कर इस मसले को हल करने के लिए मुस्लिम समाज दरियादिली क्यों नहीं दिखाता। भाई-चारा और गंगा-जमुनी तहज़ीब का साक्षात उदाहरण क्यों नहीं पेश कर देता। लेकिन बाद के दिनों में यह विवादित ढांचा ही गिरा दिया गया। यह बाद की कहानी है। पर सवाल फिर भी सुलगता रहा है। आज भी सुलगता है।

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मथुरा में श्रीकृष्ण जन्म-भूमि भी गया हूं। यहां तो मस्जिद और कृष्ण जन्म-भूमि मंदिर की दीवार भी एक ही है। मंदिर क्या है दड़बा है। जब कि बगल में विशाल और भव्य मस्जिद है। बिलकुल दिल्ली की जामा मस्जिद की तरह। कृष्ण जन्म-भूमि से सट कर , तोड़ कर ही मस्जिद बनाना किस लिए ज़रूरी था भला।
काशी में विश्वनाथ मंदिर के बगल में ज्ञानवापी मस्जिद की भी यही कथा है। मस्जिद के गुंबद और भीतर भी मंदिर का ही शिल्प अभी भी शेष है। मथुरा , काशी और अयोध्या में मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाना अगर आक्रमणकारियों के लिए ज़रूरी था तो गंगा-जमुनी तहज़ीब और भाई-चारा का राग आलापने वाले मुस्लिम समाज को इस गलती को सुधारने के बजाय इसे अस्मिता का प्रश्न बना लेना भी ज़रूरी क्यों होता गया है। देश भर में सोमनाथ मंदिर से लगायत तमाम मंदिर तोड़ने लूटने का सिलसिला जस्टिफाई करने का सिलसिला भी अभी तक ज़रूरी क्यों है।

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ब्रिटिशर्स समेत बहुत लोग भारत आए , गए। लूटा और खसोटा। लेकिन मंदिर तोड़ने और लूटने का सिलसिला सिर्फ़ मुगलों के खाते में ही क्यों है। खास कर अयोध्या , मथुरा , काशी में राम , कृष्ण और शिव के स्थान और राम , कृष्ण की जन्म-भूमि ही क्यों। लोहिया ने लिखा है , राम, कृष्ण और शिव भारत में पूर्णता के तीन महान स्वप्न है। तो यह तीन महान स्वप्न तोड़ना ज़रूरी क्यों था। चलिए अतीत में जो भूल , जो अपराध हुआ , सो हुआ। लेकिन अगर बतर्ज लोहिया , राम, कृष्ण और शिव भारत में पूर्णता के तीन महान स्वप्न हैं तो इन्हें अब भी तोड़ते रहना , तोड़ने में संलग्न रहना , सक्रिय रहना ज़रुरी क्यों है।

अंगरेजों ने भी बहुत धर्मांतरण करवाया है और मुगलों ने भी। लेकिन मुझे नहीं मालूम कि अंगरेजों ने भारत में कोई मंदिर तोड़ कर चर्च बनाई हो। किसी को मालूम हो तो प्लीज़ बताए। मुगलों द्वारा तोड़े और लूटे जाने वाले मंदिरों की तो लंबी फ़ेहरिस्त है। समय आ गया है कि मुस्लिम समाज उदारता की राह पर चल कर भारत के कम से कम तीन महान स्वप्न राम , कृष्ण और शिव को समुचित आदर देने का अपने मन में भाव जगाएं। व्यर्थ का विवाद समाप्त कर देश को तरक्की और समृद्धि की राह पर ले जाने की राह पर चलें।

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)