Opinion – अभी बाकी है कटार का कांग्रेस की छाती में आघात

अबे तो चुनाव हार गए न?! समझ नहीं आता क्या? ये उसूलों वाली पार्टी है महाराजा! अभी टिकट उसे मिलेगा, जो विधानसभा भी न पाया और लोकसभा भी!

New Delhi, Mar 13 : दृश्य एक : मध्यप्रदेश
एक पुकार : महाराजा को टिकट दो!
दूसरी तरफ से प्रहार : काहे का महाराजा! लोकतंत्र है लोकतंत्र!!
फिर पुकार : महाराजा को टिकट दो!
दूसरी तरफ से प्रहार : ओ भाई, तुमने पहिले तो लोकसभा की टिकट ‘जबरजस्ती’ ली। विधानसभा का मैदान छोड़ दिया। हार गए। वो भी परंपरागत सीट गुना से। वो भी अपनी कार के ड्राइवर से। वो भी 1,45,549 से!

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पुकार जारी है : महाराजा काे टिकट दो!
अबे तो चुनाव हार गए न?! समझ नहीं आता क्या? ये उसूलों वाली पार्टी है महाराजा! अभी टिकट उसे मिलेगा, जो विधानसभा भी न पाया और लोकसभा भी! आप अभी इंतज़ार करो!
पार्श्व से एक आवाज़ गूंजती है : अरे कोई है? सत्यानाश फौजदार को तो भेजो!

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दृश्य दो :राजस्थान
एक पुकार : राज्यसभा का टिकट हमारे आदमी को दो!
दूसरी पुकार : नहीं हमें!
एक पुकार : मैं नेता प्रतिपक्ष था। मुझे दो!
दूसरी तरफ से प्रहार : देखो भैया, तुम विधानसभा हार गए थे! और तुम ना लोकसभा ही नहीं जीत सके! (बाँहें चढ़ाते हुए) भैया, हमारे यहाँ फार्मूला है कि हारे को नहीं देंगे! तुम्हें क्या, हमने तो मध्यप्रदेश में सिंधिया जैसे ताकतवर नेता को नहीं दिया! फार्मूला है भाई फार्मूला!

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यह नेता ढेर हो जाता है।
और अंतत: टिकट उस आदमी को जाता है जो पार्टी के एक प्रमुख नेता का पुराना चोटीकट चेला है!
चारों तरफ से पुकार : अरे ये तो तीन बार चुनाव हारा हुआ है, हम तो एक-एक ही बार हारे हैं?!!?
जादुई आवाज़ें गूंजती है : तुम सब पहले तीन-तीन बार हारकर आओ! अभी एक-एक बार ही हारे हो??!!

(Tribhuvun के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)