18 की उम्र में घर से भागे, मजदूरी की, चुनाव हारकर भी बने नीतीश सरकार में मंत्री!
मुकेश सहनी के शब्दों में वो एक लेबर के रुप में फिल्म देवदास के सेट पर पहुंचे थे, काम था सेट को डिजाइन करने के लिये शीशा काटना।
New Delhi, Nov 25 : ये कहानी है एक मजदूर के मंत्री बनने की, जिंदगी इत्तेफाक है, कल भी थी और आज भी है, ना जाने कितने किस्से हैं, कोई घर से भाग गया और कुछ साल बाद कामयाब इंसान होकर लौटा, दुनिया में लाखों लोग मेहनत करते हैं, लेकिन शोहरत चंद लोगों को ही नसीब होती है, कोई गैर राजनीतिक व्यरक्ति दो साल पहले राजनीतिक पार्टी बनाता है और इतने कम समय में ही बिहार सरकार में मंत्री बन जाए, तो इसे क्या कहेंगे। फिल्मी दुनिया में काम करने वाले मुकेश सहनी की कहानी भी फिल्मी ही है, वो 18 साल की उम्र में दरभंगा से भागकर मुंबई पहुंचे, फिर मायानगरी में जो हुई, वो किसी फिल्म की स्क्रिप्ट जैसी लगती है।
घर से भागकर मुंबई पहुंचे
दरभंगा के गौरा बौराम में रहने वाले मुकेश तब स्कूल में पढते थे, करीब 18 साल उम्र थी, मुकेश के दोस्त को घर से भागकर कुछ करने की सूझी, उसने मुकेश को दिल की बात बताई, दोनों दोस्त घर से भागने को राजी हो गये। घर से भागकर दरभंगा रेलवे स्टेशन पहुंचे, जो पहली ट्रेन आई, वो पवन एक्सप्रेस थी, जो मुंबई जा रही थी, घर के लोगों को कहीं खबर ना लग जाए, इसलिये दोनों ने पहली ट्रेन पकड़ ली, उनके गांव के कुछ लोग पहले से ही मुंबई में छोटे-मोटे काम कर रहे थे, दोनों उनके पास पहुंचे, उन लोगों की मदद से मुकेश को एक दुकान में काम मिल गया, दुकान का नाम था नॉवल्टी स्टोर, सैलरी तय हुई 900 रुपये महीना, रोटी का इंतजाम हुआ, तो मुकेश मेहनत से काम में जुट गये, उसी नॉवल्टी स्टोर के बगल में एक फोटो फ्रेम की दुकान थी।
शीशा तराशते-तराशते खुद को तराश लिया
फोटो फ्रेम के दुकान के मालिक से मुकेश की दोस्ती हो गई, वो अकसर मुकेश को चाय-नाश्ता करवाते थे, बदले में वीआईपी प्रमुख उनका काम कर देते थे, शीशा काटने और उसे नये-नये शेप देने में मुकेश सहनी ने हुनर हासिल किया, उन्हीं दिनों संजय लीला भंसाली देवदास बना रहे थे, फिल्म के आर्ट डायरेक्टर नितिन देसाई थी, जो फिल्म का सेट बना रहे थे, एक दिन नितिन देसाई का एक मुलाजिम फोटो फ्रेम की दुकान पर पहुंचा, उन्हें शीशा काटने वाले कुछ कारीगरों की जरुरत थी, दुकानदार ने मुकेश को बुलाया और दोनों की बात करा दी, मेहनताना तय हुआ रोजना 500 रुपये, कहां 900 रुपये महीने और कहां रोजाना 500, मुकेश ने नॉवल्टी का काम छोड़ दिया और वो देवदास के सेट पर पहुंच गये।
मायानगरी में एंट्री
मुकेश सहनी के शब्दों में वो एक लेबर के रुप में फिल्म देवदास के सेट पर पहुंचे थे, काम था सेट को डिजाइन करने के लिये शीशा काटना, सहनी में एक जबरदस्त खूबी है, किसी काम को देखकर तुरंत सीख जाना, मुकेश ने एक मजदूर के रुप में काम शुरु किया था, लेकिन उनके काम में इतनी नफासत थी कि एक महीने में ही तरक्की हो गई, उन्हें सुपरवाइजर बना दिया, इसका असर ये हुआ कि नितिन देसाई भी उन्हें नाम से जानने लगे।
काम के बदौलत पहचान बनाई
मुकेश सहनी ने काम का सिक्का जमा लिया, तो उन्हें सेट डिजाइन प्रोजेक्ट का इंचार्ज बना दिया गया, अब सहनी के लिये काम नशा बन गया, इसकी गूंज संजय लीला भंसाली तक पहुंची, काम देखकर स्टार फिल्ममेकर भी प्रभावित हुए, अब हालत ये हो गई, कि संजय लीला भंसाली या नितिन देसाई सहनी को नाम से बुलाते और कहते कि फलां काम कल तक कर देना है। उन्होने सेट डिजाइन का काम भी सीख लिया, फिर भंसाली ने उन्हें सेट डिजाइन का पूरा कांट्रेक्ट ही दे दिया, फिल्म देवदास बनते-बनते उनकी जिंदगी पलट चुकी थी।
शुरु हुआ मुंबई-पटना आना-जाना
2010 तक मुकेश सहनी ने खूब पैसा और नाम कमाया, फिर उनके मन में सामाजिक कार्य में उतरने का विचार आया, उन्होने अपने स्वजातीय निषाद समुदाय को आगे बढाने का बीड़ा उठाय, पहले सहनी समाज कल्याण संस्थान की स्थापना की, दो ऑफिस खोलो, एक दरभंगा में तो दूसरा पटना में, उन्होने अपने समाज के होनहार छात्रों को पढाने पर ध्यान दिया, उन्होने निषाद विकास संघ बनाया। साल 2013 में उनके समाज के कुछ लोगों ने सलाह दी, कि अगर एक ब़ड़ा सम्मेलन किया जाए, तो अच्छा संदेश जाएगा, खुद सहनी फिल्मी दुनिया में रहने की वजह से पब्लिसिटी और प्रमोशन के महत्व को जानते थे, उन्होने दरभंगा के राज मैदान में सम्मेलन किया, मंच का भव्य सेट बनवाया, खूब प्रचार-प्रसार हुई, जिला स्तर के सम्मेलन में ही करीब 75 हजार की भीड़ जुटा दी, चर्चा होने लगी कि एक मछुआरा का बेटा जो मुंबई में बड़ा आदमी बन गया है।
सन ऑफ मल्लाह के रुप में सामने आये
इस सभा में मुकेश सहनी ने खुद को पहली बार सन ऑफ मल्लाह के रुप में पेश किया, 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिये प्रचार किया, फिर वो महागठबंधन में आ गये, 2018 में विकासशील इंसान पार्टी बनाई, 2019 लोकसभा चुनाव में खगड़िया से चुनाव लड़े, लेकिन हार गये, उनकी पार्टी के अन्य उम्मीदवार भी नहीं जीत पाये, हार ने सहनी को हाशिये पर डाल दिया। फिर 2020 चुनाव से ठीक पहले उन्होने महागठबंधन छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया, बीजेपी ने अपने कोटे से 11 सीटें दी, जिसमें 4 विधायक जीतने में सफल रहे, हालांकि वो खुद सिमरी बख्तियारपुर से चुनाव हार गये। हालांकि चुनाव हारने के बाद भी वो मंत्री पद पाने में कामयाब रहे हैं।