चिराग की जिद या कुछ और, जानिये रामविलास के निधन के 1 साल के भीतर ही क्यों टूट गई लोजपा?

पूर्व केन्द्रीय मंत्री और लोजपा संस्थापक रामविलास पासवान का निधन पिछले साल 8 अक्टूबर को हुई, उससे पहले से ही पार्टी की कमान चिराग पासवान के पास थी, लेकिन चेहरा रामविलास ही थे।

New Delhi, Jun 14 : चिराग पासवान की अगुवाई वाली लोजपा बिहार में एक बार फिर से टूट का शिकार हुई है, दरअसल बिहार विधानसभा चुनाव के बाद ये दूसरा मौका है, जब पार्टी के नेता ही अपने सुप्रीमो का साथ छोड़कर दूसरे दल में जा मिले हैं, बिहार चुनाव से पहले चिराग पासवान के बगावती तेवर का खामियाजा उनकी पार्टी को बखूबी उठाना पड़ा था, यही कारण है कि विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद से पार्टी में असंतोष के स्वर फूट पड़े थे, ऐसे में रविवार को देर शाम हुई सियासी हलचल से साफ हो गया कि पार्टी के 6 में से 5 सांसदों ने चिराग को अपना नेता मानने से इंकार कर दिया है।

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नया नेता चुना
पार्टी में हुई बगावत के बाद जहां सभी नेताओं ने चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस को अपना नेता मान लिया है, तो वहीं दूसरी ओर उनके जदयू में जाने की प्रबल संभावना बन गई है, chirag paswan2 इससे पहले पार्टी के एक मात्र विधायक राजकुमार सिंह चिराग के फैसले और नीतियों का विरोध करते हुए जदयू में शामिल हो चुके हैं, माना जा रहा है कि बागियों का नेतृत्व करने वाले चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस इस मसले को लेकर सोमवार को सार्वजनिक तौर पर बात करेंगे, सबसे अहम सवाल ये है कि आखिर रामविलास पासवान के मौत के एक साल के अंदर ही पार्टी क्यों टूट गई।

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पिछले साल निधन
पूर्व केन्द्रीय मंत्री और लोजपा संस्थापक रामविलास पासवान का निधन पिछले साल 8 अक्टूबर को हुई, उससे पहले से ही पार्टी की कमान चिराग पासवान के पास थी, लेकिन चेहरा रामविलास ही थे, लेकिन पासवान के निधन के बाद अब पार्टी टूटती ही जा रही है, चिराग के बागी तेवर और नीतीश कुमार से उनकी सियासी दुश्मनी का खामियाजा बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी को उठानी पड़ी।

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सिर्फ 1 सीट पर जीत
बिहार विधानसभा चुनाव में लोजपा एनडीए का हिस्सा थी, लेकिन चिराग ने जिद कर अकेले लड़ने का फैसला लिया, पार्टी 143 सीटों पर चुनावी मैदान में उतरी, लेकिन उन्हें सिर्फ 1 सीट पर सफलता मिली। विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद तो लोजपा में जैसे घमासान सा मच गया, विरोध और असंतोष के स्वर के साथ चुनाव परिणाम के बाद कई जिलाध्यक्ष समेत 200 से ज्यादा नेता एलजेपी छोड़कर जदयू में शामिल हो गये, पार्टी को विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद जदयू के कद्दावर नेताओं ने लोजपा के सांसदों को तोड़ने में बड़ी भूमिका निभाई।

चाचा ने ही की बगावत
इस बात के संकेत तभी मिल गये थे, जब पार्टी के सांसदों में टूट की बात सामने आई थी, लेकिन तब मामला दब गया था, उस समय भी बागी सांसदों का नेतृत्व पशुपति कुमार पारस ही कर रहे थे, ये भी माना जा रहा है कि पार्टी में असंतोष की एक वजह रामविलास पासवान के निधन के बाद उनके राजनीतिक विरासत को कब्जे को लेकर परिवार का अंदरुनी विवाद भी था, हालांकि तब उनके लेटर हेड पर इन चर्चाओं का खंडन कर पारस ने इस मामले को विराम लगा दिया था।