जानें म्‍यांमार में तख्‍ता पलट कर आंग सान को जेल में बंद करने वाले कुख्यात सेना प्रमुख की कहानी

म्यांमार में तख्‍ता पलट होते ही अब सबकी नजरें सेना प्रमुख पर आ टिकी हैं, सेना की ओर से बयान जारी कर इसकी जारी दी गई थीं ।

New Delhi, Feb 03: मयांमार में सत्तारूढ़ पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के मुख्‍य नेताओं की गिरफ्तारी के बाद अब सबकी नजरें सेना प्रमुख सीनियर जनरल मिन आंग लाइंग पर टिकी हैं । सेना ने देश की जिम्‍मेदारी, सत्‍ता की कमाल मिन आंग लाइंग के हाथों में सौंपी है । म्यांमार की सेना ने तख्तापलट करने के कुछ घंटे बाद एक बयान जारी किया और बताया कि देश में अब सैन्‍य शासन हैं और जनरल मिन आंग लाइंग ही अब विधायिका, प्रशासन और न्यायपालिका की जिम्मेदारी संभालेंगे।

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म्यांमार में कितनी ताकतवर है सेना?
म्यांमार की राजनीति हमेशा से ही सेना के दबाव में रही है । साल 1962 में तख्तापलट के बाद से ही यहां सेना का शासन रहा है । लेकिन देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था की मांग तेज होने के बाद साल 2008 में सेना ही नया संविधान लाई थी । इस नए संविधान में लोकतांत्रिक सरकार के साथ विपक्षी दलों के नेता को भी जगह दी गई । लेकिन इसके साथ ही सेना की स्वायत्तता और वर्चस्व को भी बनाए रखा गया है ।

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सेना प्रमुख जवाबदेह नहीं
नए संविधान में सेना प्रमुख को अपने लोगों की नियुक्ति करने और सैन्य मामलों में अंतिम फैसला करने का अधिकार दिया गया था, या यूं कहें कि सेना प्रमुख को किसी के प्रति जवाबदेह नहीं बनाया गया तो गलत नहीं होगा । म्यांमार की लोकतांत्रिक सरकार किसी कानून को ला तो सकती है लेकिन इसे लागू कराने की शक्ति सेना प्रमुख के पास ही है । संविधान में दी गई ताकत का ही इस्तेमाल करते हुए म्यांमार की सेना ने सोमवार को आंग सान सू समेत सत्ताधारी पार्टी एनएलडी के तमाम नेताओं की गिरफ्तारी की और तख्तापलट को अंजाम दिया ।

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जनरल मिन आंग लाइंग
देश में तख्तापलट को अंजाम देने वाले जनरल मिन आंग लाइंग की उम्र 64 साल है । इन्‍होंने साल 1972-74 तक यंगून यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई की । जब लाइंग कानून की पढ़ाई कर रहे थे, उस वक्त म्यांमार में राजनीति में सुधार की लड़ाई जोरों पर थी । उनके साथी छात्र जहां प्रदर्शनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे तो मिन आंग लाइंग मिलिट्री यूनिवर्सिटी डिफेंस सर्विसेज एकेडमी में दाखिले के लिए प्रयासरत थे । साल 1974 में उन्‍हें एकेडमी में दाखिला मिला । लाइंग एक औसत दर्जे के कैडेट थे, उनके साथी उनके मिडिल रैंक्स से म्यांमार के सेना प्रमुख बनने के सफर पर भी हैरानगी जाहिर करते हैं ।

लाइंग का कार्यकाल
मिन आंग लाइंग 30 मार्च 2011 को मयांमार सेना प्रमुख बने । ये वो समय था जब म्यांमार लोकतंत्र की तरफ कदम आगे बढ़ा रहा था । मिन आंग लाइंग का सेना में ज्यादातर समय पूर्वी सीमा पर विद्रोहियों से लड़ाई में बीता । ये इलाका म्यांमार के अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के लिए जाना जाता है । इसके साथ ही साल 2009 में मिन आंग लाइंग ने म्यांमार-चीन सीमा पर कोकांग विशेष क्षेत्र में सशस्त्र गुटों के खिलाफ सफल ऑपरेशन चलाया था । यंगून के राजनयिकों के मुताबिक साल 2016 में जब आंग सान सू की का पहला कार्यकाल शुरू हुआ था  तब तक आंग लाइंग खुद को बदल चुके थे । दुनिया को लगने लगा था कि वो म्यांमार की राजनीति में सेना के दखल को पूरी तरह से खत्म करके देश में पूर्ण लोकतंत्र की स्थापना करेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ ।

रोहिंग्‍या अल्‍पसंख्‍यकों के खिलाफ अभियान
साल 2015 में आम चुनाव से ठीक पहले आंग लाइंग ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में म्यांमार की राजनीति में सेना की सक्रिय भूमिका की वकालत की थी ।  आंग लाइंग ने फरवरी 2016 में अपने कार्यकाल को पांच साल के लिए बढ़ा लिया था । लाइंग ने फेसबुक और सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए धीरे-धीरे अपनी लोकप्रियता बढ़ाई। हालांकि, साल 2017 में रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ कार्रवाई की वजह से उनका फेसबुक अकाउंट बैन कर दिया गया। लाइंग रोहिंग्या अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपने अभियान की वजह से पूरी दुनिया में कुख्यात हो गए थे । 2017 में लाइंग के नेतृत्व में हुए सैन्य अभियान के कारण 7 लाख रोहिंग्या मुसलमान पड़ोसी देश बांग्लादेश भागने के लिए मजबूर हुए । संयुक्त राष्ट्र ने जब मामले की जांच की तो म्यांमार की सेना पर नस्लीय नरसंहार से लेकर सामूहिक हत्याएं और गैंगरेप की घटनाओं को अंजाम देने के सबूत मिले । अमेरिका ने इसके जवाब में साल 2019 में मिन आंग लाइंग और सेना के तीन अन्य नेताओं पर प्रतिबंध लगा दिए थे ।