Opinion – नहीं बोलने वाले अब भी चुप हैं क्योंकि बोलने लायक रह ही नहीं गए हैं

कुछ लोग समझ रहे हैं कि ऐसा काले धन पर रोक के कारण हुआ है पर काला धन अगर शरीर रूपी अर्थव्यवस्था का मल हो तो उसे एक साथ नहीं निकाला जा सकता है और अगर ऐसी कोई सर्जरी हुई तो शरीर को उसका नुकसान होगा।

New Delhi, Dec 01 : पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कल एक भाषण में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की 4.5 प्रतिशत की वृद्धि दर को नाकाफी और चिंताजनक बताया। अर्थव्यवस्था पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन में अपना विदाई भाषण देते हुए सिंह ने कहा कि आपसी विश्वास हमारे सामाजिक लेन-देन का आधार है और इससे आर्थिक वृद्धि को मदद मिलती है. लेकिन ‘अब हमारे समाज में विश्वास, आत्मविश्वास का ताना-बाना टूट गया है।’ उन्होंने कहा, ‘हमारा समाज गहरे अविश्वास, भय और निराशा की भावना के विषाक्त संयोजन से ग्रस्त है।’ यह देश में आर्थिक गतिविधियों और वृद्धि को प्रभावित कर रहा है।

Advertisement

कुछ लोग समझ रहे हैं कि ऐसा काले धन पर रोक के कारण हुआ है पर काला धन अगर शरीर रूपी अर्थव्यवस्था का मल हो तो उसे एक साथ नहीं निकाला जा सकता है और अगर ऐसी कोई सर्जरी हुई तो शरीर को उसका नुकसान होगा। मल तो एकसाथ नहीं ही निकलेगा रोज निकलने की व्यवस्था खराब होने से शरीर भी गल जाएगा। देश की अर्थव्यवस्था के साथ वही हुआ लगता है पर गलती को सही ठहराने की कोशिश हो रही है, सुधार के उपाय नहीं किए जा रहे हैं। दूरगामी प्रभाव होगा कहकर समय लिया गया था पर दूरगामी प्रभाव नुकसानदेह है – इसे भी स्वीकार नहीं करना खतरे का इंतजार करना है।

Advertisement

मनमोहन सिंह ने कहा, “कई उद्यमी मुझसे कहते हैं कि वे सरकारी अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित किए जाने के डर में जीते हैं। बैंक वाले नए कर्ज देने में हिचकते हैं, उद्यमी नई परियोजनाएं नहीं ला रहे हैं। उन्हें डर है कि नाकाम रहने पर गलत उद्देश्य से कर्ज लेने का आरोप लगाया जाएगा। यही हाल बैंक वालों का है।” कुल मिलाकर भ्रष्टाचार खत्म करने का असर भ्रष्टाचारियों पर पड़ा हो तो भी उन्हें वेतन मिल रहा है और घर चल रहा है पर कारोबारियों का बुरा हाल है। रिश्वत लेने वाले अब डरा रहे हैं। बोलना तो उद्योग के बड़े लोगों को था। पर नहीं बोले। उल्टे तारीफ में लगे रहे तो भुगतना भी उन्हें ही है।

Advertisement

जब किसी को परवाह ही नहीं है तो यही होना था। जब सब राजा का बाजा बजा रहे थे तो जीडीपी की चिन्ता कौन करता। कॉरपोरेट भारत से लेकर कॉरपोरेट मीडिया तक किसी ने नहीं कहा कि गलत हो रहा है। भ्रष्टाचार और ईमानदारी के नाम पर पूरी व्यवस्था ही चौपट कर दी गई है। और अगर भुगतना ही है तो कितान अपने हिस्से का ही भुगतेगा। टाटा-बिड़ला-डालमिया के हिस्से का तो उन्हें ही भुगतना होगा। विकास दर अभी और गिरेगी क्यों रोकनी की कोई कोशिश ही नहीं है, कोई उपाय ही नहीं है। आता ही नहीं है।

(वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)