वसुंधरा ने फेल कर दिया सचिन का पायलट प्रोजेक्ट, ये है इनसाइड स्टोरी
वसुंधरा राजे गुट के विधायक बिना उनकी मर्जी के पार्टी का साथ देंगे, या अशोक गहलोत का इस पर संशय था, वसुंधरा इस बीच धौलपुर महल में ही रही, वो ना तो जयपुर आई और ना ही दिल्ली गई।
New Delhi, Jul 16 : वसुंधरा राजे सिंधिया काफी वक्त से बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रही है, लेकिन राजस्थान में 72 विधायकों में से 45 वसुंधरा गुट के माने जाते हैं, सियासी बवंडर के बीच सचिन पायलट को समर्थन देने पर पार्टी नेतृत्व ने सचिन पायलट को मदद करने का मन बना लिया था, बस फैसला ये होना था कि पायलट को पार्टी में शामिल कर सचिन को सीएम बनाया जाए, या वसुंधरा को, इस रणनीति को अंजाम देने में सबसे ज्यादा जरुरत थी वसुंधरा राजे सिंधिया की, लेकिन उन्होने पूरी तरह से चुप्पी साध ली।
वसुंधरा की वजह से पलट गया खेल
वसुंधरा राजे गुट के विधायक बिना उनकी मर्जी के पार्टी का साथ देंगे, या अशोक गहलोत का इस पर संशय था, वसुंधरा इस बीच धौलपुर महल में ही रही, वो ना तो जयपुर आई और ना ही दिल्ली गई, इतना ही नहीं राजे ने इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम पर कोई बयान भी नहीं दिया, वसुंधरा के रवैये को देखकर बीजेपी इस मुद्दे पर बैकफुट पर आ गई।
गहलोत से वसुंधरा की नजदीकियां
संशय की एक और वजह वसुंधरा तथा गहलोत के बीच नजदीकी है, पूर्व सीएम से सरकारी बंगला खाली करवाने का आदेश हाईकोर्ट ने दे दिया था, इसके बावजूद सीएम गहलोत ने ना तो बंगला खाली करवाया और ना ही उन्हें नोटिस भेजा। जबकि किरोड़ीलाल मीणा तथा कांग्रेस नेता पूर्व सीएम जगन्नाथ पहाड़िया से कोर्ट के आदेश का पालन करवाते हुए बंगला खाली करवा लिया था।
वसुंधरा को फायदे से ज्यादा नुकसान दिखा
दरअसल गहलोत सरकार गिराने में वसुंधरा राजे को फायदे से ज्यादा नुकसान दिखा, अगर बीजेपी का सीएम बनता है, तो पार्टी वसुंधरा के अलावा गजेन्द्र शेखावत या किसी युवा चेहरे पर दांव लगाना चाहती थी, पायलट को सीएम बनाने के लिये समर्थन देना रणनीति का हिस्सा था, वसुंधरा राजे को दोनों ही हालात में खुद के किनारे जाने तथा अगले चुनाव में फिर सीएम उम्मीदवार बनने की संभावना खत्म होती नजर आ रही थी, इसी वजह से उन्होने पूरे मामले पर चुप्पी साध ली।