Bihar Election- उपेन्द्र कुशवाहा की एक चूक ने उन्हें बना दिया बिहार की राजनीति में ‘अछूत’!

एक जमाने में कुशवाहा नीतीश के बेहद खासमखास रहे थे, लेकिन बाद में दोनों में खटपट बढ गई, उन्होने 2013 में रालोसपा की स्थापना की।

New Delhi, Sep 26 : बिहार में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है, शुक्रवार को इलेक्शन कमीशन ने ऐलान किया, कि प्रदेश में तीन चरणों में चुनाव होंगे, हालांकि चुनाव आयोग के आलान से पहले ही राज्य के लिये केन्द्र से लेकर राज्य स्तर तक घोषणाओं का दौर जारी था, नेता तथा दल अपने-अपने पाले बदल रहे थे, इन्हीं पाला बदलने वालों में एक नाम है राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष तथा मोदी सरकार वन में मंत्री रह चुके उपेन्द्र कुशवाहा का, उपेन्द्र बिहार में शीर्ष पद पर पहुंचना चाहते हैं, लेकिन उनके फैसले उन्हें वहां पहुंचने से रोक रही है, कुशवाहा अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिये इस कदर बेताब हैं कि कोई ना कोई चूक कर बैठते हैं।

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राजनीतिक मंच की तलाश
उपेन्द्र कुशवाहा इस हद तक अपनी सियासी गहमा-गहमी के दलदल में फंस चुके हैं कि वो बिहार की राजनीति के गैरजरुरी शख्स बनते जा रहे हैं, आगामी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राजद की अगुवाई वाली महागठबंधन से बाहर होने के बाद कुशवाहा अब बिहार में विधानसभा चुनाव के जरिये अनुकूल सामाजिक समीकरण के साथ एक राजनीतिक मंच की तलाश कर रहे हैं। माना जा है कि वो एनडीए में शामिल होने या जन अधिकार मोर्चा के प्रमुख राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के साथ गठबंधन कर तीसरा मोर्चा बनाने को बेताब हैं, अगर थर्ड फ्रंट बनता है, तो कुछ अन्य दल भी इसमें शामिल हो सकते हैं।

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एनडीए में दिक्कत
हालांकि एनडीए में वापस जाने में कुशवाहा के सामने कई दिक्कतें हैं, सबसे पहले बिहार के सीएम नीतीश कुमार उन्हें एनडीए में शामिल होने नहीं देंगे, दोनों एक-दूसरे को नापसंद करते हैं, दूसरा महागठबंधन में कुशवाहा की सीटों की संख्या एनडीए में संभव नहीं हो सकती है, क्योंकि बीजेपी, जदयू और लोजपा में पहले से ही सीटों को लेकर रस्साकशी जारी है। हकीकत ये है कि पिछले विधानसभा तथा लोकसभा चुनावों में खराब चुनावी प्रदर्शन के बाद पिछले कुछ सालों में उपेन्द्र कुशवाहा की राजनीतिक जमीन कमजोर हुई है, बिहार की राजनीतिक वास्तविकताओं के बारे में उनकी सतही धारणा ने उन्हें परेशानी में डाल दिया है, जो उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिये बाधा बन गया।

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नीतीश के चलते एनडीए छोड़ा
एक जमाने में कुशवाहा नीतीश के बेहद खासमखास रहे थे, लेकिन बाद में दोनों में खटपट बढ गई, उन्होने 2013 में रालोसपा की स्थापना की, और एनडीए में शामिल हो गये, क्योंकि तब नीतीश एनडीए से अलग हो चुके थे, 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में रालोसपा ने तीन सीटों पर जीत हासिल की, कुशवाहा खुद सांसद फिर मोदी सरकार में राज्य मंत्री बनाये गये, फिर 2015 विघानसभा चुनाव में एनडीए के साथ ही चुनाव लड़ा, 243 में से 23 सीटें मिली, हालांकि जीत सिर्फ दो ही सीट पाये। दूसरी ओर नीतीश 2017 में महागठबंधन छोड़ एनडीए में वापस आ गये, तो कुशवाहा ने शिक्षा के क्षेत्र में कथित कुप्रबंधन और बिगड़ती कानून व्यवस्था पर नीतीश सरकार को घेरकर नाराजगी दिखानी शुरु कर दी, 2019 लोकसभा चुनाव से पहले कुशवाहा ने अपनी पार्टी के लिये तीन से ज्यादा लोकसभा सीटों की मांग की, बात नहीं बनी, तो वो महागठबंधन में चले गये।