Opinion – भ्रष्टाचार तकनीक के कारण कम हो रहा है, ना कि ईमानदारी बरसने लगी है

अगर जबरदस्ती श्रेय लेने-देने की बीमारी नहीं होती तो टैक्स की चोरी, आय-व्यय का विवरण आदि सब कुछ कंप्यूटरीकरण औऱ डिजिटाइजेशन से लगभग खत्म हो जाता।

New Delhi, Nov 29 : भ्रष्टाचार खत्म हो गया है इसका सबूत भक्त भाई लोग यह देते हैं कि टीटीई अब पैसे लेकर बर्थ नहीं दे सकता है। कायदे से ऑटोमेटिक अपग्रेडेशन के बाद यह स्थिति हो जानी चाहिए थी। अभी स्थिति यह है कि कंप्यूटर आरक्षण, तत्काल और ऑटोमेटिक अपग्रेडेशन के कारण ट्रेन में खाली बर्थ होती ही नहीं है और जो होती है उसे लेने वाला भी न हो तो टीटी किसे बेचे। पर एक बर्थ खाली हो और चार दावेदार हों तो टीटी क्या बिना पैसे लिए बर्थ देगा?

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राज्य परिवहन निगम की लंबी रूट की बसों में काउंटर क्लर्क कुछेक सीटें यात्री होने पर भी खाली छोड़ देता था। इसके बदले कंडक्टर उसे पैसे देता था और बीच के यात्रियों से कमाई करता था। अब कंप्यूटर आरक्षण से हर स्टेशन पर पता होगा कि बस में कितनी सीटें खाली होनी चाहिए और कैमरे से कहीं भी देखा जा सकता है कि सीटें खाली हैं कि नहीं। ऐसे में भ्रष्टाचार तकनीक के कारण रुका है, ईमानदारी बरसने नहीं लगी है। हालांकि शतप्रतिशत बंद तो अभी भी नहीं है।
इसी तरह, एक मित्र ने दावा किया कि ड्राइविंग लाइसेंस बिना रिश्वत बन जाएगा, वीआईपी नंबर मुफ्त नहीं मिल सकता आदि आदि। मैंने कहा इसका मतलब सड़क पर अनफिट गाड़ियां नहीं चल रही होंगी। कोई भी ऐसी गाड़ी नहीं होगी जिसका नंबर प्लेट पढ़ा न जाए तो कहने लगे यह कैसे संभव है? मैंने पूछा इसे चेक कौन करता है और सर्टिफिकेट कैसे बंटता है? मुख्य मुद्दा यह है कि तकनीक के कारण जो लेन-देन बंद हुआ है भक्त भाई उसका भी श्रेय अपने भगवान को दे रहे हैं।

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बहुत पहले जब पासपोर्ट का एपलीकेशन डाक से शायद ही कोई भेजता हो, मैंने भेज दिया। सिर्फ देखने के लिए कि होता क्या है। पुलिस वेरीफिकेशन के लिए आया तो पूछा आप करते क्या हैं। मैंने बता दिया। तब जनसत्ता में था। पासपोर्ट बनकर डाक से आ गया। बिना किसी अतिरिक्त पैसे के। बिना किसी से कहे। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि जनसत्ता वालों के पासपोर्ट ऐसे ही बन जाते थे या तब रिश्वत नहीं लगती थी। मेरा राशन कार्ड भी 25 साल पहले घर पर डिलीवर हुआ था।

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कहने का मतलब यह है कि कुछ लोगों के काम पहले भी बिना पैसे के होते थे अब भी होते हैं। अब ये कुछ लोग ज्यादा हो गए हैं। और ऐसे लोगों की संख्या बलात्कार की एफआईआर लिखा पाने में भी बढ़ी होगी। पर इसका मतलब यह नहीं है कि बलात्कारी भाजपा नेता हो तो आप एफआईआर लिखा लेंगे। हां, कांग्रेस या आम आदमी पार्टी का नेता हो तो बात अलग है। यही हाल लॉ की डिग्री, एंटायर पॉलिटिकल साइंस की डिग्री और दिल्ली विवि छात्र संघ के पदाधिकारी चुने गए भाई की डिग्री के मामले में है।

अगर जबरदस्ती श्रेय लेने-देने की बीमारी नहीं होती तो टैक्स की चोरी, आय-व्यय का विवरण आदि सब कुछ कंप्यूटरीकरण औऱ डिजिटाइजेशन से लगभग खत्म हो जाता। जीएसटी से ज्यादा जरूरी था कि कारोबारियों को खाता-बही कंप्यूटर में रखने के लिए प्रेरित किया जाता। लोग स्वेच्छा से कारोबार करते, कमाते और टैक्स देते। जबरदस्ती टैक्स लेने और चोरी रोकने के नाम पर ऐसे नियम बना दिए गए हैं कि धंधा करना ही मुश्किल है और मंदी इसी कारण है तो कहा जा रहा है कि विकास दर गिरी है पर मंदी नहीं है।

(वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)