वाल्मीकि जयंती आज, डाकू से महर्षि बनने की रोचक है कहानी, ये है महत्‍व

वाल्मीकि जयंती का पर्व शरद पूर्णिमा की तिथि पर मनाई जाती है, इस दिन को परगट दिवस के रूप में भी मनाते हैं । आगे जानें महत्‍व ।

New Delhi, Oct 20: आज वाल्‍मीकि जयंती का पर्व मनाया जा रहा है, ये हर वर्ष शरद पूर्णिमा तिथि पर आता है । पूणिर्मा तिथि के लिए पूजा का समय 19 अक्टूबर को शाम 7 बजकर 3 मिनट से शुरू हो चुका है जो कि आज रात 8 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगा । महर्षि वाल्मीकि का जन्म अश्विन मास के शुक्‍ल पक्ष की पूर्णिमा यानी कि शरद पूर्णिमा को हुआ था,इसीलिए आज के दिन उनका जन्‍मदिवस मनाया जाता है ।

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महर्षि वाल्‍मीकि का जीवन
रामायण के रचनाकार आदिकवि महर्षि वाल्मीकि का जीवन भी के लिए प्रेरणास्रोत है । पौराणिक कथाओं के अनुसार वैदिक काल के महान ऋषि वाल्‍मीकि पहले डाकू हुआ करते थे लेकिन जीवन की एक घटना ने उन्हें बदलकर रख दिया । वाल्‍मीकि असाधारण व्यक्तित्व के धनी माने जाते हैं, उनकी ख्‍याति दूर-दूर तक फैली हुई थी । इसी वजह से उनके जन्मदिवस पर कई विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है ।

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डाकू से म‍हर्षि बनने की कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति की 9वीं संतान वरुण और पत्नी चर्षणी के घर हुआ था । बचपन में ही भील समुदाय के लोग उन्हें चुराकर ले गए थे, इसी वजह से उनकी परवरिश भील समाज में हुई । यहां उनका नाम रत्नाकर हुआ करता था, वो जंगल से गुजरने वाले लोगों से लूट-पाट करता । बताया जाता है कि एक बार जंगल से जब नारद मुनि गुजर रहे थे तो रत्नाकर ने उन्हें भी बंदी बना लिया । तब नारद ने उनसे पूछा कि ये सब पाप तुम क्यों करते हो? इस पर रत्नाकर ने जवाब दिया, ‘मैं ये सब अपने परिवार के लिए करता हूं।’

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नारद ने किए सवाल, रत्‍नाकर को प्राप्‍त हुआ ज्ञान
रत्‍नाकर के जवाब से हैरान नारद मुनि ने उनसे पूछा- क्या तुम्हारा परिवार तुम्हारे पापों का फल भोगने को तैयार है । रत्नाकर ने निसंकोच हां में जवाब दिया । तब नारद मुनि ने कहा इतनी जल्दी जवाब देने से पहले एक बार परिवार के सदस्यों से पूछ तो लो, इसके बाद रत्नाकर घर लौटा और उसने परिवार के सभी सदस्यों से पूछा कि क्या कोई उसके पापों का फल भोगने को आगे आ सकता है? सभी ने फौरन इनकार कर दिया । घटना के बाद रत्नाकर को सबक भी मिला और बहुत दुख भी आ । इसके बाद उसने सारे गलत काम छोड़कर राम भक्ति में मन रमा लिया । वर्षों की तपस्या के बाद वो इतना शांत हो गए कि चींटियों ने उनके चारों ओर टीले बना लिए थे । इसी वजह से बाद में उन्‍हें महर्षि वाल्मीकि का नाम मिला, इसका अर्थ है ‘चींटी के टीले से पैदा हुआ।’