Opinion- नेता, नीति और नीयत बदले बिना देश तो क्या, खुद को भी नहीं बचा सकती कांग्रेस

मुझे पूरा भरोसा है कि कांग्रेस आज इन सच्चाइयों को समझने में पूरी तरह विफल है। इस देश ने हमेशा ही राजाओं से अधिक तरजीह तपस्वियों को दी है।

New Delhi, Dec 16 : सोनिया बीमार हैं। राहुल दूसरों का लिखा हुआ पढ़ते हैं। प्रियंका रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी हैं और बैलून भी नहीं, पानी का बुलबुला हैं। जब दिग्विजय, मणिशंकर, खुर्शीद, पित्रोदा आदि नेपथ्य में जाने लगे या चले गए, तो अधीर रंजन जैसों का अवतरण हो गया। यानी कांग्रेस नेता-विहीन पार्टी है इस वक़्त। अब यह दौर नेहरू-इंदिरा-राजीव के नाम पर रोटियां सेंकने का नहीं है। वास्तव में ये नाम भी उसके खिलाफ ही जा रहे हैं। बीजेपी देश के अधिकांश लोगों को समझाने में कामयाब हो गयी है कि ये लोग निर्दोष नहीं थे और देश के 70 साल के सफ़र में अधिकांश विसंगतियां इन्हीं की वजह से आई हैं, जिन्हें दूर करने के लिए उसे कठोर फैसले लेने पड़ रहे हैं।

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इसलिए नेता ढूंढ़ने के बाद कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन की है। कांग्रेस देश का मूड समझने में आज बुरी तरह से विफल है। उसे अब तक यह समझ में नहीं आया है कि “साम्प्रदायिक धर्मनिरपेक्षता” उर्फ़ “तुष्टीकरण आधारित धर्मनिरपेक्षता” पर चलने की उसकी नीति अब बुरी तरह फेल हो चुकी है। अपनी विफलता छिपाने के लिए जिसे वह हिंदू समाज में बढ़ती असहिष्णुता बता रही है, वह वास्तव में कांग्रेस की “साम्प्रदायिक धर्मनिरपेक्षता” की नीति के खिलाफ एक विस्फोट है, जो देश में जागरूकता बढ़ने के साथ देखने को मिल रहा है। अब कांग्रेस के पास एक ही हथियार बचा है- जातिवाद। वह चाहेगी कि उसका यह हथियार न छिने और हिंदुओं में दलित, अगड़े, पिछड़े, आदिवासी इत्यादि का झगड़ा लगा रहे। लेकिन जिस दिन भाजपा या किसी अन्य पार्टी ने उसके इस हथियार को भी बेअसर कर दिया, उस दिन कांग्रेस निहत्थी हो जाएगी।

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यानी नीति के स्तर पर कांग्रेस के सामने अब “सांप्रदायिक धर्मनिरपेक्षता” और “हिंदुओं को विभाजित करने वाले जातिवाद” को छोड़कर बीजेपी के “हिंदुत्ववादी विकासवादी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद” की काट ढूंढने की चुनौती है। और यह काट तभी ढूंढ़ी जा सकती है, जब नीयत साफ हो। जैसे लोहा ही लोहे को काटता है, वैसे ही अब बीजेपी के “हिंदुत्ववादी विकासवादी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद” की काट सिर्फ़ इसी के संशोधित परिष्कृत संस्करण से हो सकती है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं कि अब आप हिंदुओं के हितों की अनदेखी करेंगे तो स्वीकार नहीं किये जाएंगे। विकास का ठोस प्लान पेश नहीं करेंगे तो भी स्वीकार नहीं किये जाएंगे, क्योंकि देश ने इसके लिए आपको 60 साल दिए, लेकिन गरीबी तो दूर हुई नहीं, किसानों की समस्याएं भी बढ़ती ही चली गईं। अब देश के लोग गरीबी, बेरोजगारी और किसानों की समस्याओं को 70 साल के परिप्रेक्ष्य में रखकर समझने लगे हैं, इसलिए बिना ठोस प्लान पेश किये महज 5-6 साल से सरकार चला रहे लोगों को पूरी तरह ज़िम्मेदार ठहराना बेहद मुश्किल हो गया है। इसके साथ ही देशहित को बिना किंतु-परंतु के सर्वोपरि रखना पड़ेगा, क्योंकि कांग्रेस की आज यह छवि बन गई है कि सत्ता की राजनीति में वह देशहित से समझौते करती रही है और करने लगी है।

