बड़े हिम्मती और बेशर्म हैं लोग जो बलात्कारियों के एनकाउंटर पर भी सवाल खड़े करते हैं

जिसे देश की प्रतिष्ठा का अंदाज नही उसके लिए मानवाधिकार और कानून के नाम पर पलक पांवड़े बिछाना न केवल समाज द्रोह है बल्कि खुद भी बलात्कारी हो जाना है ।

New Delhi, Dec 08 : बड़े हिम्मती और बेशर्म हैं लोग जो बलात्कारियों के एनकाउंटर पर भी सवाल खड़े करते हैं । कानून के तहत सजा मिलनी चाहिए । सात साल से कानून के दरवाजे पर निर्भया की माँ सिर पटक रही है । तारीख पर तारीख मिल रहे हैं । कोई इन दुर्दांत बलात्कारियों को सिलाई मशीन दे रहा है , कोई माफ करने की गुहार लगा रहा है । सिर्फ इसलिए कि उसकी बेटी – बहन के साथ यह घटना नही घटी ।

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इस देश का संविधान कितने छेद से युक्त है इसे भी बताना होगा ? मैं जानता हूँ कि यह फेक एनकाउंटर है ।लेकिन बलात्कारी इतने दुर्दांत थे कि उन्हें समाज मे जिंदा छोड़ना घातक था । कई बलात्कारी उसके समर्थन में आ जाते । मानवाधिकार वाले लार टपकाते भूंकते । प्रियंका का भाई और बाप होकर सोचिए । निर्भया के बलात्कारी आज भी उसके परिवार को मुह नही चिढ़ा रहे हैं ? संविधान और न्यायपालिका को सोचना होगा कि क्यों उनसे विश्वास उठता जा रहा है । देश का बहुमत इस घटना को स्वीकार कर रहा है इसका मतलब यही सजा समाज और देशहित में है । जिसे कानून का डर नही , जिसे समाज की चिंता नही , जिसे परिवार का मोह नही , जिसे सम्बन्धो की पवित्रता का भान नही , जिसे देश की प्रतिष्ठा का अंदाज नही उसके लिए मानवाधिकार और कानून के नाम पर पलक पांवड़े बिछाना न केवल समाज द्रोह है बल्कि खुद भी बलात्कारी हो जाना है ।

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मेरे बड़े भाई भागलपुर में डीएसपी थे । 1980 की बात है । वहाँ दुर्दांत अपराधी हुआ करते थे । जनता और पुलिस ने उन्हें सीधा दंड देना शुरू किया । अखफोड़वा कांड के नाम से विख्यात इस प्रकरण में भैया को अखफोड़वा डीएसपी नामकरण हो गया । बीडी राम जो अब सांसद हैं उस समय एस पी थे । पुलिस और नागरिकों ने लगभग 22 बड़े अपराधियो की आंखे फोड़ दी थी । मीडिया उस समय अधिक व्यापक नही था लेकिन मुझे याद है कि बीबीसी , माया , रविवार आदि मीडिया संस्थानों ने इसकी रिपोर्टिंग की थी । पुलिस के प्रति पहली बार मैंने सम्मान देखा था । सम्मान भी क्या , पागलपन की हद तक लोगो ने इस घटना में पुलिस का साथ दिया था ।

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गंगाजल फ़िल्म इसी पर आधारित है । आज बहुत दिनों के बाद पुलिस के प्रति उसी सम्मान को देख रहा हूँ । इसलिए मैं समझ सकता हूँ कि कानून की दीर्घसूत्रता से उकताए लोगो ने इस ” गैरकानूनी ” कृत्य का विशाल समर्थन क्यों दिया है । आप आदर्शो की टोपी पहन लें , मानवाधिकार का लबादा ओढ़ ले , संविधान का पान चबा लें , कानून की गुहार लगा ले , लेकिन इस फैसले को जनविरोधी नही कहा जा सकता । संविधान के रखवाले और न्यायपालिका मंथन करे कि आखिर उसके प्रति लोग इतने उदासीन क्यों हो गए हैं । बलात्कारियों की हत्या का विरोध करने वालो पर मूत्र विसर्जन करने की बात मैंने कही तो एक दो भाइयों ने खुद को आगे बढ़ा दिया । थोड़ा शर्म करो भाई , तुम्हारी बेटी के साथ भी कहीं ऐसा होगा तो संविधान की किताब लेकर और मानवाधिकार का मंत्र पढ़ते हुए अपनी बेटी बहन के बलात्कारी की पांत में बैठोगे ? इसमें तो हिन्दू मुसलमान का फैक्टर मत देखो ।

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)