पुण्य तिथि विशेष – नेहरु का स्पष्ट कहना था कि भारत धर्म निरपेक्ष राज्य है न कि धर्म-हीन

वे धर्म के वैज्ञानिक और स्वच्छ दृष्टिकोण के समर्थक थे, जबकि उनके सामने तब भी गाय-गंगा- गोबर को महज नारों या अंध-आस्था के लिए दुरूपयोग करने वाले खड़े थे .

New Delhi, May 26 : 27 मई को पंडित नेहरु की पुन्य तिथि है , आज नेहरु के विचार बेहद प्रासंगिक हैं .आप सभी से निवेदन है कि आज शाम से नेहरु पर अधिक से अधिक लिखें ताकि हमारे पाठक उनके बारे में और उनके बारे में दुष्प्रचार की हकीकत जान सकें
मेरा इस संदर्भ में पहला पोस्ट

Advertisement

पंडित नेहरु वे भारतीय नेता थे जो आज़ादी की लडाई के दौरान और उसके बाद अपनी मृत्यु तक सत्ता में भी साम्प्रदायिकता , अंध विश्वास से लड़ते रहे- पार्टी के भीतर भी और बाहर भी . एक तरफ जिन्ना की सांप्रदायिक राजनीती थी तो उसके जवाब में कांग्रेस का बड़ा वर्ग हिन्दू राजनीति का पक्षधर था, . पंडित नेहरु हर कदम पर धार्मिकता, धर्म अन्धता और साम्प्रदायिकता के भेद को परिभाषित करते रहे , जान लें आज भी नेहरु कि मृत्यु के ५५ साल बाद संघ परिवार केवल नेहरु का गाली बकता है और दूसरी तरफ जमायत जैसे सांप्रदायिक संगठन सी ए ए/ एन आर सी आन्दोलन स्थल पर अम्बेडकर व् गांधी की चित्र तो लगाते हैं लेकिन नेहरु का नहीं . नेहरु के बारे में झूठी कहानियां गढ़ना , उनके फर्जी चित्र बनाना , उनके बारे में अ श्लील किस्से इलेक्रनिक माध्यम पर भेजना —

Advertisement

तनिक सोचें कि अपनी मृत्यु के छप्पन साल बाद भी आखिर उनसे किसे खतरा है ? जो इस तरह की अभद्र हरकतों की साजिश होती है ?? असल में उन्हें नेहरु के विचार, नीति या मूल्यों से खतरा है जो कि सांप्रदायिक उभार से सत्ता पाने की जुगत में आड़े आता हैं .
इसमें कोई संशय नहीं होना चाहिए कि साम्प्रदायिक आधार पर विभाजित हुए देश में ” सांप्रदायिक
सद्भाव” की अवधारणा और सभी को साथ ले कर चलने की नीति और तरीके की खोज पंडित नेहरु ने ही की थी और उसी के सिद्धांत के चलते , उनकी सामाजिक उत्थान की अर्थ निति के कारण सांप्रदायिक लेकिन छद्म सांस्कृतिक संगठनो के गोद में पलते रहे राजनितिक दल चार सीट भी नहीं पाते थे .

Advertisement

मेरा नेहरु को पसंद करने का सबसे बड़ा कारण है कि वे राजनेता थे , लेकिन राजनीती में आदर्शवाद में उनकी गहन आस्था थी , उनकी दृष्टि दूरगामी थी और उनकी नीतियाँ वैश्विक . वे वेहद संयमित, संतुलित और आदर्श राष्ट्रवाद के पालनकर्ता थे , उनके लिए राष्ट्रीयता देश के लिए भावुकता से भरे सम्बन्ध थे, वे दयानंद, विवेकानन्द या अरविन्द के राष्ट्रवाद सम्बन्धी “धार्मिक राष्ट्रीयता” से परिपूर्ण दृष्टिकोण से सहमत नहीं थे . तभी संघ परिवार राष्ट्रीयता के नाम पर इन नेताओं की फोटो टांगता है , हालांकि देश के लिए उनके योगदान पर वे कुछ आपदाओं के समय नेकर पहने सामन ढ़ोने के कुछ फोटो के अलावा कुछ पेश कर नहीं पाते हैं , नेहरु का राष्ट्रवाद विशुद्ध भारतीय था , जबकि उनके सामने राष्ट्रवाद को हिन्दू धर्म से जोड़ने वाले चुनौती थे .
नेहरु का स्पष्ट कहना था कि भारत धर्म निरपेक्ष राज्य है न कि धर्म-हीन . सभी धर्म को आदर करना , सभी को उनकी पूजा पद्धति के लिए समान अवसर देना राज्य का कर्तव्य है .वे धर्म के वैज्ञानिक और स्वच्छ दृष्टिकोण के समर्थक थे, जबकि उनके सामने तब भी गाय-गंगा- गोबर को महज नारों या अंध-आस्था के लिए दुरूपयोग करने वाले खड़े थे .

(वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)