Opinion: हैदराबाद में गैर न्यायिक हत्यादंड से लोग इतने खुश क्यों हैं?

‘जो आतंकवादियों, घोटालेबाजों, बलात्कारियों और उनकी पत्नी का बचाव करके हर साल करोड़ों कमाते हैं और तस्करी की गई गोमांस बेचकर अरबों कमाते हैं।’

New Delhi, Dec 09: हैदराबाद में गैर न्यायिक हत्यादंड से लोग इतने खुश क्यों हैं? क्या अदालत इन वजहों पर भी सुओ मोटो संज्ञान लेगी या जब अदालत को किनारे करके जनता , पुलिस और समाज खुद फैसला लेने लगे तब अपनी नौकरी जाने यानी अप्रासंगिक होने के डर से मीलार्ड सुओ मोटो होने लगते हैं ।
‌1. 3 करोड़ लंबित मामले,
‌2. 7 साल बाद भी निर्भया के हत्यारों को नहीं मिली फांसी,
‌3 उन्नाव बलात्कारियों को जमानत मिलती है ताकि वे उसे जलाकर मार सकें
‌4. कसाब या याकूब को बचाने के लिए आधी रात को अदालतें खोलना
‌5 पी चिदंबरम को गिरफ्तारी से पूर्व 53 बार और गिरफ्तारी के 100 दिनों में जमानत मिल गई
6. राम मंदिर को सुलझाने के लिए 150 साल और फिर भी समीक्षा का विकल्प है

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7. 27 साल बाद भी राजीव के हत्यारों को फांसी नहीं हुई
8. कश्मीर के हिन्दू पंडितो के नरसंहार के लिए अब तक किसी भी आतंकवादी को सजा नहीं दी गई
9. यासीन मलिक, गिलानी , असिया अंद्राबी जैसे अलगाववादी पाकिस्तान परस्त कश्मीर में ऐश कर रहे हैं
10. पंजाब में नरसंहार का नेतृत्व करने वाले लोग CM और केंद्रीय मंत्री बन जाते हैं
11. एक भी नक्सली आतंकवादी को दंडित या दोषी नहीं ठहराया गया जबकि उन्होंने 40000 लोगों को मार डाला

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12. 2G घोटाला CWG घोटाला बोफोर्स घोटाला नेशनल हेराल्ड घोटाला और 101 घोटालों में एक भी सजा नहीं
13. लोग खुले तौर पर भारत तेरे टुकडे, हर घर से अफ़ज़ल निकलेगा और आजादी के नारे लगा सकते हैं और आजाद घूम सकते हैं।
14. पिछले 3 दशकों में सैकड़ों आतंकी मामले और केवल 3 को फांसी दी गई है
15. आप मसूद अजहर को बिना फांसी पर चढ़ाए 9 साल जेल में रखे और फिर वे उसे बाहर निकालने के लिए एक प्लेन को हाईजैक कर लें
16. प्रति वर्ष 30000 बलात्कार और 2004 में अंतिम बलात्कारी को फांसी।

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17. अंत में कपिल सिब्बल जैसे बहुत सारे दुष्ट राजनेता वकील हैं जो आतंकवादियों, घोटालेबाजों, बलात्कारियों और उनकी पत्नी का बचाव करके हर साल करोड़ों कमाते हैं और तस्करी की गई गोमांस बेचकर अरबों कमाते हैं। इन सब के अलावा न्यायपालिका के भीतर भ्रष्टाचार ने खुद न्यायपालिका को अप्रासंगिक बना दिया और जब उन्हें बायपास किया गया तो बौखलाहट ऐसी कि सुओ मोटो संज्ञान लेने लगे ।
पुलिस को इतनी आजादी नही मिलनी चाहिए कि वह सजा देने लगे लेकिन ऐसे रेयरेस्ट मामलों में मूकदर्शक बने रहना न्यायपालिका की कौन सी मर्दानगी है ।
एक मित्र ने कहा था कि सजा देने के नक्सली तरीके पर आप कैसे सहमत हो गए ? यह पोस्ट मेरा जवाब है ।
( पोस्ट में सामग्री जुटान में मित्र राजेश राय की मदद ली गयी है )

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)