Opinion – पत्रकार और पत्रकारिता पर महाभारत छिड़ा हुआ है

एक दूसरा वर्ग है जो खुद को रब्बिश कुमार का गोतिया साबित करने के लिए हाफिज सईद से लेकर दाऊद इब्राहिम तक को देशप्रेमी घोषित करने पर तुला है ।

New Delhi, Feb 01 : पत्रकार और पत्रकारिता पर फेसबुक में महाभारत छिड़ा हुआ है। कोई आत्ममुग्ध है कि वह व्यवस्था से लड़ रहा है , कोई खुद को रब्बिश कुमार साबित कर रहा है और कोई अखबार की खबर चिपकाकर बताना चाह रहा है कि भ्र्ष्टाचार के खिलाफ केवल वही परचम लहरा रहा है। रघुबर सरकार के कार्यकाल मे हुए घोटाले पर अखबार रंगे जा रहे हैं। चुनाव आचार संहिता लगने के ठीक पहले यही अखबार ” रघुपति राघव राजा राम ” गाते हुए लहालोट हो रहे थे ।

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सरकार पा## भी दे तो अखबार छापते — आज सरकार की पा## से घी की सुगंध मिली । …… उनके प##$$ में भी मखाने की पौष्टिकता दिखती थी । आज भ्रष्टाचार दिख रहा है। कल तक आंखों में रतौंधी हो गया था । छोटे अखबार तो विज्ञापन के बगैर नही चल सकते लेकिन बड़कवन को क्या हो गया था? विज्ञापन तो सरकार के बाप को देना पड़ेगा लेकिन थोड़ा हिम्मत तो दिखाओ , थोड़ा लड़ाकूपन तो जताओ । 5 साल तक डोड़ सांप जैसे खाली पूछ लहराते रहे और बच्चों को डराते रहे । न दांत में दम , न मुह में जहर । संपेरे के बीन में नाचते रहे अखबार । स्सा$$ किसी के पत्रकार कहने पर भी लाज लगता था । कहीं पलटकर कह दे कि पत्रकार कि पत्तलकार ? स्सा$$ सौँसे ठेसुआ जाएं। तब बताते कि भ्रष्टाचार कहाँ हो रहा है और कौन कर रहा है तो जानते कि जान है पत्रकारिता में । गड़बड़ी तो हो ही रही थी लेकिन अखबारों में दम नही था कि कुछ भी छापें ।

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एक दूसरा वर्ग है जो खुद को रब्बिश कुमार का गोतिया साबित करने के लिए हाफिज सईद से लेकर दाऊद इब्राहिम तक को देशप्रेमी घोषित करने पर तुला है । भक्त , अंधभक्त , महाभक्त , चमचा , ग़ुलाम जैसे शब्दों के साथ अपना श्रृंगार किये हुए हैं । ऐसे जहर उगल रहे हैं मानो पत्रकारिता में आई गिरावट को उनका जहर ही भरेगा । सोचते होंगे छोटा मोटा मैग्सेसे कोई दे दे । भैया ई किरकिट नही है कि नकल गेंद पर विकेट मिल जाएगा । छोटा वाला मैग्सेसे के लिए भी थोड़ा बहुत मौलिकता चाहिए । रब्बिश दिल्ली में मुह बिचकाकर कुछ बोलेगा और आप हियाँ ताली पीटीएगा तो मैग्सेसे नही बल्कि ” मग जैसे ” पुरस्कार ही मिल पाएंगे , धोने के लिए । रब्बिश गलत या सही , अपना रास्ता चुना । आप अपना चुनकर दिखाइए । बात बात में रब्बिश जैसे जुबान , हाव भाव , लिखा पढ़ी करने से कुछो नही होगा । रबिश की नकल करके तो पापप्रसुन वाजपेयी और अभिसार सरमा भी कुछो नही उखाड़ सके । आप तो रबिश की लिस्ट में भी नही है।

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इसलिए मित्तरो , फेसबुक पर पत्रकारिता का दंभ मत भरिये । यहां बहुत तीसमारखाँ हैं । यहां तो कम से कम जो मन मे आता है वो ही लिखिए /चीखिये । व्यवस्था से लड़ाई , सत्ता की खिलाफत , सम्प्रदायिकता , सेकुलरिज्म , मानवाधिकार , संविधान , बाबासाहेब , गांधीजी , पटेल सबकुछ चोंचलेबाजी है । ठंड बहुत है , किरान्ति विरांती छोड़िये । कम्बल ओढ़कर छिछोरे फिलम देखिए । गुड नाईट, जै श्री राम।

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)