कोरोना का हल्ला जैसे जैसे शांत होगा , मध्य वर्ग के दर्द गहरे होंगे, ये पलायन नहीं कर सकते

आपके आस पास यदि ऐसे लोग हैं जिनकी नौकरी का संकट है, जिनके वेतन कम हो गए हैं उनसे बातचीत करते रहें , उनका हौसला भी बढ़ाएं।

New Delhi, May 31 : कल से लॉक डाउन के उलटी गिनती के साथ ही उम्मीदें और अपेक्षाओं के बयार के बीच नयी चिंताएं भी अपने लिए स्थान बना रही हैं . कुछ करोड़ मजदूर घर लौट गए , कुछ लाख लघु-माध्यम उत्पादन इक्काई, व्यापार बंद हो गए — आये रोज सफ़ेद कोलर कम्पनियाँ जैसे – उबर , ज़ोमेतो , आदि से लोगों की नौकरियां जाने की खबरें हैं , नोयडा, गुरुग्राम में कई सौ कम्पनियां ऐसी हैं जो दस से सौ लोगों के साथ सॉफ्ट वेयर, आउट सोर्स मेंटेनेंस जैसे काम करती हैं – टूरिज्म- होटल जैसे काम — उनमें से लगभग पचास फीसदी लोगों की नौकरियां छूट चुकी हैं , अकेले दिल्ली एन सी आर में मीडिया से जुड़े दो हज़ार लोग घर बैठ चुके हैं . कार बेचने वाली कम्पनी हों या हाई एंड शो रूम — बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो रहे हैं .

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कामगार घर लौटे तो वे मेहनत- मजदूरी कर सकते हैं लेकिन जीवन के पच्चीस साल किसी अखबार के सम्पादकीय विभाग में जुड़े रहे तो परचून की दूकान भी नहीं चला सकते . छोटे कस्बों में जाओ तो इस तरह का कोई रोजगार नहीं मिलेगा , गगन चुम्बी ईमारतों में ऐसी कई आवाज़े घुट रही हैं — जिनमें अभी तीन महीने पहले तक पति-पत्नी दोनों काम करते थे लेकिन अब एक कि नौकरी गयी और दुसरे का वेतन आधा हो गया . कहने को घर में दो कार खड़ी हैं लेकिन किश्तें देने को पैसा नहीं — मकान की किश्त तो दूर सोसायटी का मेंटेनेंस देने के भी लाले पड़े हैं — इस समय न तो कार बिक रही है और न ही फ्लेट — न किसी को बोल सकते हैं न बच्चों की जरूरतों में कटौती कर सकते हैं — कई- कई घर ऐसी दुविधा में घुट रहे हैं .

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कल ही इंदौर में मेरे एक परिचित से बात हो रही थी– उनकी एक औद्योगिक ईकाई है — जो माल बाज़ार में उधार दिया उसका पैसा लगभग डूब गया- नया काम शुरू करना हो तो पूंजी नहीं क्योंकि सारी बचत तीन महीने में खा गये — कुछ माल बना लो तो बाज़ार में खपत नहीं —- फिर मजदुर को नगद देना है — ऐसे परिवार देश भर में लाखों में हैं — उनकी कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है लेकिन अपना जीवन स्तर बनाये रखने का दवाब जबर्दस्त हैं .
ऐसा ही एक और वर्ग है, सरकारी सेवा से रिटायर्ड, या जमापूंजी को बैंक या रियल एस्टेट या शेयर में लगा कर जीवकोपार्जन करने वाला। बैंक में जमा पर ब्याज दरें गिरने, प्रोपर्टी का किराया न मिलने और शेयर बाज़ार के लगातार नकारात्मक होने से इस वर्ग के करोड़ों लोग बेहद दुविधा और कुंठा में हैं। महंगाई बढ़ी लेकिन आय कम हो गयी ऊपर से महंगाई भत्ता बन्द।

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कोरोना का हल्ला जैसे जैसे शांत होगा , इस मध्य वर्ग के दर्द गहरे होंगे– ये पलायन नहीं कर सकते- यह कोई दूसरा काम नहीं कर सकते – जीवन स्तर में बदलाव के लिए इन्हें अपनी आत्मा को कुचलना होगा — ऐसे लोग आत्मघाती हो जाते हैं .
आपके आस पास यदि ऐसे लोग हैं जिनकी नौकरी का संकट है, जिनके वेतन कम हो गए हैं उनसे बातचीत करते रहें , उनका हौसला भी बढ़ाएं — वे कहेंगे नहीं लेकिन यदि महसूस हो तो उनका सहयोग भी करें — ये लोग न सरकारी राशन ले सकते हैं और न ही खाने की लाईन में लग पायेंगे
यह वर्ग बहुत बेसहारा और उपेक्षित छोड़ दिया गया है और यह बेहद भावुक भी है — इसे नए हालात में ढलने की आदत नहीं — इन्होने केवल प्रगति- विकास, जीडीपी देखी है और उस को ही लक्ष्य माना है — पराभव इनके लिए अकल्पनीय है . इनका साथ भी वैसे ही देना है जैसे हमने कामगारों का दिया

(वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)