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नेता, नीति और नीयत- तीनों स्तरों पर आमूलचूल परिवर्तन लाना और देश को यह भरोसा दिला पाना कि यह परिवर्तन स्थायी है, कोई एक दिन का काम नहीं है। अगर कांग्रेस देश के मूड के हिसाब से इन तीनों स्तरों पर आज और अभी से ही ईमानदार प्रयास शुरू कर दे तो भी उसे रिवाइव होने में कम से कम 10-15 साल लगेंगे। रामलीला मैदान की रैली में बदनीयती से वीर सावरकर का नाम उछालने से यह नहीं होगा। गांधी-नेहरू के प्रादुर्भाव से भी पहले जिस व्यक्ति को देश के लिए कालापानी जैसी कठिन सज़ा भोगनी पड़ी, उस आदमी को किसी कथित चिट्ठी के आधार पर लांछित करने से आप केवल देश की सहानुभूति गंवा ही सकते हैं, उसे प्राप्त नहीं कर सकते। सबको पता है कि कैसे अंग्रेजों के तलवे चाटने वाले अनेक लोगों को आपने अपनी सत्ता में शिखर तक पहुंचाया। लोगों को आज यह भी पता है कि जो लोग आज़ादी की लड़ाई में फांसी चढे या कठोर सजाएं भोगी, उनके योगदान को कमतर बताया गया, और जिन लोगों ने जेल में भी सभी सुख-सुविधाएं पायीं और भारत आज़ाद होने के बाद सत्ता पाई, उन्होंने खुद को भारत भाग्य विधाता की तरह पेश किया। चाहे कोई प्रधानमंत्री बन गया हो या राष्ट्रपति, लेकिन कोई यह कैसे मान लेगा कि लाला लाजपत राय, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सावरकर आदि लोगों की कुर्बानियां किसी परिवार के सदस्यों की मामूली जेल-यात्राओं से छोटी थीं। पद के साथ ग्लैमर भले दिखाई दे, लेकिन इसके सहारे जनता के विवेक पर दीर्घकाल के लिए कब्जा नहीं किया जा सकता।

मुझे पूरा भरोसा है कि कांग्रेस आज इन सच्चाइयों को समझने में पूरी तरह विफल है। इस देश ने हमेशा ही राजाओं से अधिक तरजीह तपस्वियों को दी है। राम और कृष्ण ने सत्ता का त्याग किया, तभी देव बने। शिव ने खुद विष पीकर दूसरों के लिए अमृत छोड़ा, तभी महादेव कहलाए। देवताओं के राजा इन्द्र को तो कोई पूछता भी नहीं। इसलिए पिछले 70 साल से सत्ता से चिपके लोगों को समझना होगा कि तपस्वियों को लांछित करने के खेल में वे और तबाह हो जाएंगे। बीजेपी नेहरू को लांछित करती है, तो लोग इसलिए सुनते हैं, क्योंकि उन्होंने येन केन प्रकारेण सत्ता चुनी। आप सावरकर को लांछित करेंगे तो लोग नहीं सुनेंगे, क्योंकि वे या उनके वंशज सत्ता के अनुयायी नहीं बने।

लब्बोलुआब ये कि केवल गले के ज़ोर से आप सरकार नहीं पलट सकते, क्योंकि मोदी, शाह और कई अन्य भाजपा नेताओं के गले में न सिर्फ आपसे अधिक ज़ोर है, बल्कि वे आपसे बेहतर और अधिक कन्विनसिंग तरीके से बोलते हैं। इसलिए बेहतर होगा कि आप अब कोई नई रैली करने से पहले नेता, नीति और नीयत बदलने पर दृढ़ता से अमल करें।
और हां, आपके वे बुद्धिजीवी आपका बेड़ा और भी ग़र्क कर देंगे, जिन्हें आपने वामपंथ के आवरण में छिपा रखा है। आज देश को यह पता चल चुका है कि वे आप ही के दिए दांत से खाते हैं और केवल दिखाने के लिए उनके मुखड़ों पर वामपंथी दांत सजाए गए हैं। शुक्रिया।

(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)