UP Election- अमित शाह के 2017 की रणनीति पर बीजेपी, खास फॉर्मूले से मिशन 2022 फतह की तैयारी
बीजेपी के रणनीतिकारों को पता है कि माहौल बनाना और जमीनी स्तर पर उसे वोटों में तब्दील करा पाना आसान नहीं होता, इसलिये पार्टी ने खुद को मुकाबले में आगे रखने तथा चुनाव के बाद के समीकरण को देखते हुए कारगर रणनीति पर काम तेज कर दिया है।
New Delhi, Sep 27 : योगी सरकार विस्तार तथा 4 विधान परिषद सदस्यों के नामों तथा जातियों के सामने आने के बाद ये साफ हो गया है कि बीजेपी अमित शाह के 2017 की रणनीति की राह पर है, केन्द्र का विस्तार हुआ या यूपी सरकार का फॉर्मूला पुराना है, उसी फार्मूले के तहत पीएम मोदी की महत्वाकांक्षी किसान फसल बीमा योजना की शुरुआत बरेली से की गई, तो उज्जवला योजना की लांचिंग के लिये पूर्वांचल के बलिया जिले को चुना, राष्ट्रीय कार्यकारिणी के लिये भी इलाहाबाद का चयन किया गया था, तो बीजेपी की राजनीति के लिहाज से अत्यंत ही पिछड़ा क्षेत्र था, एक बार फिर बीजेपी की रणनीति अगले 3 महीने के भीतर यूपी में भगवा माहौल बनाने की है।
बीजेपी की रणनीति
बीजेपी के रणनीतिकारों को पता है कि माहौल बनाना और जमीनी स्तर पर उसे वोटों में तब्दील करा पाना आसान नहीं होता, इसलिये पार्टी ने खुद को मुकाबले में आगे रखने तथा चुनाव के बाद के समीकरण को देखते हुए कारगर रणनीति पर काम तेज कर दिया है, बीजेपी यूपी को 6 जोन के लिये अलग-अलग चुनाव तथा संगठन प्रभारी की देखरेख में चुनावी रणनीति पर काम कर रही है, बीजेपी की रणनीति त्रिस्तरीय है, एक तरफ पार्टी पूरी तरह से जाति समीकरण को साध रही है, तो पश्चिमी यूपी में ध्रुवीकरण की राजनीति भी चल रही है, तो तीसरे तरफ विकास का मुद्दा भी साथ चल रहा है, बीजेपी जनता की उस नब्ज को थाह रही है, मैसेज देने की कोशिश कर रही है कि सपा के कार्यकाल में सिर्फ मुसलमानों और यादवों की सुनवाई होती थी, बसपा से एक समान दूसरी रखी जा रही है, वहीं कांग्रेस को निशाना तो बनाया जा रहा है, लेकिन टारगेट पर सपा है।
गठबंधन का बड़ा गुलदस्ता
बीजेपी ने सामाजिक समीकरण और गठबंधन का बड़ा गुलदस्ता बनाने की दिशा में कदम बढा दिया है, निषाद पार्टी तथा अपना दल से गठबंधन इसका नमूना है, सोशल इंजीनियरिंग का गुलदस्ता खुद शाह ने तैयार किया है, पिछले चुनाव में करीब 20 फीसदी मुसलमानों को छोड़कर सवर्ण, पिछड़ा और दलितों के 80 फीसदी वोट को टारगेट किया था, लेकिन इस बार बीजेपी ने सामाजिक समीकरण में भी माइक्रोमैनेजमेंट किया है, पार्टी 20 फीसदी मुस्लिम वोट के अलावा करीब 10 फीसदी यादव, 10 से 11 फीसदी जाटव वोटों को छोड़कर दलित-पिछड़ों के बाकी वोटों को अपने पक्ष में जुटाने में लगी हुई है।
बीजेपी का कास्ट पॉलिटिक्स
ओबीसी के कुर्मी वोट बैंक में आधार रखने वाले अपना दल के साथ बीजेपी का गठबंधन पहले से है, अब पार्टी के निशाने पर करीब दर्जन भर छोटी पार्टियां हैं, पार्टी ने जिस तरह ओबीसी-दलित पर जोर दिया है, उससे सर्वणों में नाराजगी ना हो, इसलिये ब्राह्मणों पर भी जोर डाला जा रहा है, जितिन प्रसाद इसके उदाहरण हैं, बीजेपी ने अपने सभी 6 जोन में क्षेत्रीय अध्यक्षों की नियुक्ति से लेकर निचले स्तर तक की टीम में सामाजिक समीकरण का खासा ध्यान रखा है, इसी रणनीति के तहत बूथ स्तर पर फॉर्मूले में भी जाति समीकरण को ध्यान में रखा गया है, आने वाले समय में जातिगत सम्मेलनों का सिलसिला तेज किया जाएगा।