Opinion- नया सेना-प्रधानः कुछ सवाल?

जनरल रावत इस एतिहासिक अवसर पर ऐसी स्वस्थ परंपराएं कायम कर देंगे कि फौज अपनी मर्यादाओं का दृढ़तापूर्वक पालन करेगी और उसकी कार्यक्षमता भी पहले से काफी अधिक बढ़ जाएगी।

New Delhi, Jan 02 : भारत को आजाद हुए 72 साल हो गए लेकिन देश के सेना प्रमुख या सेनापति या सेनाध्यक्ष या प्रधान सेनापति की नियुक्ति अब हो रही है। इस महत्वपूर्ण पहल के लिए नरेंद्र मोदी सरकार को बधाई! यहां पहला सवाल है कि यह नियुक्ति सभी सरकारों के द्वारा टाली क्यों जाती रही ? क्योंकि हर प्रधानमंत्री को यह कहकर डरा दिया जाता था कि सेना के तीनों अंगों का यदि एक प्रधान हुआ तो इस बात की पूरी संभावना है कि वह आसानी से तख्ता-पलट कर दे।

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इस बात की पुष्टि आज से पूरे 50 साल पहले केनाडा की मेकगिल युनिवर्सिटी में मेरे भाषण के दौरान एक भारतीय जनरल ने कही थी, जो नेहरु-काल में उच्चपदस्थ थे। करगिल-युद्ध के बाद जो के. सुब्रह्मण्यम कमेटी बनी थी उसने भी साफ-साफ कहा था कि हमारी सेना के तीनों अंगों का एक प्रधान होना चाहिए। इस प्रधान की घोषणा तो हो गई लेकिन इसका पदनाम अजीब-सा है। ‘चीफ आॅफ डिफेंस स्टाफ’ बहुत ही अस्पष्ट-सा पदनाम है। इसका अर्थ क्या हुआ ? यह ठीक है कि अब जनरल बिपिन रावत परमाणु कमान के सदस्य भी बन जाएंगे लेकिन उनकी हैसियत क्या होगी ?

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वे जल, थल और नभ सेनाओं के मुखियाओं के बीच वैसे ही रहेंगे, जैसे ‘बराबरीवालों में कोई प्रथम’ रहता है। यह बात ब्रिटिश प्रधानमंत्री के लिए भी कही जाती है लेकिन भारत के कितने प्रधानमंत्रियों पर यह कहावत लागू होती है ? क्या वर्तमान भारत के ‘प्रधान सेवक’ पर यह बात लागू की जा सकती है ? आशा करना चाहिए कि हमारे फौजियों का बर्ताव हमारे नेताओं से अलग होगा लेकिन यहां सवाल यह भी है कि इन नए फौजी-प्रमुख की हैसियत क्या रक्षा मंत्री के सिर्फ प्रमुख सलाहकार की ही होगी ? यह अच्छा है कि वह सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों के बीच समन्वय करेंगे और रक्षा-मंत्री को पूरी फौज की जरुरतों के बारे में एकरुप जानकारी और सलाह देंगे।

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पता नहीं, फौज के तीनों अंगों के प्रमुखों को जो बराबरी का दर्जा अब तक हासिल था, वह अब ‘चीफ आॅफ डिफेंस स्टाफ’ के सामने कैसा रहेगा। जब कोई नया पद कायम होता है तो इस तरह की मुश्किलें तो सामने आती ही है। मुझे विश्वास है कि जनरल रावत इस एतिहासिक अवसर पर ऐसी स्वस्थ परंपराएं कायम कर देंगे कि फौज अपनी मर्यादाओं का दृढ़तापूर्वक पालन करेगी और उसकी कार्यक्षमता भी पहले से काफी अधिक बढ़ जाएगी। मोदी सरकार ने यह साहसिक पहले की है, यह उसके आत्म-विश्वास का परिचायक है लेकिन यह देखना भी उसका काम है कि भारतीय लोकतंत्र हर हालत में अक्षुण्ण रहे।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)