सुशील कुमार की तरह 33 साल पहले हत्या के केस में फंसे थे सिद्धू, सड़क पर की थी मारपीट

2002 में पंजाब सरकार ने सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की, 2006 में हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलट दिया, हाई कोर्ट ने सिद्धू को मामले में दोषी मानते हुए 3 साल की कैद की सजा सुनाई।

New Delhi, May 29 : पहलवान सागर धनखड़ हत्याकांड में दो बार के ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार पुलिस हिरासत में हैं, उनसे पूछताछ की जा रही है, सागर के केस ने 33 साल पहले एक मामले की याद दिला दी, जी हां, 27 दिसंबर 1988 को पटियाला में नवजोत सिंह सिद्धू की गुरनाम सिंह नामक शख्स से लड़ाई हो गई, इस दौरान सिद्धू ने गुरनाम को घूंसा मार दिया, बाद में अस्पताल में गुरनाम सिंह की मौत हो गई।

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कोर्ट में केस
सेशन कोर्ट सिद्धू के खिलाफ मुकदमा चला, सितंबर 1999 में पटियाला के जिला एवं सत्र न्यायालय में इस मामले की सुनवाई का फैसला आता है, जिसमें कोर्ट इस मामले को 302 का मामला नहीं मानती है, SIDHU क्योंकि दोनों एक-दूसरे को पहले से नहीं जानते थे, लड़ाई के दौरान किसी हथियार का इस्तेमाल भी नहीं हुआ था, एक तरह से ये गुस्से में अचानक हुई कार्रवाई थी, कोर्ट ने सिद्धू को सबूतों के अभाव में 302 और इस पूरे मामले से बरी कर दिया।

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सांसद पद से इस्तीफा
हालांकि 2002 में पंजाब सरकार ने सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की, 2006 में हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलट दिया, हाई कोर्ट ने सिद्धू को मामले में दोषी मानते हुए 3 साल की कैद की सजा सुनाई, Navjot_Singh_Sidhu_PTI (1) तब सिद्धू अमृतसर लोकसभा सीट से सांसद भी थे, लेकिन सजायाफ्ता होने की वजह से उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा, इसके बाद सिद्धू ने 11 जनवरी 2007 को कोर्ट में सरेंडर कर दिया।

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जेटली को बनाया वकील
अगले ही दिन यानी 12 जनवरी 2007 को सिद्धू ने अरुण जेटली को अपना वकील बनाया, जेटली ने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी, वहां से सिद्धू को जमानत मिल गई, साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में हम आगे की सुनवाई करेंगे और हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से सिद्धू फिर से चुनाव लड़ने के हकदार हो गये, उन्होने अमृतसर से बीजेपी के टिकट पर उपचुनाव लड़ा और जीत भी गये, सुप्रीम कोर्ट ने मई 2018 में सिद्धू को इस पूरे मामले से बरी कर दिया, कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, जिस समय ये लड़ाई हुई, तब सिद्धू और गुरनाम एक-दूसरे को जानते नहीं थे, इसलिये पुरानी दुश्मनी नहीं हो सकती, दोनों में से किसी के पास हथियार नहीं था, तो बेनिफिट ऑफ डाउट दिया जाता है, इसी आधार पर कोर्ट ने 304 (गैर इरादतन हत्या) हटाकर 323 (किसी को चोट पहुंचाना, इसमें अधिकतम एक साल की सजा या 1 लाख रुपये जुर्माना या दोनों सजा दी जा सकती है) धारा लगा दी, सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सिद्धू को सिर्फ 1 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई।