हिमा दास के कंधों पर सज गए सितारे, ‘उड़न परी’ बन गई DSP, बेहद गरीबी में बीता बचपन

हिमा दास शुक्रवार को डीएसपी बन गईं, उनके कंधों पर सजे सितारे उनके संघर्ष में चार चांद लगा रहे हैं । जानिए कैसे एक आदिवासी लड़की आज इस मुकाम तक पहुंची ।

New Delhi, Feb 27: आदिवासी परिवार में जन्‍मी, बेहद गरीबी में पली-बढ़ी हिमा दास सपने देखने से नहीं डरी, जीवन की मुश्किलें उनके हौसलों को कभी तोड़ नहीं पाई । यही वजह है कि वो देश में आज उड़न परी के रूप में जानी जाती हैं । स्टार फर्राटा धाविका हिमा दास शुक्रवार को असम पुलिस में उप अधीक्षक यानी कि DSP बन गई हैं । इस समारोह में असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने हिमा को नियुक्ति पत्र सौंपा । इस खास मौके पर पुलिस महानिदेशक समेत शीर्ष पुलिस अधिकारी और प्रदेश सरकार के अन्‍य अधिकारी भी मौजूद थे ।

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हिमा को मिल रहीं बधाईयां
हिमा दास के कंधो पर सजे सितारे उनके संघर्ष का मान बढ़ाते दिख रहे हैं । सोशल मीडिया पर हिमा देश की चहेती हैं । उनकी जबरदस्त फैन फोलोइंग है, हिमा ने पदभार लेते ही फेसबुक पर अपनी तस्वीरें शेयर की हैं, साथ ही असम सीएम को दिल से धन्यवाद भी कहा । हिमा ने कहा कि असम पुलिस को ज्वाइन करना बचपन के सपने के पूरे होने जैसा है । हिमा ने कहा कि DSP बनने के बाद भी एथलेटिक्स करियर जारी रहेगा।

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हिमा ने लिखा
हिमा दास ने तस्‍वीरें शेयर कर बताया कि वह बचपन से पुलिस अधिकारी बनने का सपना देखती आई हैं। हिमा बोलीं, ‘यहां लोगों को पता है। मैं कुछ अलग नहीं कहने जा रही। स्कूली दिनों से ही मैं पुलिस अधिकारी बनना चाहती थी और यह मेरी मां का भी सपना था। मां दुर्गापूजा के दौरान मुझे खिलौने में बंदूक दिलाती थी। मां कहती थी कि मैं असम पुलिस की सेवा करूं और अच्छी इंसान बनूं।’ हिमा एशियाई खेलों की रजत पदक विजेता हैं और जूनियर विश्व चैम्पियन रह चुकी हैं ।

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खेल ही सब कुछ
हिमा दास ने कहा-  ‘मुझे सब कुछ खेलों की वजह से मिला है। मैं प्रदेश में खेल की बेहतरी के लिए काम करूंगी और असम को हरियाणा की तरह सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला राज्य बनाने की कोशिश करूंगी। असम पुलिस के लिए काम करते हुए अपना कैरियर भी जारी रखूंगी।’ आपको बता दें हिमा की सफलता के शिखर तक पहुंचने की दास्‍तां बहुत ही हैरान करने वाली हैं, उतार चढाव से भरपूर उनके जीवन में मां-पिता का साथ हमेशा रहा ।

17 लोगों का परिवार
हिमा दास असम के नगांव जिले के धींग गांव में रहने वाले एक साधारण चावल परिवार में जन्‍मी, पिता रंजीत और मां का नाम जोनाली है । 9 जनवरी 2000 को जन्मी हिमा का करीब 17 लोगों का परिवार है। छह भाई-बहनों में वो सबसे छोटी हैं। पूरा परिवार धान की खेती करता है। वो भी यही करती थीं, खाली वक्त में खेत के पास मौजूद मैदान पर लड़कों के साथ फुटबॉल खेलती थीं। उनके बेहतरीन खेल को देखते हुए युवा व खेल निदेशालय के कोच निपोन दास हिमा से काफी प्रभावित हुए। जिसके बाद उन्होंने हिमा को एथलीट बनने की सलाह दी।

नंगे पैर ही लगाई रेस, कड़ी मेहनत से हुईं सफल
कोच की बातें तो परिजन समझा गए लेकिन उनके पास ट्रेनिंग, कपड़े-जूतों के लिए पैसे नहीं थे । ऐसे में कोच ने उनकी मदद की । हिमा टायर बांधकर दौड़ा करती थीं, पैरों में फटे-पुराने जूते भी नहीं थे नंगे पैर ही रेस लगाया करती थीं। फिर एथलिट बनने के लिए हिमा घर से करीब 140 किलोमीटर दूर गुवाहाटी चली गईं, उन्होंने सारुसाजई स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स में ट्रेनिंग लेनी शुरू की। 18 साल की हिमा ने यहीं से अपने करियर के पहले एथलेटिक्स कॉम्पटिशन में हिस्सा लिया था। इसी साल उन्‍हें गोल्डकोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए चुना गया, वो यहां 400 मीटर की दूरी 51.31 सेकंड में पूरी कर छठे स्थान पर रही थीं। पिछले महीने गुवाहाटी में हुई नेशनल इंटर स्टेट चैम्पियनशिप में उन्‍होंने अपनी बेस्ट परफॉर्मेंस दी थी। हिमा दास पहली भारतीय महिला एथलीट हैं, जिन्होंने किसी भी फॉर्मेट में गोल्ड मेडल जीता है। हिमा साल 2019 में पांच स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं। 25 सितंबर 2018 को हिमा दास को अर्जुन अवॉर्ड से नवाजा गया था।