‘गांधी से राष्ट्रपिता की उपाधि लेकर विजय माल्या को यह उपाधि दे दी जाए’

अगर केवल मोटिवेट करने से महिलाओं और बच्चों पर सकारात्मक असर नहीं पड़ता और वे बड़ी मात्रा में शराब पीना शुरू नहीं करते, तो एक कठोर कानून बनाकर शराब पीना सबके लिए अनिवार्य कर देना चाहिए।

New Delhi, May 11 : हे मेरी प्रिय सरकार,
कोरोना ने बाकी दुनिया में भले तबाही मचाई हो, पर भारत को एक महान रास्ता दिखा दिया है। लॉकडाउन के दौरान शराब की दुकानें खोले जाने और तदुपरांत नागरिकों में अपार उत्साह देखने के बाद मेरे कुछ गंभीर सुझाव हैं। कृपया गौर फरमाएं।
1. पेट्रोल पम्पों की तरह पूरे देश में दस लाख शराब पम्प खुलवा दें। प्रति 1350 व्यक्ति एक शराब पम्प।

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2. लोग वहां जाएं और जैसे गाड़ी में पेट्रोल-डीज़ल भरी जाती है, वैसे ही उनके मुंह में नोज़ल डालकर उनके पेट में एक लीटर दो लीटर चार लीटर, जितनी शराब वे भरवाना चाहें, भर दी जाए। अगर वे टैंक फुल की तर्ज पर कहें पेट फुल कर दो, तो नोज़ल के आटोमेटिकली कट होने तक उनके पेट में शराब भरी जाए। तात्पर्य यह कि लोगों को पूर्ण तृप्ति मिलनी चाहिए।
3. मेरा मानना है कि मनुष्य पेट की क्षमता अधिकतम 5 लीटर तक शराब भरवाने की हो सकती है। इसे ध्यान में रखते हुए हर शराब पम्प पर इसी अनुसार शराब की उपलब्धता कराई जाए। अगर ऐसा किया जा सके तो एक तरफ जहां देश का कोई नागरिक प्यासा नहीं रहेगा, वहीं दूसरी तरफ सरकार को भी भरपूर राजस्व मिलेगा, जिससे देश की अर्थव्यवस्था कुलाँचे भरने लगेगी।

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4. आदर्श तो यह होता कि जैसे पाइपलाइन के जरिए घरों में पानी की आपूर्ति होती है, वैसे ही पाइपलाइन के जरिए देश के तमाम घरों में शराब की आपूर्ति की जाती, लेकिन इससे इस बात का डर रहेगा कि लोग कहीं पानी की तरह इसकी भी फिजूलखर्ची न शुरू कर दें और इसी से हाथ-मुँह धोना, नहाना और यहां तक कि शौच के बाद की सफाई भी न करने लगें। फिर यह भी है कि 70 साल में अगर सभी घरों तक पानी की पाइपलाइन बिछाना संभव नहीं हो पाया है, तो सभी घरों तक शराब की पाइपलाइन बिछाना कैसे और कब तक संभव हो सकेगा? फिर मैं कम से कम शराब आपूर्ति के मामले में गाँवों और शहरों में भेद नहीं करना चाहता, इसलिए फिलहाल शराब पम्पों की स्थापना ही बेहतर है।

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5. आज पूरी दुनिया में पीने के साफ पानी और शुद्ध दूध का संकट तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। इसे देखते हुए इनके अनिवार्य विकल्प के तौर पर शराब को स्वीकार्यता देने में अब देर नहीं करनी चाहिए। बाग-बगीचे भी कम हो चले हैं, इसलिए फलों के जूस और अन्यान्य पेय पदार्थों के विकल्प के तौर पर भी इसे ही प्रोत्साहित किया जाए।
6. मेरा तो यहां तक सुझाव है कि इनकम टैक्स पूरी तरह खत्म कर दीजिए। 5, 10, 15, 20, 25, 30 परसेंट के मामूली इनकम टैक्स से क्या कर लेंगे? इतने टैक्स से तो 40 दिन के लॉकडाउन में ही देश की अर्थव्यवस्था हांफने लगती है। उल्टे जनता में भी असंतोष रहता है कि इनकम का बड़ा हिस्सा तो सरकार ही हड़प लेती है! इसलिए लोग इनकम टैक्स चोरी भी करते हैं। इसलिए बेहतर है कि इनकम टैक्स के विकल्प के रूप में शराब पर ही एकमुश्त 70-75 प्रतिशत टैक्स ठोंक दीजिए। 100-200 प्रतिशत भी ठोंक सकते हैं। यकीन मानिए, कोई इस टैक्स की शिकायत नहीं करेगा, क्योंकि तृप्त लोग कभी शिकायत नहीं करते। साथ ही, कोई अपनी इनकम भी नहीं छिपा सकेगा, क्योंकि अपनी-अपनी इनकम के हिसाब से सभी नागरिक अपने आप शराब पम्पों पर टैक्स समेत बिल चुका आया करेंगे।

7. देश की अर्थव्यवस्था की बेहतरी के दृष्टिकोण से यह बात भी अच्छी नहीं है कि आज भी महिलाओं की बड़ी आबादी और बच्चों की लगभग पूरी आबादी शराब नहीं पीती। इसलिए महिलाओं को इस बात का मजबूती से अहसास कराया जाए कि आखिर वे पुरुषों से किस बात में कम हैं? इसलिए पुरूष अगर दो लीटर शराब पी सकते हैं, तो महिलाओं को चार लीटर शराब पीनी चाहिए। बच्चों को भी बचपन से ही आधा-एक लीटर शराब पीने के लिए अनुकूलित किया जाना चाहिए, ताकि बड़े होने पर वे भी प्रतिदिन कम से कम दो-चार लीटर शराब पीकर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकें।

8. अगर केवल मोटिवेट करने से महिलाओं और बच्चों पर सकारात्मक असर नहीं पड़ता और वे बड़ी मात्रा में शराब पीना शुरू नहीं करते, तो एक कठोर कानून बनाकर शराब पीना सबके लिए अनिवार्य कर देना चाहिए, ताकि अर्थव्यवस्था के विकास में सभी नागरिकों का समान योगदान सुनिश्चित हो सके और केवल पुरूषों पर ही ज़रूरत से अधिक भार न रहे।
9. अब आडंबर छोड़ा जाए और चुनाव में शराब बाँटने को भी अनुचित ठहराना बंद करना चाहिए। आखिर जब इसका बिकना-खरीदा जाना अनुचित नहीं है, तो बाँटना कैसे अनुचित हो गया? वो भी तब, जबकि यह साबित हो चुका है कि यह एक अनिवार्य आवश्यकता है। जब जरूरतमंदों को राशन पानी बाँट सकते हैं, तो ज़रूरतमंदों को शराब क्यों नहीं बांट सकते?

10. और आखिरी सलाह, कि अब महात्मा गांधी से राष्ट्रपिता की उपाधि छीनकर विजय माल्या को यह उपाथि दे दी जाए। उस महान पुरुष को क्षमा-याचना सहित ससम्मान भारत बुलाकर बड़े पैमाने पर शराब उत्पादन में जुटने के लिए कहा जाए।
ये सुझाव मैं इसलिए भी दे रहा हूँ, क्योंकि शराबियों के न केवल देश की अर्थव्यवस्था में महती योगदान से चकित हूँ, बल्कि उनमें गजब का अनुशासन देखकर भी मोहित हूँ। जितनी भीड़ में मक्का-मदीने तक में भगदड़ मच जाती है, उससे अधिक भीड़ को शराब की दुकानों के बाहर परम अनुशासन के साथ लाइन में खड़ी देखकर भला किस देशवासी का सीना गर्व से चौड़ा नहीं हो जाएगा?
जय हिंद, जय मांस, जय मदिरा।
जय विकास के ख्वाब।
जय शराब, जय जय शराब।

(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैें)
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