पवन वर्मा के बाद पीके के साथ भी नीतीश कर सकते हैं खेल?, ये है राजनीतिक समीकरण

सवाल ये उठ रहा है कि नीतीश कुमार पवन वर्मा और पीके सरीखे रणनीतिकार नेताओं से पीछा क्यों छुड़ाना चाहते हैं।

New Delhi, Jan 24 : बिहार के सीएम और जदयू राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने उम्मीद के अनुसार पार्टी राज्यसभा सांसद पवन वर्मा को दो टूक शब्दों में कह दिया, कि जहां उन्हें अच्छा लगे, जा सकते हैं, इसके बाद राजनीतिक अटकलें इस बात को लेकर शुरु हो गई है, कि प्रशांत किशोर को वो पार्टी से बाहर का रास्ता कब दिखाएंगे? हालांकि सुशासन बाबू के करीबियों को कहना है कि जैसे पीके को पार्टी में शामिल करने की तारीख उन्होने तय की थी, वैसे ही विदाई की तारीख भी सुविधा के अनुसार तय करेंगे।

Advertisement

राजनीतिक पूंजी पर असर
सवाल ये उठ रहा है कि नीतीश कुमार पवन वर्मा और पीके सरीखे रणनीतिकार नेताओं से पीछा क्यों छुड़ाना चाहते हैं, इसका सीधा जवाब यही है कि जिस दिन प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा नीतीश कुमार ने अपने मस्तिष्क से निकाल दी, उसी दिन पीएम मोदी की ओर दोस्ती का हाथ बढा दिया, हालांकि उन्हें मालूम था कि इसका सीधा असर उनकी राजनीतिक पूंजी पर पड़ेगा, जो कि धर्म निरपेक्ष नेता की है, वो एक बार फिर से बीजेपी की मदद से सीएम बनना चाहते हैं, इसे लेकर वो इस साल कोई विवाद नहीं चाहते, जिसका असर उनके चुनाव पर पड़े।

Advertisement

अमित शाह ने तीन बार घोषणा किया
सीएम नीतीश कुमार को लगता है कि ऐसा समय में जब बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने एक नहीं बल्कि तीन-तीन बार अपनी पार्टी के बयानवीरों को शांत कराने के लिये ये घोषणा कर दी, कि विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार की अगुवाई में ही लड़ी जाएगी, इसके बाद उनकी ओर से बीजेपी के किसी नीति-सिद्धांत से संबंधित कोई आलोचना करने वाले बयान या ट्वीट नहीं होने चाहिये।

Advertisement

ना पवन ना पीके की जरुरत
इसके साथ ही नीतीश कुमार का अपना आकलन ये भी लग रहा है, कि जब बीजेपी और लोजपा उनके साथ है, और सामने तेजस्वी यादव हैं, तो उन्हें ना तो पवन वर्मा के अंग्रेजी चैनलों में भागीदारी चाहिये और ना ही पीके के चुनावी नुस्खों की कोई जरुरत है, इसके समर्थन में वो में अपने सिपहसलारों को लोकसभा चुनाव के परिणाम दिखाते हैं, जब पीके को किनारे रखकर 40 में से 39 सीटें जीत ली।