शिव जी ने दिया था आशीर्वाद तब बने शनि देव समस्‍त ग्रहों के स्वामी, रोचक शनि जन्म कथा

समस्‍त ग्रहों के स्‍वामी शनि देव की जिस पर कृपा हो जाए उसके वारे-न्‍यारे और जिस पर कुदृष्टि पड़ जाए उसका जीवन संकट में आ जाता है । जानें उनके जन्‍म की कथा ।

New Delhi, Jul 16: समस्‍त ग्रहों के स्‍वामी शनि देव न्याय के देवता कहे जाते हैं । लेकिन शनि देव को ये शक्तियों भगवान शिव के वरदान से प्राप्‍त हुईं थीं । शास्‍त्रों के अनुसार शनि देव ने भगवान शिव से वरदान मांगा था कि वो उन्‍हें सूर्य से अधिक शक्तिशाली व पूज्य होने का वरदान दें । जिस पर शिव जी ने उन्‍हें वरदान देते हुए कहा, तुम नौ ग्रहों में श्रेष्ठ स्थान पाने के साथ ही सर्वोच्च न्यायाधीश व दंडाधिकारी रहोगे । साधारण मानव तो क्या देवता, असुर, सिद्ध, विद्याधर, गंधर्व व नाग सभी तुम्हारे नाम से भयभीत होंगे।’

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शनिदेव की जन्‍म कथा
शनिवार के दिन शनि जन्‍म कथा के बारे में सुनना पुण्‍य का फल देता है । Shani devउनके जन्म से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, कश्यप मुनि के वंशज भगवान सूर्यनारायण की पत्नी स्वर्णा यानी कि छाया की कठोर तपस्या से ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि का जन्म हुआ । चूंकि उनकी माता ने शंकर जी की कठोर तपस्या कर, तेज गर्मी व धूप सहकर उन्‍हें प्राप्‍त किया था इसी वजह से शनि का वर्ण गर्भ में ही काला हो गया । लेकिन माता की तपोशक्ति का फल शनि को मिला ।

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भगवान सूर्य ने नहीं माना अपना पुत्र
कथानुसार, जब भगवान सूर्य पत्नी छाया से मिलने गए तब शनि ने उनके तेज से अपने नेत्र बंद कर लिए । जब सूर्य ने देखा कि बालक का रंग काला है तो उन्‍होंने कहा कि ये उनका नहीं हो सकता । सूर्य ने पत्‍नी छाया से अपना यह संदेह व्यक्त भी कर दिया । इसी वजह से शनि के मन में बालपन से ही अपने पिता के प्रति शत्रु भाव पैदा हो गए । शनि के जन्म के बाद पिता सूर्य ने कभी उनके साथ पुत्रवत प्रेम प्रदर्शित नहीं किया । इसके बाद ही शनि ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया, और ग्रहों के स्‍वामी बन गए ।

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पिता से अधिक तेज का मांगा वर
जब भगवान शिव उनसे प्रसन्‍न हुए और वरदान मांगने को कहा तो शनि ने उनसे एक ही वर मांगा कि आप मुझे सूर्य से अधिक शक्तिशाली और पूज्‍य होने का वर दें । उन्‍होंने मेरी माता का अनादर कर उन्‍हें प्रताड़ित किया है । इाके बाद ही भगवान भोलेनाथ ने उन्‍हें वरदान दिया कि वो नौ ग्रहों में श्रेष्ठ स्थान पाने के साथ ही सर्वोच्च न्यायाधीश व दंडाधिकारी रहोगे ।