Opinion – सरयू की धार प्रबल है या रघुवर राज!

रघुवर त्वरित और सख्त फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं, जिसका उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों में अभाव रहा है।

New Delhi, Dec 05 : किसी समय ‘सरयू’ के तट पर ‘रघुवर का राज’ था। लेकिन बदले समय में सरयू, रघुवर के लिए गंभीर संकट का कारण बन गए हैं।
रघुवर यानी झारखंड के निवर्तमान CM रघुवर दास चुनावी रण में कठिन संघर्ष में फंस गये हैं। उन्हीं के मंत्रिमंडलीय सहयोगी रहे सरयू राय निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में उनके खिलाफ ताल ठोके हुए हैं। अपने पूर्व बॉस के विजय रथ को रोकने पर आमादा हैं।

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BJP के अंदर-बाहर की तमाम रघुवर विरोधी ताकतें सरयू के पीछे आ खड़ी हुई हैं। बिहार में BJP की सहयोगी JDU ने भी अपना नैतिक समर्थन राय को दिया है। स्थिति नाजुक देख PM नरेंद्र मोदी को भी जमशेदपुर आना पड़ा।

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उन्होंने झारखंड में फिर से रघुवर राज लाने की अपील की। इसका कितना असर होगा, इस बारे में अलग-अलग आंकलन है।  लेकिन उस इलाके के बड़े नेता और केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की अनुपस्थिति को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है। एक हफ्ते से CM अपने चुनाव क्षेत्र में कैम्प किये हुए हैं। बाजी हाथ से न निकले इसका पुरजोर प्रयास कर रहे हैं। उनके तरकस नाना प्रकार के वाणों से भरे हुए हैं। सबसे बड़ा वाण तो सत्ता का है। वे तेज धार को पलटने में माहिर हैं। रघुवर त्वरित और सख्त फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं, जिसका उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों में अभाव रहा है। यही सख्ती अब भारी पड़ रही है। 5 वर्ष पूरा करने वाले वे झारखंड के पहले मुख्यमंत्री हैं।

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उधर जनमानस सरयू की धार की प्रबलता परख रहा है। वे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़नेवाले योद्धा के रूप में जाने जाते हैं। इस मुद्दे पर अपनी ही सरकार के आलोचक रहे हैं। इसके चलते पार्टी और सरकार की आंखों की किरकिरी बन गए, लेकिन जनमानस में उनकी एक विशिष्ट छवि बनी। 7 दिसंबर को फैसला हो जायेगा कि सरयू की धार प्रबल है या रघुवर राज !

(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैें)