तमाम विसंगतियों के बावजूद हमारा PDS सिस्टम इस आपदा में गरीबों को कुछ न कुछ राहत दे रहा है
शहरों में रह रहे ज्यादातर प्रवासी मजदूर ऐसी तमाम सुविधाएं नहीं हैं। वे खाद्यान्न सुरक्षा योजना से वंचित हैं, उनके रहने का इंतजाम मकान मालिकों के रहमोकरम पर निर्भर है।
New Delhi, May 17 : इस आपदा में महानगरों से गांव की ओर पलायन क्यों हो रहा है? गांव से महानगरों की तरफ पलायन क्यों नहीं हो रहा? क्या आपने कभी इस निगाह से सोचा।
संकट तो दोनों जगह एक जैसा है। गरीबी तो गांवों में शहरों से काफी अधिक है। मगर गांवों से अमूमन ऐसी खबरें नहीं आ रहीं कि खाने पीने को लेकर बहुत संकट है। भूख से मरने की कुछ खबरें तो आईं मगर वे भी बहुत अधिक नहीं। इसकी वजह क्या है?
इसकी वजह है हमारी खाद्यान्न सुरक्षा योजना, हमारा पीडीएस सिस्टम। तमाम विसंगतियों के बावजूद हमारा पीडीएस सिस्टम इस आपदा में गरीबों को कुछ न कुछ राहत पहुंचा ही दे रहा है। इसलिये गांवों में वैसी अफरा तफरी नहीं है। गरीबों के पास फूस की टपरी ही सही, रहने के लिये ऐसा ठिकाना तो है, जहां से उसे कोई भगा नहीं सकता। जरूरतमंदों को खाने पीने के लिये कुछ अनाज देने वाले लोग भी हैं। खास कर स्वयं सहायता समूहों ने भी लोगों की मदद की एक ढंग की व्यवस्था विकसित कर ली है। गरीबों के खाते में कुछ न कुछ पेंशन भी चला ही गया है।
मगर शहरों में रह रहे ज्यादातर प्रवासी मजदूर ऐसी तमाम सुविधाएं नहीं हैं। वे खाद्यान्न सुरक्षा योजना से वंचित हैं, उनके रहने का इंतजाम मकान मालिकों के रहमोकरम पर निर्भर है। महंगाई काफी अधिक है। मदद की कोई सुनिश्चित व्यवस्था नहीं है। इसलिये उनका संकट अधिक गहरा है।
जो लोग हर वक़्त जन कल्याणकारी और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की आलोचना करते रहते हैं। उन्हें फालतू और मुफ्तखोरी बताते हैं। उन्हें देखना चाहिये कि यही योजनाएं आज गांव के गरीबों की इस आपदा में रक्षा कर रही है। वे सड़कों पर भटक नहीं रहे।
अगर हम महानगरों में प्रवासी मजदूरों को सुरक्षित देखना चाहते हैं तो उन्हें वहां भी खाद्यान्न सुरक्षा योजना से जोड़ना होगा, उनके लिये सुरक्षित आवास और आपदा में मदद का नेटवर्क विकसित करना होगा।